गुनाह कबूलती महुआ मोइत्रा

रामबहादुर राय

तृणमूल कांग्रेस से लोकसभा की सांसद महुआ मोइत्रा मामले की जांच विधिवत शुरू हो गई है। लोकसभा की आचार समिति के समक्ष भाजपा के सांसद निशिकांत दुबे उपस्थित हुए। इसलिए कि उन्हें अपना बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया गया था। वे ही हैं, जिन्होंने महुआ मोइत्रा पर एक गंभीर आरोप लगाया है। समिति ने उन्हें 26 अक्टूबर को सुना। उनका बयान दर्ज किया। इसी तरह महुआ मोइत्रा के पुराने मित्र जय अनंत देहाद्रई का भी बयान दर्ज किया गया। यह एक बड़े मामले की शुरूआती जांच है। इसके अनेक आयाम हैं। आचार समिति तो एक आयाम की जांच करेगी। लेकिन जांच के दौरान दूसरे आयाम भी अपने आप खुलते जाएंगे। जो-जो आयाम इसके हैं, अगर वे सामने आते गए तो संभव है कि यह राजनीतिक भूकंप ला सकता है।

राजनीतिक भूकंप अगर आया तो भारत की संसदीय राजनीति में युग परिवर्तन की वह घटना होगी। ऐसा क्यों होगा? यह प्रश्न  रोचक है। जितनी चर्चा इस मामले की हो रही है, वह सतही है। उसी तरह जैसे किसी हिमखंड का एक हिस्सा ही दिखता है। उसका बड़ा हिस्सा दिखाई नहीं पड़ता। यह हिसाब-किताब एक और नौ का है। एक हिस्सा दिखता है और जो नहीं दिखता वह उस हिमखंड का वह नौ हिस्सा होता है, जो सतह पर नहीं होता है। कुछ ऐसा ही इस मामले में भी लग रहा है। लेकिन इससे युग परिवर्तन का कोई संबंध नहीं है। जानने की बात दूसरी है और उसी का संबंध संसदीय राजनीति के युग परिवर्तन से जुड़ता है। लेकिन यह भविष्य की बात है। ऐसा भी मत समझिए कि भविष्य बहुत दूर है। वह इसी साल अपने रहस्य खोलकर विदा हो जाएगा। लेकिन अपनी छाप ऐसा छोड़ेगा जैसा कि अतीत के बड़े संसदीय मामलों में वह अब तक के सबसे अलग दिखने वाला हो सकता है।

महुआ मोइत्रा पर आरोप में एक नयापन है। आमतौर पर सत्तारूढ़ दल के सांसदों पर आरोप लगते रहे हैं। इस बार सत्तारूढ़ दल के एक सांसद ने उस समय आरोप लगाया, जब एक  भेद खुला। इस तरह निशिकांत दुबे ने भेद नहीं खोला है। भेदिया तो वह व्यक्ति है, जो सांसद महुआ मोइत्रा का कुछ दिनों पहले तक घर का आदमी था। विचित्र बात यह है कि आपसी झगड़े से यह राज खुला। आपसी झगड़ा शुरू हुआ एक पालतू जानवर को लेकर। मामला पुलिस में गया। शिकायत पुलिस को मिली और उसने जांच शुरू की। इसके बाद यह भेद आरोप के रूप में उजागर हुआ कि महुआ मोइत्रा की लोकसभा में छा जाने का एक गहरा रहस्य है। उनकी छवि सक्रिय और तेजतर्रार सांसद की बनी हुई है। ऐसा होता भी है कि जो ज्यादा सवाल पूछता है और संसदीय कार्यवाही में खूब बढ़-चढ़कर हिस्सा लेता है उसे लोग आदर से देखते हैं। वह आदर तब और बढ़ जाता है, जब सांसद विपक्ष का हो और बातें मुद्दे की उठाता हो।

संसदीय राजनीति में ऐसे अनेक नाम रहे हैं। जिन्हें आदरपूर्वक याद किया जाता रहेगा। लेकिन उस श्रेणी में महुआ मोइत्रा शायद नहीं आ सकेगी। इसका कारण बहुत साफ है। उन पर पैसे लेकर सवाल पूछने का आरोप लगा है। इसी आरोप पर निशिकांत दुबे और जय अनंत देहाद्रई के बयान दर्ज हुए हैं। अखबारों में छपा है कि पहली सुनवाई में ही शिकायत  को गंभीर मानते हुए आचार समिति ने आईटी और गृह मंत्रालय से सहायता मांगने का भी फैसला किया है। अपने बयान में इन दोनों ने अपने आरोपों को दोहराया। अब महुआ मोइत्रा को आचार समिति के सामने अपना बयान दर्ज कराना है। उसकी तारीख भी निर्धारित हो गई है। समिति ने 31 अक्टूबर को उन्हें बुलाया, लेकिन उन्होंने समय मांगा। समिति ने 2 नवंबर को पुनः बुलाया है। वे मीडिया में मुखर हैं, लेकिन समिति में जाने से कतरा रही हैं।

लोकसभा की आचार समिति के समक्ष वे अपने बचाव में क्या कहेंगी, इसके संकेत उनके बयानों से मिल रहा है। उन्होंने एक अंग्रेजी अखबार से बातचीत में जो स्वीकार किया है, वह आरोपों को मजबूत बनाता है। यह स्वीकार किया है कि अपना पासवर्ड और लाग-इन उन्होंने दूसरे को दिया इसलिए कि उनके नाम से सवाल पूछे जा सकें। यह भी स्वीकार किया है कि उन्होंने इसके बदले में उपहार और अन्य सुविधाएं प्राप्त की। लेकिन पैसा नहीं लिया। पूर्व बैंकर का यह मंजूर करना ही अपने गुनाह को उजागर करना जैसा है। धन्य हैं, महुआ मोइत्रा! क्या इसमें कोई संदेह है कि वे जनहित में सवाल नहीं पूछ रही थी, बल्कि एक जनप्रतिनिधि से अपेक्षित आचरण की मर्यादा भंग कर पैसे के लिए वे सवाल पूछती थी। जिसे उन्होंने स्वीकार किया है, उसका प्रमाण आईटी से मिल जाएगा। डिजिटल तकनीक के आने से सांसदों का काम आसान हुआ है। लेकिन एक पारदर्शिता भी आई है। इस समय एक सांसद को डिजिटल के अलावा पुरानी पद्धति से सवाल पूछने की भी सुविधा है। यह शिकायत पहले भी आती रही है कि कुछ सांसद अपने लेटरहेड उन व्यवसायिक घरानों को दे देते हैं, जिनके हितों के लिए वे काम करते हैं। जब सांसद महुआ मोइत्रा ने स्वयं स्वीकार कर लिया है कि उन्होंने पासवर्ड और लाग-इन अपनी सुविधा के लिए दूसरे को दे दिया, तो वे बचाव में जो तर्क दे रहीं हैं, वे बहुत हल्के दिखते हैं। बात यह निकल कर आती है कि वे औद्योगिक घरानों के झगड़े में एक पक्ष का साथ दे रही थी। वे सच को जानने के लिए सवाल नहीं पूछ रही थी।

कोई भी सजग नागरिक इसका अनुमान लगा सकता है कि महुआ मोइत्रा तो उस उद्योगपति के लिए इस्तेमाल हो रही थी, जो गौतम अडानी का प्रतिद्वंदी है। उसके यहां उनके लिए सवाल बनाए जाते थे और वह उनके नाम से लोकसभा में पूछा जाता था। इसे उन्होंने स्वीकार  कर लिया है इसलिए अब यह प्रमाणित हो जाएगा। तो तय है कि महुआ मोइत्रा पर कदाचार सिद्ध हो जाएगा। लेकिन इससे ही यह मामला रफादफा नहीं हो जाएगा। इससे तो एक शुरूआत होगी। वही इस मामले में नई होगी। जिससे यह बात निकलेगी कि विपक्ष जिसे अपना ब्रह्मास्त्र समझ कर 2024 का राजनीतिक युद्ध जीतने की उम्मीद में था, उस पर पानी फिर गया। वह पलट कर विपक्ष की ही केवल कलई नहीं खोलेगा, बल्कि उससे जुड़े हुए तमाम चेहरे जो अभी अनाम हैं, वे अपना नकाब उतारते जाएंगे और उन्हें एक षड़यंत्रकारी के रूप में लोग जानेंगे।

इस षड़यंत्र का संबंध संसदीय राजनीति के बड़े खेल से है। जिसके खिलाड़ी अनेक हैं। सबसे बड़े खिलाड़ी बनने की विपक्ष में होड़ है। निशिकांत दुबे का आरोप है कि उद्योगपति गौतम अडानी के हितों को नुकसान पहुंचाने वाले सवाल वे उद्योगपति और गौतम अडानी के प्रतिद्वंदी हीरा नंदानी के पक्ष में पूछती थी। निशिकांत दुबे ने आरोप सबसे पहले नहीं लगाया। सुप्रीम कोर्ट के वकील जय अनंत देहाद्रई ने इसकी शुरूआत की थी। उन्होंने सीबीआई को शिकायत की कि हीरा नंदानी ग्रुप से पैसे लेकर वे सवाल पूछतीं हैं। इस पर निशिकांत दुबे ने जांच की मांग उठाई। जांच शुरू हो गई। इस तरह यह मामला आरोप-प्रत्यारोप तक सीमित नहीं है। इसके खिलाड़ी अनेक हैं।

क्या महुआ मोइत्रा राजनीतिक रूप से इस्तेमाल हो रही थी? उनका यह दावा है कि वे अभी भी ममता बनर्जी के प्रति निष्ठावान हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि वे अपनी पार्टी की लाइन पर काम कर रही थी। उनके इस कथन में क्या सचाई है? यह जांच से पता चलेगा। लेकिन जब से राहुल गांधी की राजनीतिक खुमारी टूटी है, तब से ही वे अडानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को एक बताने का दुष्प्रचार अभियान छेड़े हुए हैं। राहुल गांधी को एक राजनीतिक नेता के नाते इसका पूरा अधिकार है कि वे बोलें और अपना अभियान चलाएं। लेकिन उनके बोलने को सच या सच के करीब तभी माना जाएगा जब उनके कथन में कोई ऐसा प्रमाण हो, जो लोगों को लगे कि यह सच हो सकता है। इस मामले में बात उल्टी दिख रही है। अडानी के बहाने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को घेरने की एक साजिश  सामने आ रही है। उसी का खुलासा शुरू हो गया है। यह कार्य उद्योगपति दर्शन  हीरा नंदानी ने अपने दस्तखत से एक हलफनामे में किया है।

इस हलफनामे के कारण महुआ मोइत्रा जांच के दायरे में आ गई हैं। उसी हलफनामे में यह भी कहा गया है कि मोदी सरकार को बदनाम करने के लिए महुआ मोइत्रा ने अडानी पर निशाना साधने का रास्ता चुना। इसी का संबंध राजनीतिक भूकंप से है। विपक्ष की साजिश  का इससे खुलासा शुरू हो गया है। इसके सूत्रधार कौन हैं और एक हैं या अनेक हैं, यह जब पूरी बात सामने आएगी तो पता चलेगा। इस समय उसका अनुमान लगाया जा सकता है। वह यह कि विपक्ष के पास आरोप लगाने के लिए कोई ठोस मुद्दा नहीं है। यूपीए के दूसरे कार्यकाल में दो-तीन साल बाद ही भ्रष्टाचार के मामले उजागर होते गए। आंदोलनों की बाढ़ आ गई। अन्ना आंदोलन की याद ताजा है। आज विपक्ष इस प्रयास में है कि उसे कोई मुद्दा मिले।

यहां विपक्ष स्वयं साजिश  रचने के आरोपों से घिरता जा रहा है। इसका संकेत साफ है। विपक्ष का गठबंधन महुआ मोइत्रा पर मौन है। क्या वे अपनी लड़ाई खुद लड़ेंगी? अभी यही दिख रहा है। उनकी पार्टी और राहुल गांधी की चुप्पी इस बात को समझने के लिए पर्याप्त आधार देती हैं कि कोई भी इस साजिश  में सामने आने से बच रहा है। ऐसा क्यों है? यही इस बात का एक प्रमाण है कि यह मामला गंभीर है। राजनीतिक नेता यह समझ रहे हैं। वे एक बड़े जंजाल की खबर बाहर न आए, इसलिए चुप हैं और अपने-अपने बचाव की राजनीति करने लगे हैं। लेकिन जिस तरह महुआ मोइत्रा को अपना बचाव करना पड़ रहा है उससे अनेक सवाल निकलेंगे। उन सवालों को बार-बार पूछा जाएगा। जिससे हर बार इस मामले का कोई नया आयाम सामने खुलता दिखेगा। बहुत संभव है कि विपक्ष के नेता आपस में ही आरोप-प्रत्यारोप पर उतरें। इसका कारण यह है कि अपने बचाव में महुआ मोइत्रा जो-जो कहेंगी, वह विपक्ष के चेहरे से नकाब उतारने जैसा होगा। क्या इसमें मीडिया घरानों की भी कोई भूमिका है? वे घराने देसी हैं या विदेशी? ऐसे बहुत सारे सवाल उठेंगे। यह देखते रहने की बात है।

 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Name *