नया आयकर कानून समय की जरुरत

प्रज्ञा संस्थानकेंद्र सरकार आयकर से जुड़े क़ानून में नए स्तर पर बदलाव करने जा रही है. यह इनकम टैक्स एक्ट-1961 में होने वाला एक बड़ा बदलाव होगा.लोकसभा में 13 फरवरी को इसे पेश किया गया है .वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस साल का आम बजट पेश करते हुए बताया था कि सरकार नया इनकम टैक्स बिल लेकर आने वाली है. इनकम टैक्स बिल-2025 में इनकम टैक्स एक्ट-1961 की 823 पेज में की गई व्याख्या को घटाकर 622 पेज में कियागया है. यह बिल संसद से पारित होने के बाद भारत में 64 साल पुराने इनकम टैक्स क़ानून की जगह ले लेगा.

इनकम टैक्स बिल 2025 में सीबीडीटी को कई नई शक्तियां दी गई हैं और इसके लिए अब संसद की मंज़ूरी की ज़रूरत नहीं होगी. इस विधेयक को संसद में पेश करने के बाद इसे संसद की स्थाई समिति के पास भेजा जा सकता है, ताकि इसपर और बेहतर सुझाव लिए जा सकें. हर साल बजट के बाद इनकम टैक्स से जुड़े बदलावों को इनकम टैक्स एक्ट में शामिल किया जाता है, लेकिन दशकों के बाद ऐसा मौक़ा है, जब इनकम टैक्स से जुड़े क़ानूनों में बदलाव की पहल की गई है.

विशेषज्ञों के मुताबिक़, नए इनकम टैक्स बिल की सबसे बड़ी ख़ासियत यह है कि इसमें इनकम टैक्स से जुड़े प्रावधानों की व्याख्या को आसान बना दिया गया है. इसका मक़सद व्याख्या की वजह से पैदा होने वाली जटिलताओं और क़ानूनी  मामलों को कम करना है.मौजूदा इनकम टैक्स के क़ानून में ऐसे प्रावधान हैं, जिनको आम लोग तो क्या कई बार सीए और वकील भी नहीं समझ पाते हैं ,और इसकी अलग-अलग व्याख्या करते है,जिसकी वजह से कई क़ानूनी मामले खड़े हो जाते थे.

अब जैसे इनकम टैक्स एक्ट में प्रीवियस ईयर और असेसमेंट ईयर की बात कही गई है, इसे समझना आम लोगों के लिए आसान नहीं है. इसे हटाकर नए बिल में फ़ाइनेंशियल ईयर (वित्त वर्ष) और टैक्स ईयर का इस्तेमाल किया गया है. इस बिल के प्रावधानों में इनकम टैक्स से जुड़े क़ानूनों को सरल बनाने की कोशिश की गई है ताकि यह आम लोगों की समझ में भी आ जाए .

इसमें पुराने क़ानून को तर्क संगत और आम लोगों के समझने लायक बनाया गया है गया है. इससे ग़ैर ज़रूरी प्रावधानों को हटा दिया गया है .मौजूदा इनकम टैक्स एक्ट में कई ऐसे प्रवाधान हैं, जिनको समझने के लिए कई खंडों में उनकी व्याख्या की गई है. इस तरह से किसी ख़ास टैक्स को जानने के लिए कई स्तर पर उसकी व्याख्या को पढ़ना ज़रूरी है.

नए विधेयक की शब्दावलियों को समझने के लिहाज से आसान बनाया गया है, ताकि विवाद कम हो सके. यह एक अच्छा प्रयास है.इनकम टैक्स से जुड़े क़ानून में हर साल बदलाव आते हैं और प्रक्रिया लगातार जारी रहती है. हर साल फ़ाइनेंस बिल में ही कई प्रावधान होते हैं.

इनकम टैक्स से जुड़े क़ानून में बदलाव के सुझाव हर साल आते हैं. इसलिए ज़रूरत एक ऐसे क़ानून की थी, जिससे हर साल बहुत सारे संशोधन न करने पड़ें. इसके लिए आम लोगों से भी सुझाव मंगाए गए थे. सरकार भी चाहती है कि यह प्रक्रिया आसान हो जाए, इसलिए इस बार के बजट में ओल्ड टैक्स रिजीम में कोई बदलाव नहीं किया गया और इनकम टैक्स में छूट की सीमा 12 लाख रुपये तक बढ़ा दी गई, ताकि लोगों को नए टैक्स रिजीम को चुनने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके. नए इनकम टैक्स बिल में टैक्स ईयर को नए तरीके से परिभाषित किया गया है, माना जा रहा है कि दुनियाभर के टैक्स सिस्टम से बेहतर तरीके से जुड़ने के लिए यह प्रावधान रखा गया है.

दुनिया भर के देशों में कैलेंडर ईयर होता है, लेकिन हमारे यहां प्रीवियस ईयर और असेसमेंट ईयर का चलन है, जो कई लोगों के लिए काफ़ी कन्फ़्यूज़न है और इसे आप हर साल इनकम टैक्स फ़ाइल करने वालों में देख सकते हैं.अगर साल 2023-24 के लिए इनकम टैक्ट फ़ाइल करना हो तो असेसमेंट ईयर साल 2024-25 होगा. आम लोगों को ये शब्दावलियां समझ में नहीं आती हैं. इनकम टैक्स से जुड़े कानून को आसान बनाने की दिशा में एक शुरुआत की गई है, जो एक महत्वपूर्ण बात है.

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