प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लिखा है, ‘भारतीय संस्कृति के इन दो शब्दों-वसुधैव कुटुंबकम् में एक गहरा दार्शनिक विचार समाहित है। इसका अर्थ है, पूरी दुनिया एक परिवार है। यह ऐसा सर्वव्यापी दृष्टिकोण है, जो हमें एक सार्वभौमिक परिवार के रूप में प्रगति करने के लिए प्रोत्साहित करता है। एक ऐसा परिवार, जिसमें सीमा, भाषा और विचारधारा का कोई बंधन नहीं होता। जी-20 की भारत की अध्यक्षता के दौरान यह विचार मानव-केंद्रित प्रगति के आह्वान के रूप में प्रकट हुआ है।’ अंतरराष्ट्रीय व्यापार संवर्धन संगठन (आईटीपीओ) के परिसर में जी-20 शिखर सम्मेलन होने जा रहा है। जिसकी अध्यक्षता एक दिसंबर, 2022 से भारत कर रहा है। यह कार्यकाल 30 नवंबर, 2023 को पूरा होगा। इसी अवधि में शिखर सम्मेलन की अध्यक्षता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी करने जा रहे हैं। जहां शिखर सम्मेलन होने जा रहा है, वह परिसर सालों से एक नाम से जाना जाता है, वह नाम है, प्रगति मैदान।
जिसने पुराने प्रगति मैदान को देखा है, वह आज चकित होगा और साथ ही साथ गौरवान्वित भी होगा। आखिर ऐसा क्यों? इसलिए नहीं कि प्रगति मैदान के चारों तरफ दूर-दूर तक दीवालें चित्रकारी से सजी हुई हैं, बल्कि इसलिए कि इस परिसर का सचमुच कायाकल्प हो गया है। प्रगति मैदान अंदर-बाहर से पूरी तरह रूपांतरित हो गया है। यह रूपांतरण सांस्कृतिक है। इसकी समझ भारत के राजनेताओं को रही है, लेकिन उसे साकार रूप देने का अवसर इस समय मिला है। जी-20 का शिखर सम्मेलन ऐसा ही एक सुअवसर है। इस अवसर को कई साल पहले ही पहचान लिया गया था। तभी तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रगति मैदान के कायाकल्प की रूप-रेखा बनवाई। इस परिसर की पहचान है, भारत मंडपम।
वह भव्य है। उसकी भव्यता को नया विचार और नया प्रतीक जो दे रहा है, वह नटराज की मूर्ति है। भारत मंडपम के बाहर अष्टधातु से बनी नटराज की इस मूर्ति को कुछ दिन पहले ही स्थापित किया गया है। यह विश्व की सबसे ऊंची नटराज की मूर्ति है। जो आकाश सरीखा है। इस मूर्ति के बनने की कहानी में परिकल्पना, प्रयास, परिश्रम, पुरूषार्थ और समन्वय के तत्व हर चरण में छिपे हुए हैं। उसे जो जानेगा, वह यह अनुभव कर सकेगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कल्पना को साकार करने में जिन व्यक्तियों, संस्थाओं और समूहों की सक्रियता रही है, उसमें इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र और संस्कृति मंत्रालय का योगदान रेखांकित करने योग्य है। क्या इससे लोग अवगत हैं? ऐसी अनेक बातें हैं, जिसकी जानकारी दी जानी चाहिए।
स्वतंत्र भारत की कल्पना करने वाले महापुरूषों को अगर हम पढ़ें, तो एक बात वे लोग बार-बार कहते रहे हैं कि भारत में विश्व को नेतृत्व देने की क्षमता है। स्वतंत्र भारत का नेतृत्व जिन राजनेताओं ने किया और जो संविधान सभा में भी थे, उनके भाषण अगर पढ़ें, तो वे भी यह कहते हुए पाए जाते हैं कि स्वतंत्र भारत को विश्व के रंगमंच पर अपनी बड़ी भूमिका निभानी है। यह उनकी सदिच्छा थी। एक सपना भी था। उसे सुनिश्चित आकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिया है। जी-20 की अध्यक्षता पहले भी भारत को मिली है। लेकिन तब और अब में बड़ा अंतर है। इसे भारत के लोग जितना अनुभव कर रहे हैं, उससे कहीं ज्यादा दुनिया का नेतृत्व मानने लगा है कि आज विश्व जिन परिस्थितियों में पड़ गया है, उससे निकलने के लिए जी-20 का शिखर सम्मेलन एक अवसर है। यह बड़ा सुअवसर भी है कि यह शिखर सम्मेलन भारत में हो रहा है। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री का यह कथन अत्यंत महत्वपूर्ण है।
इस कथन की सार्थकता को तीन बातें स्वर देती हैं। एक, वसुधैव कुटुंबकम्। दो, भारत मंडपम। तीन, नटराज। शिखर सम्मेलन में जो भी आएंगे, वे भारत मंडपम में प्रवेष करने से पहले नटराज का साक्षात दर्शन करेंगे। वास्तव में वसुधैव कुटुंबकम् और नटराज की अवधारणा में इस सृष्टि का रचना दर्शन समाया हुआ है। नटराज की मूर्ति में सृष्टि की भारतीय अवधारणा प्रकट होती है। सृष्टि परमात्मा से अलग नहीं है। सृष्टि उसका ही फैलाव है। इसका अर्थ यह है कि जो सृष्टि है, उसमें ही परमात्मा है, वह उससे अलग नहीं है। मानवता शब्द में यही दृष्टि है। नटराज की मूर्ति बताती है कि परमात्मा नर्तक की तरह है। वह नृत्य है और नृत्यकार भी है। ये दोनों रूप अलग-अलग नहीं हैं। अगर नृत्यकार चला जाए, तो नर्तन नहीं बचेगा, वह भी इसी के साथ चला जाएगा। भारत ने परमात्मा की नटराज की मूर्ति बनाई है। उस परमात्मा के शिव स्वरूप को नटराज कहने की परंपरा अनादि काल से है।
नटराज से अभिप्राय यह है कि यह जो नृत्य है विराट, यह उससे अलग नहीं है, यह सारा का सारा नृत्य नृत्यकार ही है, नर्तक ही है। शिखर सम्मेलन का नेतृत्व नटराज की मूर्ति को देखकर अगर नटराज के संदेश को समझें, तो वह समझ सकेगा कि सृष्टि को बनाने में हर व्यक्ति का उतना ही हाथ है, जितना कि दूसरे का होता है। सृष्टि में मनुष्य है, तो जीवजंतु भी है। पंचतत्व भी है। इसीलिए प्रधानमंत्री ने अपने लेख में लिखा है कि ‘भारत में प्राचीनकाल से प्रकृति के साथ सामंजस्य बिठाकर आगे बढ़ना हमारा आदर्श रहा है।’ वे इसे जलवायु परिवर्तन की समस्या से उबरने के लिए एक सूत्र के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसा सूत्र जिसका बड़ा भाष्य हो सकता है। संभव है, शिखर सम्मेलन से वह भाष्य निकले।
नटराज की मूर्ति का स्पष्ट संदेश है, जी-20 शिखर सम्मेलन के हे कर्णधारों!, आप स्रष्टा भी हैं और सृष्टि भी। आप नर्तक भी हैं और नृत्य भी। जब तक आप समझते हैं कि आप सिर्फ नृत्य हैं, नर्तक नहीं, तब तक आप भूल में हैं। क्योंकि नृत्य हो ही नहीं सकता नर्तक के बिना। सृष्टि हो ही नहीं सकती स्रष्टा के बिना, अगर स्रष्टा उसके भीतर मौजूद नहीं है। वह आपके भीतर भी मौजूद है। नटराज की मूर्ति के संदेश में विश्व के नेतृत्व समूह को एक चेतावनी भी छिपी है, वह यह कि नेतृत्व समूह को स्रष्टा और सृष्टि की खबर नहीं है, इसलिए ही समस्या है और परेशानी भी है। वह परेशानी दूर हो सकती है, अगर वे नटराज की शरण में आ जाएं।
ऐसी दिव्यता है, नटराज की मूर्ति में। नटराज अर्थात शिव का एक स्वरूप। शिव अर्थात कल्याण। इसलिए यह बताना ही चाहिए कि इस नटराज की मूर्ति किन-किन विशेषताओं से भरी-पूरी है। यह अष्टधातु की है। 27 फीट ऊंची है। इस तरह की नटराज मूर्ति के निर्माण की परंपरा पुरानी है। यह कम से कम 15 सौ साल पुरानी है। इसका एक शिल्प शास्त्र है। यह मूर्ति भारत के दक्षिणी छोर पर बनी है। जिसे बनाने में करीब 6 महीने लगे हैं। इसे इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की टीम ने रात-दिन एक कर बनवाया है। जिसे 100 शिल्पकारों ने अपने खून-पसीने से मूर्ति को गढ़ा। वह मूर्ति जब बनकर तैयार हो गई, तो उसे एक ट्रक पर दिल्ली लाया गया और कहीं कोई बाधा न हो, इसलिए रास्ते की हर रूकावटें दूर करने के प्रबंध पहले ही कर लिए गए थे।
नटराज की मूर्ति का एक दर्शन है। भारतीय साहित्य में वह जगह-जगह मिलता है। इस दर्शन में जीवन के विविध रूप हैं। आनंद कुमार स्वामी ने अपनी पुस्तक ‘डांस ऑफ शिवा’ में उसका वर्णन इस तरह किया है कि जो उसे पढ़ेगा, वह एक नए विचार संसार में प्रवेश कर सकेगा। वह यह समझ सकेगा कि भारत का जीवन दर्शन अनंत है। जिसमें विश्व समाया हुआ है। इसलिए असीम है। नटराज की मूर्ति उस असीम ब्रह्मांड का प्रतीक है। ऐसे प्रतीक से जी-20 के शिखर सम्मेलन को नया अर्थ प्राप्त हुआ है।