भाजपा के विजय अभियान का पुनः विस्तार हुआ है. उत्तर-पूर्व के राज्यों में होने वाले चुनाव में त्रिपुरा और नागालैंड में भाजपा के नेतृत्व वाली एन. डी. ए. गठबंधन को स्पष्ट बहुमत मिला है. त्रिपुरा में भाजपा को 32 सीटें और नागालैंड में 12 सीटें मिली हैं. जबकि मेघालय में त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति पैदा हो गई है. इन तीनों पहाड़ी राज्यों में विधानसभा की 60-60 सीटें हैं. मेघालय में कोनराड संगमा की एन. पी. पी. सबसे बड़ा दल बनकर उभरी है और बीजेपी के समर्थन से उसका सत्ता में आना सुनिश्चित है. इस प्रकार देखें तो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से भाजपा इस तीनों राज्यों के विधानसभा चुनावों के परिणाम के साथ भारत के इस पहाड़ी क्षेत्र में राजनीतिक व्याप्ति के लिए तैयार है.
भाजपा इन नतीजों को मोदी सरकार के पूर्वोत्तर में शांति और विकास के कार्यक्रमों का परिणाम बता रही है. इसमें कोई शुबहा नहीं कि पिछले आठ सालों के कार्यकाल में भाजपा सरकार ने पूर्वोत्तर के विकास को तरजीह दी हैं. अब तक अलगाववाद, हिंसा विद्रोहों के लिए चर्चित रहा पूर्वोत्तर विकास की दिशा में बढ़ा है. लोकतंत्र में जनता को बेवकूफ समझना स्वयं में बड़ी मूर्खता है. उसके समर्थन को भावुकतापूर्ण गलती मानना भी एक तरह का बौद्धिक अपराध है. आम भारतीय मतदाता भले ही बड़ी-बड़ी चुनावी बहसों में हिस्सा ना ले किंतु वह अपने मत के जरिये अपनी बात कहना जानती है.
पूर्वोत्तर भारत में निरंतर अपने प्रभाव का विस्तार करती भाजपा के लिए त्रिपुरा, मेघालय और नागालैंड के विधानसभा चुनाव के परिणाम सुखद है. नागालैंड में बीजेपी-एनडीपीपी गठबंधन स्पष्ट को बहुमत प्राप्त हुआ है. वहीं बहुमत की स्थिति त्रिपुरा में भी है. हालांकि कहना ना होगा कि प्रद्योत देव वर्मा के नेतृत्व में बनी टिपरा मोथा ने भाजपा को कड़ी टक्कर दे. पहली बार चुनाव में उतरी टिपरा मोथा ने वोटों में व्यापक सेंधमारी करतें हुए 13 सीटें जीत लीं.
इन चुनाव परिणामों ने भाजपा के लिए एक सकारात्मक संदेश दिया है. जैसे कि पूर्वोत्तर में अब बीजेपी की जमीन मजबूत हो रही है. कांग्रेस कॉडर के पलायन और संगठन की जमीन खिसकने के पश्चात् क्षेत्रीय दलों के समक्ष राष्ट्रीय विकल्प के रूप में भाजपा ने उस रिक्ति को भरना शुरू कर दिया है अथवा यूँ कहिये कि काफी हद तक भर चुकी है. मेघालय में कांग्रेस संगठन की स्थिति यह थीं कि उसके 60 उम्मीदवारों में से कोई विधायक क्या, भूतपूर्व विधायक तक नहीं था.
ध्यात्वय है कि पूर्वोत्तर में भाजपा के विजय रथ के सारथी जैसे हेमंत सरमा, माणिक साहा और बिरेन सिंह आदि एक समय कांग्रेसी हुआ करते थे. नागालैंड में बीस साल से और त्रिपुरा में तीस सालों से सत्ता से बेदखल कांग्रेस की स्थिति उत्तर-पूर्व में दयनीय होती जा रही है इन परिणामों से राष्ट्रीय परिदृश्य में कांग्रेस की चुनौती भाजपा के सामने और कमजोर पड़ेगी. वामदलों की मित्रता भी कांग्रेस को चुनावी सम्मान दिला पाने में असफल रही. नागालैंड में कांग्रेस खाता भी नहीं खोल पायी. जबकि वहां जदयू तथा मेघालय में यहाँ तक एक बात तो तय है, इन चुनावी प्रदर्शनों के साथ विपक्ष कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकारेगा, इसकी संभावना न्यूनतम है.
टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी ने गुरुवार को घोषणा कर दी वे 2024 का लोकसभा चुनाव अकेले ही लड़ेंगी. ये नतीजे विपक्षी गोलबंदी का हौसला तो तोड़ेंगे ही साथ ही तेलंगाना, कर्नाटक, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के इसी वर्ष आयोजित होने वाले विधानसभा चुनावों के एन.डी.ए. की गोलबंदी को मजबूत करेंगे. इसका सीधा सकारात्मक प्रभाव वर्ष 2024 के आम चुनाव, विशेषकर भाजपा कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ेगा.
हालांकि इस परिणाम से कांग्रेस एवं वामदलों का पुराना निराशाजनक प्रदर्शन जारी रहा. लेकिन पांच राज्यों, यथा, महाराष्ट्र, झारखण्ड, बंगाल, तमिलनाडु और अरुणाचल प्रदेश के उपचुनाव के नतीजे कांग्रेस के लिए सुखद रहें और भाजपा के लिए चेतावनी. इन राज्यों के छः सीटों में तीन पर कांग्रेस प्रत्याशी जीतने में सफल रहे. टीएमसी त्रिपुरा में अपनी जमीन गवा रही है. उसके उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई. वही बंगाल की सागर दिघी सीट कांग्रेस टीएमसी से छीनने में सफल रही.
इस चुनाव परिणाम पर केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा कि जनता का विश्वास और आशीर्वाद हमारे साथ है. इस निरंतर और बड़ी जीत के पश्चात् सिंधिया का उत्साहित होना लाजमी है लेकिन सूक्ष्म विश्लेषण करें तो भाजपा को अभी अपनी समीक्षा की बहुत आवश्यकता है. इस जीत के बावजूद भाजपा की सीटें घटी हैं. त्रिपुरा में उसके सीटों की संख्या 35 से घटकर 32 हो गई. नागालैंड और मेघालय में उसने पूर्ववत 12 और 2 की संख्या बनाये रखी. यह स्थिर परिणाम है, वृद्धि का प्रतीक नहीं. इसका मतलब है कि केंद्र और राज्य स्तर पर एक एंटी-इनकम्बेसी काम कर रही है. हालांकि इसका प्रभाव अभी बहुत प्रबल नहीं था और दूसरे मतदाता विकल्प पर भरोसा जताने को तैयार नहीं थे. प्रतीत होता है विपक्ष अभी भी भाजपा के सामने चुनौती पेश करने में सफल नहीं हो पा रहा लेकिन 2024 के आम चुनावों में बीजेपी की राह कठिन नहीं लगती.
[लेखक सामाजिक कार्यकर्त्ता एवं सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय की हिंदी सलाहकार समिति के सदस्य हैं]