मिशन पाम आयल पर खर्च होंगे 11000 करोड़, मोदी सरकार का फैसला

केन्दीय मंत्रिमंडल ने पाम आयल मिशन के कार्यान्वयन को मंजूरी दे दी। यह फैसला प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में लिया गया। पाम आयल मिशन पर कुल 11,040 करोड़ का खर्च आएगा। इस मिशन के तहत तिलहन और पाम आयल का रकबा और उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा।

सरकार के इस कदम को एक बड़ा कदम माना जा रहा है। क्योंकि भारत में खाने वाले तेलों के आयात का दो तिहाई हिस्सा केवल पाम आयल का है। पाम आयल का सबसे ज्यादा उत्पादन इंडोनेशिया करता है। उसके बाद मलेशिया है। भारत खाने वाले तेल का सबसे बड़ा आयातक है। मलेशिया अपना पाम आयल सबसे ज्यादा भारत को ही सप्लाई करता है।

पिछले साल सीएए और कश्मीर पर मलेशिया की बयानबाजी के कारण भारत नें मलेशिया का तेल निकाल दिया था। मलेशिया से पाम आयल आयात पर रोक लगा दी थी। भारत नें नेपाल, इंडोनेशिया और बंग्लादेश से करीब पांच लाख टन रिफाइंड पाम आयल आयात करने के लिए करीब 70 लाइसेंस जारी किए। लेकिन सरकार ने इससे सबक भी लिया। इस मामले में आत्मनिर्भर बनने का संकल्प लिया। यह मिशन उसी दिसा में एक कदम हैं।

अब समझते हैं पाम आयल आखिर है क्या। क्योंकि दुनिया में इसका बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है। उद्योगों के साथ ही नहाने वाला साबुन बनाने में, क्रीम, टाफी और चाकलेट बनाने में भी इसका इस्तेमाल होता है। साथ ही खाद्य तेलों में भी मिलाया जाता है। पाम आयल ताड़ के पेड़ के बीजों से निकाला जाता है। इसमें कोई महक नहीं होती। जिसकी वजह से हर तरह का खाना बनाने में इसका इस्तेमाल होता है। मिलावट भी आसान होती है।

एक पहलू यह भी है कि भारत में खाने वाले तेल की जितनी खपत है उससे बहुत कम उत्पादन होता है। उपज के करीब तीन गुना ज्यादा मांग है। इसीलिए पाम आयल का आयात इतना होता है। यह सस्ता भी है। लेकिन सेहत के लिए इसे अच्छा नहीं माना जाता।

भारत में पिछले दस सालों में मूंगफली, अलसी, सूरजमुखी समेत कई फसलों का रकबा तेजी से घटा है। भारत में ज्यादातर लोगों के घर, होटल और रेस्टोरेंट में जो तेल इस्तेमाल किया जाता है, उसमें से अधिकांश हिस्सा विदेशों से मंगाए गए तेल का होता है।

 

 

 

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