अयोध्या, सरयू और राम जी की जो पावन पवित्रता है वह अयोध्या की सीमा तक सीमित नहीं है। वो चतुर्भुवन तक और सार्वकालिक है। इसलिए अयोध्या और श्रीराम जी से जुड़ा कोई भी आयोजन उतना ही पवित्र है जितना स्वयं अयोध्या की धरती है। अयोध्या के संदर्भ में ज्यादा कहने की जरूरत नहीं है, हम सब जानते ही हैं। पिछले और इस साल के बीच एक जो महत्वपूर्ण परिवर्तन देश के अंदर हुआ है,उससे हम सब परिचित हैं। अयोध्या परंपरा, सांस्कृतिक धरोहर, चरित्र, इतिहास- सब प्रकार से राम जन्मभूमि है लेकिन उस भूमि को विवादित करके रखा गया था। आज भी उसे विवादित भूमि कहते हैं। वह कब विवाद से मुक्त होगा?
पिछले एक साल में इसमें जो परिवर्तन आया है उसके कारण आज का यह अयोध्या पर्व विशेष महत्व रखता है। भारतीय लोगों ने मोक्षदायिनी पुरी में अयोध्या को पहला स्थान दिया। “अयोध्या-मथुरा माया काशी कांचीत्वन्तिका, पुरी द्वारावतीचैव सप्तैते मोक्षदायिकाः।” ये सात मोक्षदायिनी पुरी हैं।
दिल्ली के लोगों को मोक्षदायिनी पुरी अयोध्या का दर्शन कराने के लिए अयोध्या पर्व को दिल्ली लाया गया। वैसे तो अयोध्या के सामने सारे विश्व को नतमस्तक होना चाहिए लेकिन कुछ दशकों से दिल्ली की आज्ञा के लिए अयोध्या को इंतजार करना पड़ा। भारत की इस सांस्कृतिक धरोहर को अपना स्थान प्राप्त करने के लिए शासन और न्यायपालिका के सामने दशकों से प्रतीक्षा करना पड़ा। वह प्रतीक्षाकाल समाप्त होने के बाद का यह अयोध्या पर्व है।
दिल्ली और अयोध्या दोनों भिन्न-भिन्न प्रकार के हैं। ‘दिल्ली भारत नहीं’ है। भारत को दबाने का काम, भारत को भारत नहीं रहने देने का प्रयास दिल्ली करती है। दिल्ली हमेशा देश पर अपना वर्चस्व बनाने की कोशिश करती है। दिल्ली पर जब अयोध्या का वर्चस्व होगा तब भारत के पुनर्उदय का द्वार खुलेगा। अयोध्या का वर्चस्व होने का मतलब मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीरामचंद्र का वर्चस्व और प्रभुत्व।
राम भारत में केवल एक राजा और आराध्य देवता नहीं, राम भारत की आत्मा है, सांस्कृतिक पहचान हैं और भारत की अस्मिता हैं। राम भारत के अतीत, वर्तमान और भविष्य हैं। इसको जो समझते हैं वे भारत की अस्मिता को समझते हैं और अयोध्या को समझते हैं। इसलिए अयोध्या पर्व अयोध्या के अस्मिता का संदेश देने के लिए विगत तीन वर्षों से इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के परिसर में आयोजित हो रहा है। यह अपने आप में अर्थपूर्ण हैं।
पर्व का मतलब त्योहार है, फेस्टिवल है। लेकिन अपने देश में दो महाकाव्य हैं। एक, रामायण में अध्याय का नाम कांड है, उसमें एक अयोध्या कांड भी है, सुंदर कांड हैं। दूसरा, महाभारत में अध्याय को पर्व कहते हैं। यहां अयोध्या और पर्व को जोड़ दिया है। लेकिन मैं यहां यह समझता हूं कि रामायण औऱ महाभारत का जो संदेश है- सांस्कृतिक धर्म स्थापना, अस्मिता, जीवन-आचरण और महोन्नत आदर्श के- अयोध्या पर्व उसका प्रतीक है। यह भारतीय पहचान है और भारतीय अस्मिता का धोतक है।
अयोध्या रामजी की जन्मभूमि तो है ही, राजा मनु से उसे बसाया बनाया ऐसा हम पढ़ते और सुनते हैं। बौद्ध और जैन अपने यहां जो विभिन्न परंपरा है, अयोध्या उनके भी प्रेरणा का केंद्र है। मंदिर के लिए जो ट्रस्ट है वह मंदिर तो भव्य बनायेगी ही उसके साथ अयोध्या के पुनर्निर्माण के लिए भारत और उत्तर प्रदेश सरकार से मिलकर अयोध्या के सांस्कृतिक रूप को विश्व के समाने रखेंगे, ऐसी मैं अपेक्षा करता हूं।
अयोध्या पर्व मुझे डॉक्टर राममनोहर लोहिया के रामायण मेला की याद दिलाता है जो चित्रकूट में आयोजित होता था। डॉक्टर राममनोहर लोहिया समाजवादी थे लेकिन लोहिया ने राम, कृष्ण और शिव पर लेख लिख कर भारत की धरती के लिए, भारत के समाज के लिए राम, कृष्ण और शिव तीनों का महत्व क्या है, तीनों का संदेश क्या है? इसकी विस्तार से चर्चा की। मेरे जैसे संघ के स्वयंसेवक, विश्व हिंदू परिषद के कार्यकर्ता तो राममंदिर आंदोलन में लगा रहा लेकिन लोहिया जैसे समाजवादी ने वर्षों तक चित्रकूट में रामायण मेला आयोजित किया। इसका क्या कारण था? डॉ. लोहिया ने रामायण मेला आयोजित कर देश के लोगों को रामजी की संस्कृति को समझाने का प्रयास किया।
डॉ. लोहिया ने तीर्थस्थल के संदर्भ में एक बात कही थी, इसीलिए मैं कहना चाहता हूं। कई बार देश के सेकुलर समाज के लोगों में इन चीजों के बारे में थोड़ा सा भ्रम रहता है। समाजवादी नेता डॉ. लोहिया ने जो कहा मैं उसी को यहां उद्धृत करना चाहता हूं- “मैं आज द्वारका, रामेश्वरम् अयोध्या और बनारस जैसे महानतम तीर्थस्थानों के मारक उपेक्षा पर जोर देना चाहता हूं। अस्सी लाख से अधिक व्यक्ति प्रतिवर्ष इन तीर्थस्थानों की यात्रा करते हैं। अच्छे मकानों और आवास की आधुनिक प्रदर्शनियां दिल्ली में करना धन का अपव्यय है। जबकि थोड़े से अतिरिक्त खर्चे में इन महान तीर्थस्थलों का जीर्णोंद्वार हो सकता है। और यह शिक्षाप्रद उदाहरण बन सकता है।”
लोहिया ने लिखा था कि भारत सरकार इन कामों से भागती है। शायद इस कारण से कि यह हिंदू तीर्थस्थल है, और ऐसा प्रकट करना चाहती है कि वह स्वयं हिंदू नहीं हैं। लोहिया जी कह रहे हैं- “मुस्लिम, ईसाई और भारत की जनता के प्रतिनिधि के रूप में कोई भी समझदार आदमी लोककल्यण की देशी नीतियों के आधार पर भारत के महानतम तीर्थस्थलों के जीर्णोद्धार के लिए आंदोलन करेगा।” ये लोहिया जी का कथन है भाइयों। इससे ज्यादा अयोध्या के बारे में कुछ कहने की जरूरत नहीं है।
हेमंत शर्मा ने पिछले दिनों ‘युद्ध में अयोध्या’ पुस्तक लिखी। उसमें अयोध्या के बारे में जो लिखा वो मेरे मन की बात थी इसलिए मुझे लगा कि उसे आपके सामने रखूं- “अयोध्या वीतरागी है, अयोध्या निस्पृह है। अयोध्या में बह रहे सरयू के पानी में एक तरह की निसंगता है। भक्ति में डूबी अयोध्या का चरित्र अपने नायक की तरह धीर, शांत और निरपेक्ष है। अयोध्या एक लक्षण है, अयोध्या एक प्रतीक है मजहबी असहिष्णुता के विरुद्ध प्रतिकार का, भारत राष्ट्र के आहत स्वाभिमान का, अयोध्या एक संकल्प है अपने प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर से हर कीमत पर जुड़े रहने का, अयोध्या शमशीर से निकली उस विचारधारा का प्रतिकार है जो सर्वपंथ समादर, सर्वग्राही और उदार सहिष्णुता के भारतीय आदर्शों को स्वीकार नहीं करती है बल्कि कुचलती है उसके विरुद्ध एक प्रतिकार भी है अयोध्या। अयोध्या स्नेह, प्रेम, आत्मीयता बंधुता का एक केंद्र भी है।”
इसलिए अयोध्या का जो संदेश है यह भारत के पुनर्निर्माण का एक बहुत बड़ा सूत्र है। रामजी को मर्यादा पुरुषोत्तम हमने माना। रामजी हर विचार-वाणी में एक आदर्श रखते थे। इसलिए रामजी जो चाहें बोलें-करें, इसकी अनुमति नहीं थी। भारत में आज भगवान राम के मर्यादा का जीवन के हर क्षेत्र में पालन करने की आवश्यकता है।
(28 मार्च 2020 को अयोध्या पर्व के उद्घाटन भाषण का अंश)