अंततः तीन तानाशाह (रूस और चीन को मिलाकर) अपनी साझा साजिश में सफल रहे। गत वर्ष के नोबल शांति पुरस्कार के विजेता साठ साल के एलेस बियालियात्स्की को कल (3 मार्च 2023) राजधानी मिंस्क की अदालत ने दस साल की सजा बमुशक्कत दे दी है। तनिक मुरव्वत दिखाई धांधलीभरे मतदान से चुनाव जीते पूर्व सोवियत सैनिक राष्ट्रपति अलेक्जेंडर लुकाशेंको ने। वे गत 25 सालों से लगातार राष्ट्रपति चुने जा रहे हैं। विरोधियों का दमन कर, उन्हे कैदकर। उनके दाएं खड़े है रूसी तानाशाह व्लादिमीर पुतिन। बाई ओर हैं चीन के शी जिनपिंग जो वर्षों पूर्व (मार्च 2013) जनवादी चीन गणराज्य के राष्ट्रपति निर्विरोध निर्वाचित हुए थे।
चीन त्रस्त है कि यदि तानाशाह-विरोधी लहर चली तो चीन के इस्लामी उईगर प्रांत में बगावत धारधार हो जाएगी। मस्जिद फिर खुल जाएंगे। नमाज फिर अरबी में छपेगी। रमजान में दिन के बजाय रात को बाजार वापस फिर खोलना पड़ेगा। सूअर का गोश्त बिकना बंद हो जाएगा। तुर्की द्वारा उइगर सुन्नियों की मदद तेज हो जाएगी। गंभीरतम आशंका व्लादिमीर पुतिन को है। वे बेलारूस को वापस पुनर्जीवित सोवियत संघ में सम्मिलित कराना चाहते हैं। लुकाशेंको ही पुतिन के कठपुतली शासक हैं।
अर्थात एक ईमानदार मानवाधिकार योद्धा इस वैश्विक अधिनायकवाद का शिकार है। महाशक्ति क्लीव बनी बैठी है। लुशांको छठी बार 9 अगस्त 2020 में राष्ट्रपति फिर चुने गए थे। दिखाया गया कि उन्हे 81.04 प्रतिशत (4,661, 075) वोट मिले। उनकी प्रतिद्वंदी स्वेतलाना सवित्सकाया को केवल सवा दस प्रतिशत (588,619) वोट ही मिले। इस चुनाव परिणाम को अधिकतर यूरोपीय राष्ट्रों ने मानने से अस्वीकार कर दिया। मगर पड़ोसी रूस ने अपने एक्जिट पोल में काफी पहले ही लुकाशेंको को बहुमत मिलता दर्शाया था।
पिछले साल के नोबल शांति पुरस्कार बेलारूस के मानवाधिकार कार्यकर्ता एलेस बियालियात्स्की, रूसी ‘मेमोरियल’ समूह और यूक्रेन के संगठन ‘सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज’ को दिया गया था। एलेस की क्या उपलब्धि थी, जिसके कारण इन्हें ये सम्मान मिला ? बियालियात्स्की 1980 के दशक के मध्य में बेलारूस में उभरे लोकतांत्रिक आंदोलन के शुरूआती कार्यकर्ताओं में से एक हैं। उन्होंने अपना जीवन बेलारूस में लोकतंत्र, शांति और विकास को बढ़ावा देने के लिए समर्पित कर दिया है। उन्होंने 1996 में इन सब कामों के लिए एक संगठन की स्थापना की । इसी के जरिए वो आगे मानवाधिकार की लड़ाई लड़ने लगे। उन्होंने सरकार की उन नीतियों का विरोध किया, जिससे मानवाधिकारों का उल्लघंन हो रहा था। राजनीतिक कैदियों को यातना देने का विरोध किया। इसके बाद वो सरकार की कुदृष्टि में आ गए। सरकार ने उन्हें चुप रहने का निर्देश दिया, लेकिन वो चुप नहीं रहे। उन्हें जेल में डाल दिया गया। साल 2020 के बाद से, वह अभी भी बिना मुकदमे के हिरासत में हैं।
सेंटर फॉर सिविल लिबर्टीज की स्थापना यूक्रेन में मानवाधिकारों और लोकतंत्र को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से की गई थी। इसने यूक्रेन के नागरिक समाज को मजबूत करने और अधिकारियों पर यूक्रेन को एक पूर्ण लोकतंत्र बनाने के लिए दबाव बनाने का काम किया था। अब रूस-यूक्रेन जंग के बीच यह लोगों को बचाने में लगा हुआ है। साथ ही यूक्रेनी आबादी के खिलाफ रूसी युद्ध अपराधों की पहचान करने और उनका दस्तावेजीकरण करने के प्रयासों में लगा हुआ है।
बेलारूस की एक अदालत ने एलेस बिलित्स्की को सजा दी तथा उनके अलावा तीन अन्य लोगों को भी सरकार के खिलाफ सार्वजनिक व्यवस्था का उल्लंघन करने और हिंसक गतिविधियों के लिए फंडिंग करने के आरोप में सजा सुनाई। वैलेंटिन स्टेफनोविच को नौ साल, उलादजिमिर लबकोविक्ज को सात साल और दिमित्री सलौउ को आठ साल के लिए जेल भेजा।
राष्ट्रपति लुकाशेंको एलिस बिलित्स्की को पसंद नहीं करते हैं। उनकी सत्ता को चुनौती देने के कारण बिलित्स्की को सजा मिली है। लुकाशेंको रूसी राष्ट्रपति पुतिन के करीबी माने जाते हैं। यूक्रेन जंग में भी वो रूस का खुलकर साथ दे रहे हैं। उन पर आरोप हैं कि उन्होंने अब तक 35,000 से अधिक विरोधियों के जेल भिजवा दिया है। लुकाशैंको यूरोप के आखिरी तानाशाह के तौर पर काफी बदनाम हैं।
राष्ट्रपति की प्रतिद्वंदी स्वेतलाना सवित्सकाया एक सेवानिवृत्त सोवियत एविएटर और अंतरिक्ष यात्री है जिन्होंने 1982 में सोयूज टी-७ पर सवार होकर अंतरिक्ष में उड़ान भरने वाली दूसरी महिला थी। सवित्सकाया 1993 में रूसी वायु सेना से मेजर के पद के साथ सेवानिवृत्त हुई। बेलारूस के राष्ट्रपति के निर्वाचन में स्वेतलाना 2020 में प्रत्याशी नामित हुईं। तत्काल उनके पति को कैदकर जेल में डाल दिया गया। फिर भी वे उम्मीदवार बनीं। तभी लुकाशेंको ने ऐलान किया कि देश किसी महिला राष्ट्रपति के लिए तैयार नहीं है। फिर समस्त मतदान प्रक्रिया को हाइजैक कर लिया गया। स्वेतलाना को देश छोड़ना पड़ा। पड़ोसी लिथुनिया में शरण लेनी पड़ी। उधर यूरोपीय यूनियन के सदस्य-राष्ट्रों ने स्वेतलाना को ही विजयी माना। लिथुनिया गणराज्य भी बेलारूस के खिलाफ आर्थिक प्रतिबंध लगा दिया। स्वेतलाना की कूटनीतिक शरण भी थी ताकि वह लंबी कारागार यातना से बची रहें।
एलेस की सजा की भर्त्सना की यूरोपियन संघ के मुखिया जोसेफ बोरेल ने और कहा कि फर्जी अदालती कार्यवाही की गई। जर्मन विदेश मंत्री एनालीना बायखोक ने कहा कि जिरह के पूर्व ही जेल की सजा तय हो गई थी। जिनेवा-केंडिल विश्व मानव अधिकार संगठन की आयुक्त रवीना शमदासानी ने करार दिया की पूरी प्रक्रिया ही एक ढकोसला थी। नार्वे की नोबेल परितोष समिति के अध्यक्ष बेरिट रेइस-एंडरसन ने कहा कि पूरा न्यायिक निर्णय ही एक निकृष्ट राजनीतिक फैसला है। इस पूरे प्रकरण में भारत के मानवाधिकार संघर्षकर्ताओं की भूमिका उदासीनता भरी है शायद ही संयुक्त राष्ट्र संघ में कभी भारत ने बेलारूस में मानवाधिकार हनन का मसला उठाया हो। कब भारत अपनी मानवप्रेमी वाली वैश्विक छवि फिर उभारेगा ?