महाराष्ट्र के हिंगोली जिले के कडोली कस्बे में जनमे चंडिका दास अमृत राव देशमुख को दुनिया नानाजी देशमुख के नाम से जानती है। वे 11 अक्तूबर, 1916 को पैदा हुए थे। विवादित ढांचे में मूर्तियां रखे जाते वक्त नानाजी भी अयोध्या में मौजूद थे।
नानाजी का लंबा और घटनापूण जीवन अभाव और संघर्षों में बीता। वे 1930 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में शामिल हुए। वे अविवाहित रहे और पूरा जीवन समाज-सेवा में लगा दिया। सरसंघचालक गुरुजी ने उन्हें उत्तर प्रदेश का प्रांत प्रचारक बनाया।
आज देश भर में शिक्षा की मजबूत चेन बनी सरस्वती शिशु मंदिर की स्थापना नानाजी ने गोरखपुर से शुरू की थी। 1978 में नानाजी सक्रिय राजनीति छोड़कर ‘दीनदयाल शोध संस्थान’ के जरिए गोंडा, नागपुर, बीड़ और अमदाबाद में ग्राम विकास के काम में लगे।
नानाजी देशमुख परम रामभक्त थे। उन्होंने अपनी कर्मभूमि का केंद्र भगवान राम की तपोस्थली चित्रकूट को बनाया। 6 दिसंबर, 1992 को विवादित ढांचा गिराए जाने के बाद नानाजी देशमुख ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है। यह प्रस्तावित कारसेवा का हिस्सा नहीं था, लेकिन इसके बारे में क्षमाशील होने की जरूरत नहीं थी।