टीवी रिपोर्टर के छझ वेश में तीन शोहदों द्वारा माफिया अहमद-ब्रदर्स (अतीक और अशरफ) को भून देना, हम श्रमजीवी पत्रकारों के लिए वीभत्स हादसा है। क्योंकि पत्रकारिता हमारे लिए व्रत हैं, बाद में वृत्ति। अतः प्रयागराज का जघन्यकांड एक गंभीर चेतावनी है। हालांकि भारत सरकार का गृह मंत्रालय कल ही सुरक्षा की दृष्टि से जोखिमभरी घटनाओं की रिपोर्टिंग पर नियमावली तत्काल जारी कर रहा है। लखनऊ में मुख्यमंत्री आवास पर पहरा तो बढ़ा दिया गया है। मगर मूल मसला है कि पत्रकार का कार्ड शासन ने थोक में अंधाधुंध जारी किया है। राजधानी में ही हजार हो गए हैं। कैसे ? क्यों ? सूचना निदेशालय हुलिया देखकर मान्यता देना बंद करे। ये तीन कथित संवाददाता फर्जी पहचानपत्र, वीडियो कैमरा, माईक आदि लिए थे। इनमें लवलेश तिवारी तो अपने आप को “महाराज” कहता है। उसकी आयु महज 22 साल है, जब कि मान्यता कार्ड पाने के लिए कम से कम पांच वर्ष का पत्रकारी कार्य होना अनिवार्य है। अर्थात फर्जी था। दूसरा हत्यारा अरुण मौर्य तो केवल 18 का है।
एक घृणित तथ्य का उल्लेख यहां लाजिमी है। राजीव गांधी की हत्या का रचयिता शिवरासन तमिलनाडु सरकार का मान्यताप्राप्त संवाददाता था। हाथ में बालपेन और नोटबुक थामें रहता था। गांधीजी का हत्यारा नाथूराम गोडसे भी पुणे के लुगदी साप्ताहिक का संपादक था। तालिबानियों के शत्रु अहमदशाह मसूद, शेरे पंजशीर, को 2007 में अलकायदा के बमबाजों ने संवाददाता बनकर उड़ा दिया था। आजकल तो मोबाइल फोन से ही कैमरा का काम भी हो जाता है। अतः जांच का कारण अधिक गंभीर और अपरिहार्य हो जाता हैं।
योगी आदित्यनाथजी से मैं स्वयं सारे मान्यता कार्डों की पड़ताल का अनुरोध कर चुका हूं। फर्जी पत्रकारों की सूक्ष्म जांच हो। इसीलिए कि रवि और कवि की भांति रिपोर्टर भी बेरोकटोक, बेखौफ हर जगह पहुँच जाते हैं। मुनि नारद के वंशज जो ठहरे ! आश्वासन देने के बावजूद अभी तक ऐसी शासकीय जांच हुई ही नहीं है। आज लखनऊ के हजार मान्यताप्राप्त संवाददाताओं में वास्तव में कितने कार्यरत हैं ? मसलन, एक शर्त मान्यता की है कि प्रार्थी आधार कार्ड को नत्थी करे। सरकारी नियम है कि हर संवाददाता की L.I.U. जांच हो। ईमानदारी से ऐसी जांच हो, तो जालसाजी कटेगी। कई ऐसे मान्यताप्राप्त हैं जो राजधानी लखनऊ में रहते ही नहीं। जिलों के निवासी हैं। जाली पता दे दिया है, क्योंकि केवल लखनऊवासी ही राज्य का मान्यताप्राप्त संवाददाता हो सकता है।
मुझे स्मरण आता है 1981 का प्रसंग। तब यूपी राज्य मान्यता समिति का मैं सदस्य था। मेरे साथ NUJ के अच्युतानन्द मिश्र भी थे। तब तक इंदिरा गांधी वापस सत्ता पर आ गई थीं। महाबली आरके धवन भी। धवन ने किसी पत्रकार की मान्यता हेतु मुख्यमंत्री के मार्फत सूचना सचिव/निदेशक को कहा था। पर हम लोगों ने नहीं होने दिया क्योंकि वह व्यक्ति कांग्रेस पार्टी कार्यकर्ता था, संवाददाता नहीं। आज अधिकांश मान्यताप्राप्त संवाददाता क्या नियमानुसार हैं ? मैंने योगीजी से आग्रह भी किया था कि इस प्रकार की जांच सर्वप्रथम मेरे ही मान्यतापत्र की पड़ताल से शुरू की जाए। मेरे विषय में सारे उल्लिखित नियमों, शर्तों, आवश्यकताओं, अर्हताओं के आलोक में समुचित परीक्षा हो। यदि त्रुटि पाई जाए तो मेरी मान्यता निरस्त कर दी जाए। यहां उल्लेख कर दूं की कि मायावती सरकार ने द्वेषवश मेरी मान्यता (रोहित नंदन निदेशक थे) रद्द कर दी थी। उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने मेरी मान्यता बहाल की। तब न्यायमूर्ति यूके धवन की खंडपीठ ने कठोर शब्दों में पूछा था : “मायावती शासन दुनिया की मीडिया को क्या संदेश देना चाहता है ? वरिष्ठतम संवाददाता की मान्यता अकारण काट दी ?” बहाली का हुक्म दिया।
योगीजी के शासन से मैं फिर सविनय अनुरोध करता हूं कि सर्वप्रथम मेरी ही जांच हो। मैं भारत के छः राज्यों में मान्यता प्राप्त संवाददाता रहा हूं। भारत के शीर्षतम अंग्रेजी दैनिक “दि टाइम्स ऑफ इंडिया” में चार दशकों तक कार्यरत रहा। भारतीय प्रेस परिषद का छः वर्षों तक सदस्य रहने के अलावा भारत सरकार की प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो की केंद्रीय मान्यता समिति का दो बार सदस्य रहा। भाचावत तथा मणिसाणासिंह वेतन बोर्डों का नौ वर्षों तक सदस्य रहा। बंगाल, गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्र, उत्तर प्रदेश विधान मण्डलों की तथा राज्यसभा की रिपोर्टिंग कर चुका हूं। पत्रकारी अनुभव के हिसाब से मैं नेहरू से नरेंद्र मोदी तक की रिपोर्टिंग मैं कर चुका हूँ। एक बुद्धिकर्मी हूं। मेहनत द्वारा हक मांगा और हासिल किया है। कोई कृपादान अथवा फर्जीवाड़ा से नहीं ! इसीलिए चाहता हूं कि मान्यताप्राप्त संवाददाता की गरिमा संजोयी जाये। अवनति खत्म हो। योगीजी से एक और आग्रह। जो भी समाचार संकलन करते हैं, लिखते पढ़ते ही उन्हें ही सुविधायें उपलब्ध हो।
अब एक जिक्र विभिन्न मुख्यमंत्रियों और मीडिया के सम्बन्धों में। मायावती की प्रेस कॉन्फ्रेंस में तो मैं जाता नहीं था। वे इमला लिखाकर चली जाती थीं। एक मुख्यमंत्री आए थे सुल्तानपुर वाले पं. श्रीपति मिश्र। उन्हें समझ ही नहीं चला समाचारपत्र है क्या ? यूं वे विधानसभा अध्यक्ष भी रहे थे। एक बार श्रमजीवी पत्रकारों की समस्याओं पर चर्चा करने से एक प्रतिनिधिमंडल लेकर इस कांग्रेसी मुख्यमंत्री के पास गया था। साथियों का परिचय मैंने कराया कि फलां लखनऊ श्रमजीवी पत्रकार यूनियन, यूपी पत्रकार यूनियन तथा इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नलिस्ट्स (IFWJ) के पदाधिकारी हैं। पंडित श्रीपति मिश्र बोले : “अच्छा तीन संगठनों के हैं ?” मेरा जवाब था : “नहीं। जैसे आपकी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी, प्रदेश कमेटी, जिला कमेटी, शहर कमेटी हैं”। तब उन्हें कौंधा। राजा विश्वनाथ प्रताप सिंह को मैंने पाया कि सुबह वे दैनिकों में राज्यसंबंधी समाचार पढ़कर जिलाधिकारियों से फोन पर ही जवाब तलब कर लेते थे।
मैंने IFWJ के अध्यक्ष के नाते पत्रकार हित में कई कल्याणकारी योजनायें देश भर में लागू कराईं। अतः योगी जी से आग्रह है कि हम मान्यताप्राप्त संवाददाताओं की भी दशा सुधारिये। हमें लुगदी न होने दें।
[लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं]