वसंधुरा – जैसा कि नाम से वर्णित है-वसु जिसमें वास है! यह पंच भौतिक तत्व-मिट्टी, जल, आकाश, वायु एवं अग्नि से मिलकर बनी है! आधुनिकीकरण-भौतिकतावाद के भूलभुलैया में फंसकर हमने अपनी प्रकृति संरक्षक, प्रदुषण-रहित, शांतिप्रिय, सुखदायी, चिंतारहित,मिलनसार, जीवनदायी पद्धति त्यागकर क्या लाभ अर्जित किया, यह विचारणीय विषय है! पंच भौतिक तत्वों का सदुपयोग कर जीवन व्यतीत करना, यही तो सही मायने में विकास है, विज्ञान है, शैली है! भारतीय जीवन पद्धति में जहां आवश्यकतानुसार ही संसाधनों को प्रयोग किया जाता था, तथा उसके साथ-साथ सामंजस्य स्थापित करने हेतु नित्य कर्मों में प्रकृति रक्षक कार्य निहित रहते थे, जैसे- नित्य यज्ञ, पशु-पक्षी प्रेम, पौधारोपण आदि!
दूसरी तरफ आज हमारी जीवन शैली कहीं भी प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करती नहीं दिखलाई पड़ती! मनुष्य ने आज पृथ्वी का क़ोई भी भाग छेड़छाड़ के बिना नहीं छोड़ा! आधुनिक प्रणाली के चलते ऐसा लगता है कि मानो पृथ्वी मात्र मनुष्य के लिए ही आरक्षित है, अन्य जीव-जंतु एवं वन आदि का यहां कोई स्थान नहीं है! मनुष्य अपनी आवश्यकता एवं सुविधानुसार संसाधनों का प्रयोग करता है, चाहे सदुपयोग हो या दुरुपयोग!औधोगिकरण के चलते निर्मित वस्तुओं के प्रयोग हेतु भौतिकवाद को बढ़ावा दिया गया!
“जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गावपि गीर्यसि” पृथ्वी की रक्षा हेतु, विनाश से बचाव हेतु, मानव जाति के विनाश को रोकने हेतु हमें पुनः भारतीय जीवन पद्धति को अपनाना होगा, यही एक मात्र विकल्प है! फिर से वेदों के बतलाए मार्ग पर चलना होगा! पुनः नित्य यज्ञ, पौधारोपण, वस्तुओं का सीमित प्रयोग अनिवार्य है! पौधारोपण में भी हमें वट, पीपल, नीम, औषधीय एवं फलदार वृक्ष लगाने होगें! विषय की गम्भीरता को समझते हुए हमें शीघ्र कठोर कदम उठाने होगें! अन्यथा “अब पछताए होवत क्या, जब चिड़िया चुग गई खेत” वाली कहावत सत्य होते देर ना लगेगी