‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ समय की मांग !

प्रज्ञा संस्थानकेंद्र सरकार ने ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ को मंजूरी दे दी है – जिसमें लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जाएंगे। देश भर में एक साथ चुनाव कराने की वकालत करने वाली एक उच्च स्तरीय समिति की रिपोर्ट बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष मंजूरी के लिए रखी गई। पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति ने देश में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान के अंतिम पांच अनुच्छेदों में संशोधन करने की सिफारिश की है। 2024 में होने वाले लोकसभा चुनावों से पहले इस साल मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को रिपोर्ट सौंपी गई थी। रिपोर्टों के अनुसार, इस आशय का एक विधेयक आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान संसद में पेश किए जाने की संभावना है। रिपोर्ट में भारत में एक साथ चुनाव कराने के कार्यान्वयन के लिए एक रोडमैप तैयार किया गया है। समिति ने पहले चरण के रूप में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की थी, जिसके बाद 100 दिनों की अवधि के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव कराए जाने थे। ‘एक राष्ट्र, एक चुनाव’ से मतलब है लोकसभा, सभी राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों – नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव एक साथ कराना।

भारत के पहले चार आम चुनाव लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ हुए थे। उस समय कांग्रेस पार्टी राष्ट्रीय और राज्य दोनों स्तरों पर सत्ता में थी।इसलिए यह 1967 में चौथे आम चुनाव तक संभव था। बाद में, कांग्रेस द्वारा लोकसभा चुनाव समय से पहले कराने के कारण चुनाव अलग-अलग कराए गए।आज की स्थिति के अनुसार, भारत में हर साल पाँच से छह चुनाव होते हैं। अगर नगर पालिका और पंचायत चुनाव भी शामिल कर लिए जाएँ, तो चुनावों की संख्या कई गुना बढ़ जाएगी। जैसा कि 2024 में हुआ, लोकसभा चुनाव सिर्फ़ चार राज्य विधानसभा चुनावों – आंध्र प्रदेश, ओडिशा, अरुणाचल प्रदेश और सिक्किम के साथ ही हुआ था ।

एक राष्ट्र, एक चुनाव’ पर पिछले कुछ समय से राजनीतिक दलों द्वारा चर्चा, समर्थन और विरोध किया जा रहा है। इसका समर्थन करने वालों का तर्क है कि बार-बार चुनाव कराने से सरकारी खजाने पर बोझ पड़ता है। साथ ही, असमय चुनाव सरकारी मशीनरी में व्यवधान पैदा करते हैं जिससे जनता को परेशानी होती है। इस विचार का समर्थन करने वालों का कहना है कि सरकारी अधिकारियों और सुरक्षा बलों का लगातार इस्तेमाल उनके कर्तव्यों के निर्वहन पर प्रतिकूल  प्रभाव डालता है और आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) के लगातार लागू होने से विकास का कार्य बाधित होता है। विरोध करने वालों का कहना है कि संविधान और अन्य कानूनी ढाँचों में भी बदलाव की आवश्यकता होगी। एक साथ चुनाव कराने के लिए संवैधानिक संशोधन की आवश्यकता होगी और फिर इसे राज्य विधानसभाओं में ले जाना होगा। इस बात की भी चिंता है कि क्षेत्रीय मुद्दे राष्ट्रीय मुद्दों से प्रभावित हो सकते हैं, जिससे राज्य स्तर पर चुनावी नतीजे प्रभावित हो सकते हैं। इस साल अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में, प्रधानमंत्री ने फिर से बार-बार होने वाले चुनावों के कारण होने वाले ‘व्यवधान’ को समाप्त करने का आह्वान किया,  उन्होंने कहा कि बार –बार चुनाव  देश की प्रगति में बाधा बन रहा है।

भारत के विधि आयोग द्वारा जल्द ही इस विषय पर अपनी रिपोर्ट जारी करने की उम्मीद है। नीति आयोग ने 2017 में इस प्रस्ताव का समर्थन किया और अगले साल तत्कालीन राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने संसद के संयुक्त सत्र में अपने संबोधन में इसका उल्लेख किया। अगस्त 2018 में विधि आयोग ने कानूनी-संवैधानिक पहलुओं की जांच करते हुए एक मसौदा रिपोर्ट जारी की। 2019 में अपने स्वतंत्रता दिवस के भाषण में मोदी ने एक साथ चुनाव कराने की आवश्यकता दोहराई। सितंबर 2023 में केंद्र सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति कोविंद के नेतृत्व में एक छह सदस्यीय पैनल का गठन किया, जो ‘एक साथ चुनाव कराने के लिए जांच और सिफारिशें करेगा।’ पैनल के अन्य सदस्य केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा में विपक्ष के पूर्व नेता गुलाम नबी आज़ाद, पूर्व वित्त आयोग के अध्यक्ष एनके सिंह, पूर्व लोकसभा महासचिव सुभाष कश्यप और वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे हैं। समिति ने 2024 के लोकसभा चुनावों से पहले इस साल मार्च में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को अपनी रिपोर्ट सौंपने से पहले 10 मार्च 2024 तक ,65 बैठकें कीं। रिपोर्ट बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल के समक्ष रखी गई, जहां इसे मंजूरी दे दी गई।

समिति ने दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने के लिए संविधान में संशोधन की सिफारिश की है। पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराए जाएंगे। दूसरे चरण में आम चुनाव के 100 दिनों के भीतर नगर पालिकाओं और पंचायतों के चुनाव कराए जाएंगे। पैनल ने संविधान में संशोधन की भी सिफारिश की है ताकि भारत का चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से एक ही मतदाता सूची और ईपीआईसी तैयार कर सके। इन संशोधनों को कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुमोदन की आवश्यकता होगी। सदन में बहुमत न होने, अविश्वास प्रस्ताव या ऐसी किसी भी घटना की स्थिति में नई लोकसभा या विधानसभा के गठन के लिए नए चुनाव कराए जाने चाहिए। समिति ने सिफारिश की है कि किसी तरह की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए भारत का चुनाव आयोग राज्य चुनाव आयोगों के परामर्श से पहले से योजना बनाएगा और अनुमान लगाएगा, और जनशक्ति, मतदान कर्मियों, सुरक्षा बलों और ईवीएम/वीवीपीएटी की तैनाती के लिए कदम उठाएगा ताकि सरकार के सभी तीन स्तरों पर स्वतंत्र और निष्पक्ष एक साथ चुनाव हो सकें।

एक साथ चुनाव कराने के पक्ष में तर्क यह है कि इससे मतदाताओं को आसानी और सुविधा मिलेगी, मतदाता थकान से बचेंगे और मतदान में अधिक से अधिक भागीदारी होगी। साथ ही, सरकार के तीनों स्तरों के लिए एक साथ चुनाव कराने से प्रवासी श्रमिकों द्वारा वोट डालने के लिए छुट्टी मांगने के कारण आपूर्ति श्रृंखलाओं और उत्पादन चक्रों में व्यवधान से बचा जा सकेगा और सरकारी खजाने पर वित्तीय बोझ कम होगा। पैनल ने दक्षिण अफ्रीका, स्वीडन, बेल्जियम, जर्मनी, इंडोनेशिया और फिलीपींस जैसे देशों में एक साथ चुनाव कराने की प्रणाली का अध्ययन किया। समिति ने माना कि इसकी राजनीति की विशिष्टता को देखते हुए, भारत के लिए एक उपयुक्त मॉडल विकसित करना सबसे अच्छा होगा।

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