कांग्रेसी अब और शराब पी सकते हैं। निर्बाध, खुल्लम-खुल्ला, बेहिचक, बिना किसी लाग-लपेट या लिहाज के। उनके लिए अब खादी पहनना भी अनिवार्य नहीं है। विदेशी मनपसंद परिधान धारण कर सकते हैं। नवा रायपुर (छत्तीसगढ़) में गत रविवार (26 फरवरी 2022) को संपन्न हुये 85वें अधिवेशन में इस 138-वर्ष पुरानी पार्टी ने अपने संविधान की धारा 5 निरस्त कर डाली। इससे दारू से कड़ा परहेज और खादी लाजिमी तौर पर पहनने वाले नियम खत्म कर दिये गये हैं। पूर्णतया मुक्ति मिल गई है।
मगर इस निर्णय का धारधार प्रतिरोध किया है चार दफा लोकसभा सदस्य रहे, केरल प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष तथा काबीना मंत्री रहे वीएम सुधीरन ने। तिरुअनंतपुरम के अपने गौरीशपट्टम आवास से फोन (94471-03999) पर बात करके उन्होंने इस संवाददाता से कहा कि पार्टी संविधान में किया गया ऐसा संशोधन दुर्भाग्यपूर्ण, अवांछनीय तथा काबिले-ऐतराज है। गांधीवादी मूल्यों तथा जंगे आजादी के आदर्शों का सरासर तिरस्कार करना है।
इस वयोवृद्ध (75-वर्षीय) गांधीवादी पुरोधा केरल के एके एंथोनी काबीना में स्वास्थ्य मंत्री तथा विधानसभा अध्यक्ष भी रहे। सुधीरन को आशंका है कि पार्टी संविधान में इस संशोधन से भारत में शराब की बिक्री बेतहाशा बढ़ जाएगी। पिछली बार अपने चुनावी प्रत्याशीवाले नामांकन-पत्र में सुधीरन ने आय-व्यय विवरण में लिखा था कि उनके पास केवल पांच हजार की नकदी, मात्र एक हजार रुपए के शेयर, डाकखाने के बांड, सत्तर हजार के डाक बचत पत्र और पत्नी के पास मात्र पंद्रह हजार रुपयों के गहने हैं। वैचारिक रूप से वे नेहरूवादी समाजवादी अर्थनीति के दृढ़ समर्थक रहे। उनसे तुलना में कांग्रेस अध्यक्ष तथा दलित नेता मल्लिकार्जुन खड़गे के पास पचास हजार करोड़ रुपए की चल-अचल संपत्ति है। इसका स्रोत है बेंगलुरु-स्थित समाज परिवर्तन समिति के अदालती दस्तावेज हैं। इस पर कर्नाटक लोकायुक्त द्वारा जांच भी जारी है।
सोनिया-कांग्रेस की इस अपराधिक अवनति पर टिप्पणी करने का मेरा स्वाभाविक हक है। स्वाधीनता-सेनानी, संपादक एवं सांसद (स्व. के. रामा राव) का आत्मज हूँ। सन 42 में घर में कई दिनों चूल्हा नहीं जला था क्योंकि पिताजी जेल में कैद थे। तात्पर्य है कि हम लोग भी अंग्रेजी दासता के खिलाफ संघर्षरत रहे और फिर मैं स्वयं इंदिरा गांधी के अधिनायकवाद (1975-77) का मुकाबला कर चुका हूं। जेलों में सड़ा हूं। अतः ऐसा लिखने का नैसर्गिक अधिकार मेरा कष्टार्जित है।
अधिवेशन के दौरान एक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता ने टिप्पणी की थी कि शराब पीना और खादी पहनना बन्द कर देना, दोनों अब बदलते युग की मांग है। दोनों प्रगतिशील कदम हैं। अधिवेशन का एक मनभावन निर्णय यह है कि कांग्रेसजन को शपथपूर्वक प्रण लेकर कहना होगा कि वे भूसीमा कानून का पालन करते हैं, किसी नैतिक अपराध में लिप्त नहीं हैं, श्रमदान में भागीदार हैं तथा सामाजिक न्याय में आस्था रखते हैं।
रायपुर महाधिवेशन के पूर्व कांग्रेस के उदयपुर वाले संकल्प शिविर (मई 2022) में निर्णय था कि “एक व्यक्ति एक पद” का नियम लागू किया जाएगा। साथ ही में “एक परिवार एक चुनावी टिकट” का सिद्धान्त भी निर्धारित हुआ था। मगर यह दोनों निर्णय कागज पर ही पड़े रहे। अर्थात सोनिया-संतानें अपने निर्बाध परिवारिक उद्यम से जुड़ी रहेंगी। कुलनाम का दबाव भी बना रहेगा। पार्टी संविधान-संशोधन समिति के संयोजक रणजीत सिंह सुरजेवाला की राय थी कि कुछ नीतिगत विषय होते हैं जिनके लिए संविधान संशोधन जरूरी नहीं है।
मल्लिकार्जुन खरगे ने तो ज्यादा स्पष्ट कर दिया। वे बोले कि “सत्ता के दलालों को दूर रखना होगा।” पहले प्रस्ताव था कि कार्यसमिति के सभी सदस्य मतदान द्वारा निर्वाचित होंगे। बाद में अचानक बदला गया और तय हुआ कि अध्यक्ष जी सभी पद पर व्यक्तियों को मनोनीत करेंगे। अर्थात 18 चुने हुये और 17 नामित होने के बजाय सभी पार्टी मुखिया की मनपसंद ही होंगे। पलटी मारी गई। गौरतलब है कि खड़गे कांग्रेस अध्यक्ष के साथ राज्य सभा में नेता प्रतिपक्ष भी हैं। दो पदों पर विराजमान हैं। अब पुत्रमोह से ग्रसित मां इस भारत-जोड़ो यात्री को अगले वर्ष प्रधानमंत्री पद पर देखना चाहती हैं। उधर नीतीश कुमार ने भी दावा पेश कर दिया है। बस दर्जी को नई अचकन का नाप देने की देर है। उनके मुंगेरीलाली सपने साकार हो गए तो सोनिया का स्वप्नलोक में विचरण थम जाएगा। उधर संजय राऊत अपनी राष्ट्रवादी कांग्रेस के अध्यक्ष शरदचंद्र गोविंदराव पवार को मोदी की जगह स्थापित कराना चाहते हैं। राउत विदेशी रक्तवाले को गवारा नहीं करेंगे क्योंकि उनकी पार्टी का नाम ही राष्ट्रवादी है। इस बीच शेरनी-ए-बंगाल मांसाहारी ब्राह्मणी ममता बंदोपाध्याय पहले ही से सिंहासनावरोहण की तैयारी कर चुकी हैं। तेलंगाना के मुख्यमंत्री कलकुंटला चंद्रशेखर राव अपने नवनामित आंचलिक दल “भारत राष्ट्र समिति” के अध्यक्ष के नाते देश के शासक बनने का इरादा जाहिर कर चुके हैं।
अब शराब के धंधे में डूबे अरविंद केजरीवाल भी हसीन ख्वाब संजो रहे हैं। दिल्ली जीत ली। भारत भी कब्जियाने की हसरत है। तो फिर वामपंथी काहे पीछे छूट जायें ? वे मनमोहनरूपी कठपुतली नचा चुके हैं। एक दांव फिर से सही ! कहीं इस हेराफेरी में द्रमुक की लॉटरी लग गई तो ? स्टालिन-राज उभरेगा ! तब राहुल कहां टिकते हैं ? रायपुर से दिल्ली सवा तेरह सौ किलोमीटर है। वायुमार्ग से सवा नौ सौ। राहुल गांधी शायद आदतन पैदल पहुंचना चाहेंगे। तब ? सालों लग जायें। सब धरा ही रह जायेगा।