रामलला का मंदिर बनने जा रहा। यह एक दिन में नही हुआ। अयोध्या में कदम दर कदम अयोध्या आंदोलन के संघर्ष के साथियों की गवाहियां दर्ज है। दर्ज है उन योद्धाओं की कहानी जो अपने स्वाभिमान के लिए संघर्ष किया। दर्ज है आततायी सरकारों से जूझते रामभक्तों की कहानी। कहानी उन स्वयंसेवकों की जो इस गीत को दोहरते तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहे न रहे। वो जो रामलला हम आएंगे मंदिर वहीं बनाएगे का नारा लगाते रामकाज के लिए निकले थे।
आंदोलन के शिखर पुरूषों से हम सब परिचित है। लेकिन भूमिका तो नल नील की भी थी। सुग्रीव की भी थी जिसकी बानरी सेना जमीन पर लड रही थी। ऐसे ही सुग्रीव और नल नील की कहानियां आज भी अयोध्या में सुनी जा सकती है। लल्लू सिंह उन्ही मे से एक नाम है। कुंजिबिहारी रामदयाल और ध्रुवनाथ को आज भी अयोध्या के कार्यकर्ता याद करते हैं। हृदयनाथ सिंह तो इन सबके अगुवा थे।
सत्ता जब मदमस्त हाथी की तरह रामभक्तों को कुचल रही थी तो लल्लू सिंह ने अपने इन साथियों के साथ मदमस्त सरकारी हाथियों के पांव उखाडं दिए। वो किस्से आज भी रोमांचिक कर देते हैं। यही कारण है कि लल्लू सिंह को अयोध्या की जनता तब से अब तक देश और प्रदेश की सबसे बड़ी पंचायत की बागडोर सौंपती आ रही है।
अयोध्या आंदोलन के नल-नील थे लल्लू सिंह। लल्लू सिंह बनना आसान भी नहीं। कद-काठी व रहन-सहन तो सरल से सरल लेकिन कार्य विरल से विरलतम। शोर-शराबे से खुद दूर लेकिन बड़े बड़े काज के शिल्पी। राम काज के शिल्पकार। ठीक वैसे ही जैसे नदी अपने उद्गम स्थल में सूक्ष्म होती है। अत्यंत छोटी धारा। लेकिन जब पहाड़ों से गरज -गरज कर मैदानों में उतरती है तो उसी का रूप बड़ा हो जाता है।
शोर-शराबे से दूर सन्नाटे के रहिवासी। अयोध्या आंदोलन के गुमनाम साधक। कांग्रेस के नेता अर्जुन सिंह के बयान ने उस समय हलचल मचा दी जब उन्होंने अयोध्या आंदोलन में लल्लू सिंह की गुप्त भूमिका का जिक्र किया।
लल्लू सिंह बाल स्वयंसेवक रहे। लल्लू सिंह छात्र राजनीति में सक्रिय रहे। अयोध्या के साकेत महाविद्यालय के छात्रसंघ पदाधिकारी रहे। अवध क्षेत्र के अखिल भारतीय विद्धाथी परिषद के खास चेहरे थे. आपात काल विरोधी आंदोलन मे अपनी जमीनी पकड का तत्समय के बडे नेताओ को एहसास कराया. महाराष्ट्र के मोरोपंत पिंगले राम जन्मभूमि को लेकर अयोध्या पहुंचे तो उन्हें लल्लू सिंह की जमीनी पकड़ को समझने में देर नही लगी.
अयोध्या आंदोलन में उन्हे सघन रूप में सक्रिय किया।.अयोध्या मे विभाग प्रचारक रहे जौनपुर के अमांवा खुर्द निवासी ह्दयनाथ सिंह का उन्हे संरक्षण मिला। हिंदुत्व के पुरोधा अशोक सिंघल ने उन पर भरोसा जताया। आंदोलन की जो महत्वपूर्ण तारीखें है, उसमे वे नल-नील की भूमिका में राम काज में लगे रहे। बीजेपी के पूर्व जिलाध्यक्ष ओमप्रकाश सिंह उन दिनों को ताजा करते हुए कहते हैं कि कारसेवकों को ठहरने , भोजन पानी इंतजाम और फिर उनको आगे की कार्य योजना के अनुसार आंदोलन में सहयोगी बनाने में वह दिन रात लगे रहते थे.
बाकरगंज निवासी सुरेश चंद्र पांडे का कहना है कि हमारी जिम्मेदारी पुआल यानि धान के पेरे को एकत्रित करना और उसे कारसेवकों के तात्कालिक रहिवास स्थल तक पहुंचाने की जिम्मेदारी लल्लू सिंह ने दी थी. कभी-कभी तो ऐसा हुआ कि गांव वालों का सहयोग नही मिला. लल्लू सिंह ने गांव-गांव जाकर उसे मांगकर एकत्रित कराया. अंबेडकर नगर जिले का टांडा स्थान उन दिनों महत्वपूर्ण केंद्र हुआ करता था. यहां से कई लोग अयोध्या में सक्रिय हुए जो सांगठनिक कार्य में बहुत ही चुपके से लगे रहे. इसमें कई ऐसे थे जो पावर कारपोरेशन के कर्मचारी भी थे.
ये लोग अशोक सिंघल जी के काफी विश्वस्त थे. उन दिनों को याद करते हुए ध्रुवनाथ यादव ने बताया कि इलाहाबाद से आते वक्त पूरी तरह से घेराबंदी से युक्त अशोक सिंघल को बाइक पर ले कर अयोध्या की ओर आए. मेरे साथ राम दयाल थे. बीच में ही बाइक भी खराब हो गई. रास्ते में एक गांव में रात रुकना पड़ा और वहीं से अशोक सिंघल को लेकर अयोध्या के करीब आए. एक का नेतृत्व उमा भारती कर रही थी और दूसरे का नेतृत्व अशोक सिंघल कर रहे थे. सरयू पुल खचाखच भरा हुआ था. कारसेवकों ने अपने उत्साह में बैरीकेटिंग को तोड दिया. उमा भारती को गिरफ्तार कर लिया गया और अशोक सिंहल अरेस्ट होकर अस्पताल पहुंच गए. मै अस्पताल पहुंचकर अशोक जी को फीयट कार के जरिए काशी पहुंचाया.