जम्मू-कश्मीर में नेशनल कॉन्फ़्रेंस की सरकार बन गई है. उमर अब्दुल्लाह मुख्यमंत्री बने हैं. कांग्रेस इस सरकार को बाहर से समर्थन दे रही है. जम्मू-कश्मीर में 18 सितंबर से एक अक्तूबर के बीच 90 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए. नतीजों की घोषणा 8 अक्टूबर को हुई. यहां 10 साल पहले चुनाव हुए थे और तब से अब तक अनुच्छेद 370 ख़त्म हो चुका है, जम्मू-कश्मीर अब केंद्रशासित प्रदेश है. अब यहां नई विधानसभा और नए मुख्यमंत्री के पास वैसी शक्तियां नहीं हैं जो एक राज्य की विधानसभा और मुख्यमंत्री के पास होती हैं.अब जम्मू-कश्मीर एक केंद्र-शासित प्रदेश है इसलिए नई विधान सभा और नए मुख्यमंत्री के पास वैसी शक्तियां नहीं हैं जो एक राज्य की विधान सभा और मुख्यमंत्री के पास होती हैं.
दस अक्टूबर को जारी किए गए नए जम्मू और कश्मीर पुलिस (गज़ेटेड) सेवा भर्ती नियम, 2024 के तहत ये कहा गया है कि पुलिस में की जाने वाली सभी सीधी भर्तियां जम्मू-कश्मीर लोक सेवा आयोग करेगा. साथ ही प्रमोशन या पदोन्नति के मामले डिपार्टमेंटल प्रमोशन कमिटी (डीपीसी) तय करेगी. अतीत में पुलिस विभाग में रिक्तियों को भरने के लिए जम्मू-कश्मीर का अपना भर्ती बोर्ड था.
संशोधित नियमों के मुताबिक़ जम्मू-कश्मीर पुलिस लेफ़्टिनेंट गवर्नर के नियंत्रण में आती है और उसके कामकाज में मुख्यमंत्री की कोई भूमिका नहीं होगी. इस आदेश के एक दिन बाद 11 अक्टूबर को लेफ़्टिनेंट गवर्नर प्रशासन ने जम्मू और कश्मीर सिविल सेवा (विकेंद्रीकरण और भर्ती) अधिनियम, 2010 के तहत भर्ती नियमों में संशोधन को अधिसूचित किया.
इस संशोधन के मुताबिक़ जम्मू-कश्मीर के सर्विस सिलेक्शन बोर्ड को सरकार के सभी सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (पीएसयू), सरकारी कंपनियों, निगमों, और बोर्ड में सबोर्डिनेट सर्विसेज़ और नॉन-गज़ेटेड पदों के साथ-साथ चौथी श्रेणी (क्लास 4) की भर्तियां करने का भी अधिकार होगा.
इसी साल जुलाई में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक कार्यकारी अधिसूचना के ज़रिये ट्रांज़ैक्शन ऑफ़ बिज़नेस रूल्स में संशोधन करके जम्मू-कश्मीर के एलजी के प्रशासनिक अधिकारों को बढ़ा दिया था. इन नए नियमों के तहत एलजी को उन ऑल इंडिया सर्विसेज़ के कामकाज पर अंतिम अधिकार दिया गया था जिनमे केंद्र शासित प्रदेश की वरिष्ठ नौकरशाही शामिल है. नए नियमों के तहत एंटी-करप्शन ब्यूरो, डायरेक्टरेट ऑफ़ पब्लिक प्रॉसिक्युशन्स, जेल विभाग, और फॉरेंसिक साइंस लेबोरेटरी को भी एलजी के नियंत्रण में दे दिया गया. साथ ही इन नियमों में कहा गया कि एडवोकेट जनरल और अन्य लॉ अफ़सरों की नियुक्ति पर भी अंतिम मंज़ूरी एलजी की होगी.
जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट 2019 का सेक्शन 32(1) कहता है कि विधानसभा केंद्र शासित जम्मू-कश्मीर के लिए क़ानून बना तो सकती है, लेकिन ऐसा वो उन्हीं मामलों में कर सकती है, जो स्टेट लिस्ट (राज्य सूची) में शामिल हैं. लेकिन राज्य सूची में भी ‘पब्लिक ऑर्डर’ और ‘पुलिस’ से जुड़े मामलों पर केंद्र-शासित जम्मू-कश्मीर की विधान सभा क़ानून नहीं बना सकती. इसी तरह विधान सभा कॉन्करेन्ट लिस्ट (समवर्ती सूची) में दर्ज मामलों में तभी क़ानून बना सकती है अगर वो मामले केंद्र शासित प्रदेशों से सम्बंधित हों. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन एक्ट 2019 के सेक्शन 36 के मुताबिक़ वित्तीय मामलों से जुड़े कोई भी विधेयक लेफ़्टिनेंट गवर्नर की सिफ़ारिश से ही विधानसभा में पेश किए जा सकते हैं.