एक पुरानी कहावत है- ‘मैं सड़क पर हूं।’ इसका सीधा अर्थ तो यह है- ‘इस समय कोई काम नहीं है और मैं बेकार बैठा हूं।’ इस कहावत के विपरीत आज सड़क और विकास एक दूसरे के पूरक हो चुके हैं। अब सड़क पर होने का मतलब है कि व्यक्ति ‘विकास के पथ’ पर है। वह भी एक जमाना था, जब सड़क किनारे की जमीन अच्छी नहीं मानी जाती थी। अब स्थिति बदल गई है। आज किसी भी सड़क के किनारे की जमीन कीमती हो गई है।
साल 2014 में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनने के बाद सड़क परिवहन और राजमार्ग की कमान नितिन गडकरी के हाथ आई। गडकरी का अनुभव काम आया। वह महाराष्ट्र सरकार में पीडब्लूडी मंत्री रह चुके हैं। उनके काम के तरीके से देश अवगत था। अटल विहारी वाजपेयी सरकार के प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का खाका भी गडकरी ने खींचा। इस योजना ने देश के ग्रामीण जीवन की तस्वीर बदल दी। लेकिन यहां सवाल उठता है कि भारत में सड़कों का अतीत क्या था। सड़क बनाने की योजनाओं ने संस्थागत रूप कब लिया। क्योंकि अतीत की भूमि से ही भविष्य का अंकुर फूटता है। इसलिए अतीत को खगांलना जरूरी हो जाता है।
विकास और उद्योग की दृष्टि से देखें तो विकास का मार्ग सड़क से होकर जाता है। सभी स्कूल, अस्पताल और उद्योग लगाने से पहले बुनियादी ढांचे की बात करते हैं। यह तो ध्यान ही होगा कि बुनियादी ढांचे में सड़क की जरूरत ऊपर से गिनी जाती है। बिजली और पानी तो प्रमुख है ही। किसी भी देश को आर्थिक विकास के पथ पर अग्रसर होने के लिए वहां सड़क का होना अति आवश्यक है। दुर्भाग्य से आज भी हमारे देश में उतनी सड़कें नहीं हैं, जितनी होनी चाहिए। केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार आते ही इस सच्चाई को स्वीकारा गया कि देश की समृद्धि का रास्ता बिना अच्छी सड़क के साकार नहीं हो सकता है। तत्काल केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने देश में राजमार्गों को बनाने की एक योजना बनाई। मंत्रालय अपनी योजना के अनुसार पूरे देश में राजमार्गों का जाल बिछाने में जुटा है। केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री श्री नितिन गडकरी अक्सर एक वाक्य कहते हैं, ”संपन्नता से सड़कें नहीं बनाई जातीं, बल्कि सड़कों से संपन्नता आती है।”
यह बात अब निश्चित हो चुकी है कि सड़कें विकास की रीढ़ हैं। जैसे मनुष्य शरीर में रीढ़ का महत्व होता है, उसी तरह आधुनिक विकास में सड़कों काम महत्व है। सड़कें देश के सभी भागों और समाज के सभी वर्गों को स्पर्श करती है। वह कृषि से जुड़ा कार्य हो या व्यापार, उद्योग हो या सामाजिक सरोकार, सड़कें सबके लिए विकास का मार्ग हैं। सड़क किसी भी इलाके के विकास की बुनियाद होती है। इसी जरूरत को देखते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार पहले दिन से ही बुनियादी ढांचे को मजबूत करने पर बल दे रही है। सरकार ने रेलवे और सड़क के साथ-साथ शिपिंग के भी बेहतर संचालन पर जोर दे रही है।
भारत में लगभग 47 लाख किमी लंबी सड़क का जाल है। देश के कुल सामानों के आधे से अधिक की ढुलाई सड़क मार्ग के जरिए होती है। 85 प्रतिशत यात्री सड़क यातायात का ही उपयोग कर रहे हैं। इन तथ्यों पर विचार करते हुए मोदी सरकार ने देश में पहले से मौजूद राजमार्गों को बेहतर करने और नए गुणवत्तापूर्ण राजमार्गों को बनाने के लिए संकल्प व्यक्त किया। 26 मई, 2014 को जब नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री की जिम्मेदारी संभालने जा रहे थे, तब सड़क एवं परिवहन क्षेत्र में बड़ी चुनौतियां थीं। निवेश कम था। भ्रष्टाचार का बोलबाला था। हालांकि, यही दो बातें नहीं थीं, बल्कि राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण की रफ्तार भी काफी सुस्त थी। सड़क निर्माण संबंधी विभिन्न मंत्रालयों और विभागों के बीच लंबे समय तक फाइलें अटकी रहती थीं। सड़कों के लिए जमीन का अधिग्रहण भी कानूनी दांव-पेंच में उलझ कर रह जाता था। ऐसे कई बुनियादी सवाल थे, जिससे राजमार्ग के निर्माण कार्य में इच्छा के बावजूद अनावश्यक विलंब होता था। उन बाधाओं को दूर करने के लिए सरकार ने सभी पहलुओं का अध्ययन किया। फिर नियमों में परिवर्तन करते हुए भूमि अधिग्रहण के लिए उचित मुआवजा देने की नीति अपनाई। इस प्रक्रिया में कल तक जो किसान जमीन देने से आनाकानी करते थे, अब वे खुशी-खुशी अपनी जमीन दे रहे हैं। नरेन्द्र मोदी सरकार ने जो कदम उठाए थे, उसके परिणाम अब सामने आने लगे हैं।
सड़क परियोजनाओं की बाधाएं दूर करने के साथ-साथ लंबे समय से लंबित ठेके के विवादों का समाधान किया गया। नीतियों को पारदर्शी बनाते हुए ठेकों की ऑन-लाइन व्यवस्था की गई। इससे भ्रष्टाचार मुक्त व्यवस्था की शुरुआत हुई। केंद्रीय सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने देश के चारों तरफ सड़कों का जाल बिछाने की योजना बनाई है। इसमें सुदूर दक्षिण के सागर तटीय क्षेत्र से लेकर उत्तर के मैदानी और पूर्वोत्तर के पहाड़ी क्षेत्रों तक सड़कों का जाल बिछाया जा रहा है। पूर्वोत्तर राज्यों के सीमावर्ती क्षेत्रों में सड़क का निर्माण किया जा रहा है। नदियों पर पुलों का निर्माण किया जा रहा है। देश की भौगोलिक और प्राकृतिक विविधता इसमें बाधा नहीं बन रही है। सड़क परिवहन व राजमार्ग मंत्रालय ने एक तरफ समुद्र तटीय राज्यों के लिए महत्वाकांक्षी परियोजना ‘सागरमाला’ की शुरुआत की है, जिससे न केवल बंदरगाह का विकास होगा, बल्कि बंदरगाहों के जरिए समग्र विकास सुनिश्चित होंगे। सागरमाला परियोजना की शुरुआत 2014 में की गई थी। इसके तहत देश के 7500 किलोमीटर लंबे समुद्र तटीय सागरमाला परियोजना क्षेत्र को जोड़ने के लिए नेटवर्क विकसित किया जाना है।
दूसरी तरफ सागरमाला की तर्ज पर गुजरात से हिमाचल प्रदेश, कश्मीर होते हुए मिजोरम तक ‘भारतमाला’ परियोजना का विकास किया जा रहा है, जिसके तहत अंतरराष्ट्रीय सीमा वाले प्रदेशों में सीमा पर अच्छे रेल एवं सड़क नेटवर्क स्थापित किए जा सकेंगे जो उत्तर भारत के व्यापारिक हितों के साथ-साथ भारत के सामरिक हितों के लक्ष्य को पूरा करेगा। इसके तहत लगभग पांच हजार किलोमीटर सड़कें बननी हैं। इसी के साथ मंत्रालय ने धार्मिक स्थलों को उन्नत मार्ग से जोड़ने का लक्ष्य रखा है, जिसके तहत उत्तराखंड के चार धाम जिसमें केदारनाथ, बद्रीनाथ, यमुनोत्री और गंगोत्री भी भारतमाला परियोजना से जुड़ेंगे। इस तरह उत्तर भारत में धार्मिक यात्रा और परिवहन में वृद्धि होगी।
राष्ट्रीय राजमार्गों को बनाने और विकसित करने के क्रम में मंत्रालय सड़क दुर्घटनाओं को रोकने और यात्रा को सुखद बनाने के प्रति भी कृत-संकल्प है। मंत्रालय राष्ट्रीय राजमार्गों को रेलवे क्रॉसिंग से फ्री और टोल टैक्स से फ्री करने पर काम कर रहा है। इस योजना के तहत ऐसे स्थानों की पहचान कर वहां रेलवे फाटक पर पुल बनाया जा रहा है। सड़कों पर लंबी दूरी की यात्रा कर रहे यात्रियों के लिए ‘राजमार्ग हाट’ या ‘राजमार्ग विलेज’ बनाने की योजना तेजी से आगे बढ़ रही है। सड़क परविहन व राजमार्ग मंत्रालय भारतीय सड़कों को ऐसा स्वरूप देने में जुटी है, जिससे सड़क मार्ग पर यात्रा करना एक सुखद एहसास हो।