खैर उस समय हिंदुत्ववादी व्यक्ति संघ में थे और संघ के बाहर भी थे। और यह बड़े जोशीले थे। डा. जी के भाषण के बाद में हमारे पिताजी कहते थे कि ये आदमी ढीला भाषण देता है। तेजस्वी भाषण देने वाले भी बहुत थे। और मेरी उम्र उस समय 18-19 साल की थी। उस समय एक ओजस्वी नेता, ओजस्वी वक्ता का थोड़ा सा परिचय मुझे मिला। उस समय हमको कुछ समझ नहीं थी। मुझे उसके पी.ए. के नाते, ओडरली के नाते दिया गया। उनका दौरा भाग्य नगर सत्याग्रह के प्रचार करने के लिए हो रहा था। वह बड़े श्रेष्ठ नेता थे, अच्छे वक्ता थे, बड़े जोशीले वक्ता थे, लोग कहते थे कि यह आदमी ऐसा भाषण देता है कि इसके भाषण के कारण मुर्दा भी एक मिनट के लिए उठकर खड़ा हो जाएगा। इतना तेजस्वी भाषण वह देते थे।
अब मुझे उनका आदेश मानना, कपड़े संभालना, जूते संभालना, जूतों पर पालिश करना, उनके साथ काम करने को दिया था। मैं छोटा लड़का था। 18 साल का। उनका भाषण बड़ा जोशीला होता था उदाहरण के लिए बताता हूं वो कहते थे कि हिंदुओं के सर्वस्व समर्पण करने की यह बारी आई है अवसर आया है। अब समरांगण के कागज पर, समरांगण माने लड़ाई का मैदान, तो लड़ाई का मैदान यह एक कागज है आपका और हमारा खून यही स्याही है आपकी और हमारी हड्डियां यही लेखनी हैं, लेखनी यानी पेन है और इससे हिंदू-राष्ट्र का इतिहास लिखना है। बड़े तेजस्वी भाषण। एक जगह विरोध हुआ।
उनको पता नहीं था। हम लोगों ने सोचा, है तो यह मर्द आदमी। जोशीला आदमी है। इनको थोड़ी सी आहट लग गई कि विरोध होने वाला है और जैसे ही कुछ जगह पर लोगों ने काले झण्डे दिखाए और शोरगुल मचाना शुरू किया तो यह समरांगण उनका कागज, रक्त की स्याही और हड्डियों की लेखनी वाला जो ये महान जोशीला वक्ता थे जैसे ही एक कोने में शोरगुल हुआ तो इतनी तेजी से मैदान छोड़कर भागने लगे कि हम लोगों को बड़ी शर्म आने लगी कि ये हमारे नेता कि कहीं से पत्थर आ रहे हैं तो एकदम भागकर मैदान से चले जाने लगे।
पहली बार इस छोटी उम्र में मुझे आभास हुआ कि जोशीला भाषण और वास्तव में मर्द नेतृत्व इसमें कुछ अंतर होगा। ऐसा थोड़ा-सा आभास मुझे उस समय हुआ। लेकिन एक बात उस समय हमारे मन में भी रहती थी कि हिंदुत्व का जागरण करना है तो बहुत तेजस्वी भाषण में करना ही चाहिए। नहीं तो लोगों में वैसा जोश कैसे आएगा? और डा. जी को हम हमेशा से सुनते थे वो ही रटा हुआ भाषण था। हिंदू है हिंदुत्व है संघ हिंदुओं का संगठन है। यह आवश्यक है। यही मामूली बातें। कहीं जोश नहीं, आवेश नहीं, कहीं कुछ नहीं।