23 नवंबर को महाराष्ट्र की सत्ता में कौन आएगा? ये सवाल महाराष्ट्र और राजनीति में दिलचस्पी रखने वाले हर शख़्स ने ज़रूर जानना चाहा होगा. इस समय पूरे प्रदेश में विधानसभा चुनाव की चर्चा चल रही है.इस चुनाव में कौन सा फैक्टर काम करेगा? किन जातीय समीकरणों का गणित चलेगा? मराठवाड़ा में क्या होगा? विदर्भ में कौन आगे होगा? कौन जीतेगा मुंबई की जंग? कुछ ही महीने पहले हुए लोकसभा चुनाव में महाविकास अघाड़ी को मिली सफलता के बाद कई राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना था कि यही जीत लोकसभा के बाद विधानसभा चुनाव में भी दोहराई जा सकती है. लेकिन मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने राज्य भर में विभिन्न योजनाओं को लागू करके चुनाव में वापसी करने की कोशिश की है.
अभी ऐसा नहीं लगता कि लोग किसी पार्टी के पक्ष में झुक रहे हैं. लोकसभा चुनाव में इन दोनों पार्टियों को मिले वोटों के बीच एक फीसदी का अंतर था. दूसरे शब्दों में कहें तो दोनों की ताक़त एक जैसी थी. इसलिए संभावना है कि अधिकांश मुकाबले करीबी होंगे.” हर चुनाव क्षेत्र में कम से कम 6-7 प्रभावी उम्मीदवार चुनाव लड़ रहे हैं इसलिए लगता है कि इस चुनाव की भविष्यवाणी कोई नहीं कर सकता.
महाविकास अघाड़ी के पास यह साबित करने का मौका था कि वह महायुति से कैसे अलग हैं. उन्होंने यह मौका गंवा दिया. दूसरी तरफ महायुति ने लोकसभा चुनाव में हार से उबरने की कोशिश की. उनकी कल्याण योजना ही उनका सबसे बड़ा हथियार है. जिनमें लाड़की बहिण, एचपी पंप, किसानों के लिए बिजली माफ़ी जैसी योजनाएं शामिल हैं. जब सरकार के खज़ाने में पैसे नहीं थे तब उन्होंने लाड़की बहिण योजना के लिए 46,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने इस योजना का खूब प्रचार-प्रसार किया.” इस योजना के प्रचार-प्रसार के कारण लोगों को लगा कि महायुति कुछ दे रही है. इसके जवाब में महाविकास अघाड़ी ने कुछ नहीं किया. इस बार शिंदे को लोकसभा से ज्यादा सफलता मिलेगी क्योंकि उनके प्रति थोड़ी सहानुभूति है.”
लोग जागरूक हो गए हैं. वे निश्चित रूप से जानते हैं कि किसे वोट देना है. महायुति को इस भ्रम में नहीं रहना चाहिए कि जो मध्य प्रदेश में हुआ वह महाराष्ट्र में किया जा सकता है. महाराष्ट्र अन्य राज्यों से अलग है. महाराष्ट्र की अपनी स्थिति है इस राज्य को एक प्रगतिशील राज्य कहा जाता है. लेकिन इस राज्य में कई बड़े झगड़े और दंगे हुए हैं, लेकिन आख़िरकार महाराष्ट्र की मुख्य संरचना नहीं बदली है.”
महाराष्ट्र चुनाव में जाति सबसे बड़ा फैक्टर बनने जा रही है. महाराष्ट्र में जातिवाद का कोई रूप नहीं है लेकिन आरक्षण और क्षेत्र के कारण जाति बहुत महत्वपूर्ण हो गई है. राजनीतिक दलों का पहला लक्ष्य जातिगत गणित को सुलझाना प्रतीत होता है.”
बीजेपी ने मराठा आरक्षण की मांग के कारण होने वाले नुकसान से बचने के लिए मराठा उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की योजना बनाई है. ताकि ये उम्मीदवार अपने मराठा वोट लेकर आएं और बीजेपी ओबीसी वोटों को अपने खेमे में कर ले और वह उम्मीदवार जीत जाए.” महाराष्ट्र में ओबीसी बीजेपी के पीछे एकजुट होंगे. ऐसा इसलिए है क्योंकि पिछले पांच वर्षों में देवेंद्र फडणवीस ने मराठा एकीकरण के पैटर्न को लागू किया है. शरद पवार के बारे में बात करते हुए प्रकाश पवार ने कहा, ”पहले से ही शरद पवार की छवि सिर्फ मराठा नहीं बल्कि ओबीसी और मराठा की है, इसलिए जो हरियाणा में हुआ वह महाराष्ट्र में होता नहीं दिख रहा है.”
लोकसभा चुनाव के बाद महाविकास अघाड़ी बहुत आगे थी. लेकिन अब दोनों पक्ष बराबरी पर चल रहे हैं. पिछले डेढ़ महीने में महायुति ने अंतर पाट दिया है. आज कोई भी मोर्चा जीत का दावा नहीं कर सकता. महाराष्ट्र का चुनाव हरियाणा की तर्ज़ पर नहीं, बल्कि महाराष्ट्र को आकार देने वाला चुनाव है. अगर इसमें बीजेपी जीतती है तो कहा जा सकता है कि बीजेपी ने राजनीति का पूरा चेहरा ही बदल दिया है.