कोराना की दूसरी लहर में हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए? यह प्रश्न इसलिए है क्योंकि राजनीतिक नेतृत्व इस संकट में भी अपनी सद्बुद्धि को जगा नहीं पा रहा है। वास्तव में महामारी अब आई है। जिसे हम पहली लहर कह रहे हैं वह तो करोना की संक्रमण सूचना थी। इतिहास में जैसा कहर महामारी ढ़ाहती रही है वैसा इस समय चारो तरफ दिखाई पड़ रहा है। यह समय इसलिए असाधारण संकट का है। जिसे कोरोना महामारी के नाम से हम जानते हैं। इसकी यह दूसरी लहर पहले से अधिक भयावह हो गई है। नये लक्षणों से यह प्रगट हो रही है। रोज इसका कहर बढ़ रहा है।
ऐसे समय में सामान्य नियम काम नहीं आते। जीवन को अपने नये नियम बनाने पड़ते हैं। समाज को भी असामान्य परिस्थितियों में परंपरागत व्यवहार से हटकर नई खोज करनी पड़ती है और यह कार्य भारत में जिसे करना चाहिए वह राजनीतिक नेतृत्व है। हमने संसदीय लोकतंत्र अपनाया है जिसमें सत्ता और विपक्ष की दो पटरियों पर लोक कल्याण की रेल चलती है।
सत्ता पक्ष का नेतृत्व राष्ट्रीय स्तर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कर रहे हैं। जो अपनी सक्रियता, समर्पण और लोकहित के लिए रात-दिन एक करने के लिए जाने जाते हैं। ऐसे नेतृत्व को विपक्ष सहयोग करे। इसकी पहले से कहीं ज्यादा बड़ी जरूरत है। राजनीतिक नेतृत्व से ही इस व्यवस्था में पहल की उम्मीद की जाती है। क्या राजनीतिक नेतृत्व का रवैया जैसा कि उससे उम्मीद की जाती है, वैसा है। इसे हाल के उदाहरणों से सही-सही समझना संभव है।
एक संदर्भ तो प्रधानमंत्री के राष्ट्र को संबोधन है। उन्होंने बिना देर किए पूरे देश को आज की परिस्थिति के बारे में बताया। अपील की कि राज्य सरकारें लोगों को बचाने और अर्थव्यवस्था को सुधारने के लक्ष्य से प्रेरित होकर काम करें। उपाय के तौर पर उन्होंने सलाह दी कि राज्यव्यापी लॉकडाउन इस समय रामबाण नहीं हो सकता। छोटे-छोटे क्षेत्रें में कंटेंमनेंट जोन बनाना चाहिए जिससे कि इस लहर को रोका जा सके। ‘दवाई भी और कड़ाई भी’ इस मंत्र को उन्होंने दोहराया। ऑक्सीजन की कमी को दूर करने के लिए व्यापक व्यवस्था का आश्वासन दिया। यह भी बताया कि भारत में वैक्सीन की कमी नहीं है और जितनी जरूरत होगी उतनी उत्पादन की अतिरिक्त व्यवस्था की जा रही है।
दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का जो बार-बार बयान आ रहा है वह इस समय सहयोग का नहीं है, वातावरण को बिगाडने वाला है। उन्हीं के नक्शे कदम पर राहुल गांधी और प्रियंका भी चल रही हैं। कांग्रेस का नेतृत्व परिस्थितियों की गंभीरता से अवगत होते हुए भी ऐसा क्यों कर रहा है, लोग जानना चाहते हैं।
स्वतंत्र भारत के इतिहास में ऐसी महामारी का सामना पूरा देश पहली बार कर रहा है। लेकिन पाकिस्तान और चीन से युद्धों में कई बार सामना करने का भारत को अनुभव है। उसे याद करें और यह भी याद करने की जरूरत है उस समय जो भी विपक्ष था वह भारत सरकार को पूर्ण सहयोग देने के लिए तत्पर दिखाई पड़ा। उसका परिणाम यह हुआ कि 1962 की लड़ाई में राजनीतिक नेतृत्व की एकता और एकजुटता से एक संदेश गया। गांव-गांव में एकता की लहर चली। ऐसा ही दृश्य 1965 और 1971 में दिखाई पड़ा। यह परिस्थिति उन युद्धों से भी ज्यादा गंभीर है। डॉ- चंद्रकात लहरिया, डॉ- गगनदीप कांग और डॉ- रणदीप गुलेरिया की नई पुस्तक ‘टिल वी विन इंडिया’ज फाइट एगेन्सट द कोविड 19 पैंडमिक’ आई है।
यह पुस्तक भी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील और उनके विश्लेषण का समर्थन करती है। विपक्ष को इन विशेषज्ञों के व्यवहार से भी सीखना चाहिए। कांग्रेस नेतृत्व को स्वास्थ्य मंत्री डॉ- हर्षवर्धन ने सही जवाब दे दिया है। बताया है कि कोरोना की दूसरी लहर के लिए कांग्रेस शासित राज्य अधिक जिम्मेदार है। इस समय हमें अपने आचरण में प्रार्थना, प्रयास और परस्परता का मंत्र उतारना चाहिए।