पहले मौसम की मार और अब कोरोना त्रासदी। हम कहीं के नहीं रहे। यह कहना है आम के बागवानों और कारोबारियों का। दोनों को गर्मी के मौसम का इंतजार रहता था। अप्रैल से जुलाई तक चार महीनों में बागवान और कारोबारी खास मुनाफा कमा लेते थे। इस बार कोरोना के चलते देशव्यापी लाकडाउन की वजह से 75 से 80 फीसदी तक नुकसान होना तय है। उल्लेखनीय है कि भारत मे आम की फसल पर इस बार दोहरी मार पड़ी है। देर तक ठंड पड़ने के कारण इस बार बौर ही कम आये थे। बौर आने के बाद ओला तथा बारिश से बौर गिर गए। इतने झंझावातों के बाद जब फसल तैयार होने को हुई तो कोरोना महामारी आ गई। अब बागवान और कारोबारी परेशान हैं। अप्रैल की शुरुवात में ही बाजार में बिकने वाला अल्फांसो (हापुस) का उत्पादन मुख्य रूप से महाराष्ट्र के रत्नागिरी, सिंधुदुर्ग आदि जिलों में होता है।
अलफांसो की विदेशों अमेरिका, यूरोप और खाड़ी के देशों में अधिक रहती है। इस बार कोरोना वायरस के संक्रमण के चलते आम के निर्यात पर ही पाबन्दी लग गई है। कोरोना ने इस बार सब चौपट कर दिया। बागवानों और कारोबारियों का कहना है कि इस समय आम तैयार है लेकिन इसे न तो निर्यात कर पा रहे हैं और न ही घरेलू मंडियों में ही खपा पा रहे हैं। अल्फांसो की मांग घरेलू बाज़ार में भी पर्याप्त होती है लेकिन देशव्यापी लॉकडाउन की वजह से देश के किसी हिस्से में अल्फांसो को भेज पाना संभव नहीं हो पा रहा है। लॉकडाउन के चलते पेड़ से आम की तुड़ाई, छटाई, सफ़ाई और पैकेजिंग के लिए मजदूर भी नहीं मिल रहे हैं। लखनऊ के फल व्यापारी अवधेश वर्मा कहते हैं कि पहले चैत नवरात्रि के बाद हाफुस कि खेप आ जास्ती थी। इस बार सबकुछ बन्द है। वह कहते है कि इस बार महाराष्ट्र का राजा अल्फांसो या हाफुस देश की प्रमुख मंडियों में भी नहीं जा पा रहा है। अगर ऐसा ही रहा तो हम सब का क्या होगा?
उत्तर भारत में आम की फसल अभी तैयार हो रही है। मई में आम की अगेती फसल तैयार हो जाएगी। अन्य किस्में जुलाई तक रहेंगी। लेकिन इस बार आम के बागवान और कारोबारी दोनों ही निराश हैं। दशहरी आम के लिए दुनिया में मशहूर लखनऊ के मलिहाबाद और माल की बागों में सन्नाटा पसरा है। यही हाल मुजफ्फरनगर, सहारनपुर और अमरोहा आदि क्षेत्र की बागों का है। निर्यात तो छोड़िए देश के दूसरे हिस्सों में ही आम नही भेज पाएंगे। आल इंडिया मैंगो ग्रोवर एसोसिएशन उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष शिवशरण सिंह गहरवार कहते हैं कि इस बार आम जे बौर लगभग 30 फीसदी ही आये थे। उसके बाद बारिश और ओले से आम के बौर काफी बर्बाद हो गए थे और जब फल तैयार होने का समय आया तो कोरोना आ गया। शिवशरण सिंह कहते हैं कि इस साल आम का निर्यात तो संभव नही है लेकिन देश के भीतर आम भेजने का प्रयास कर रहे हैं।
वह जल्द ही एक प्रतिधिमण्डल के साथ इस संदर्भ में मुख्यमंत्री से मिलेंगे। उनका कहना है कि सरकार को इसके लिये परमिट जारी करना चाहिए। उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश में ही आम की सोलह बेल्ट है, जिनमें दशहरी, चौंसा, लँगड़ा, फ़ाज़ली, मल्लिका, गुलाब खस और आम्रपाली आदि किस्मों का उत्पादन होता है। इनका निर्यात यूरोपीय देशों, अमेरिका और खाड़ी देशों के साथ ही जापान आदि एशियाई देशों में भी होता है। उत्तर प्रदेश से ही लगभग 250 टन हर साल निर्यात किया जाता है। इस बार आम उत्पादकों और कारोबारियों को बहुत नुकसान उठाना पड़ेगा