संभवत: ऐसा कोई भी व्यक्ति इस पृथ्वी पर अब नहीं मिलेगा जो योग से अपरिचित हो। इसका श्रेय किसी योगी या महायोगी को नहीं जाता है। ऐसा कहना, सुनना और इसे जानना विचित्र लगे, लेकिन यह एक सुखद सच है। उसे दूरदर्शन के दर्शक इन दिनों देख रहे हैं। एक खिलाड़ी की वेशभूषा में भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी योग के आसन बड़ी सहजता से करते हुए दिख रहे हैं। इस प्रकार उन्होंने योग को खेल बना दिया है। जिसे कंदराओं, गुफाओं, हिमालय की घाटियों और आश्रमों में साधना की लंबी प्रक्रिया समझा जाता था, वह घर-घर पहुंच गया है। सबके लिए सुलभ हो गया है।
इसकी विश्वव्यापी शुरुआत कुछ साल पहले हुई। कोई भी कार्य हो, कोई भी क्रिया हो, वह जीवन जीने की जब विधि बन जाती है तो उसे लोग उसी तरह अपना लेते हैं जैसे- सांस लेने की आदत होती है। किसी को इसके लिए कहना नहीं पड़ता। हां, जब श्वांस की क्रिया को कोई वैज्ञानिक ढंग से करने लग जाता है, वह अनायास ही योग के पथ पर पहला कदम रख चुका होता है। उस व्यक्ति के मनोजगत में चुपचाप एक क्रांति घटित हो चुकी होती है। इसे ही समझना वास्तव में योग विद्या से परिचित होना है।
जिन योगियों ने अपनी साधना प्रणाली बनायी, उन्होंने मन के रूपांतरण का मंत्र दिया। जो बात बार-बार दोहरायी जाती है, वही मंत्र होता है। उसे दोहराने से मन की एक पगडंडी बनती है। नियमित ऐसा करते रहने से वह आदत बन जाती है। फिर उसके लिए अभ्यास नहीं करना पड़ता। वह व्यक्ति की जीवन चर्चा का अनिवार्य अंग बन जाता है। लेकिन इसके लिए प्रयोजन और प्रेरणा चाहिए। योग दिवस को इसी रूप में देखना चाहिए। कोरोना की महामारी ने योग के हजार रास्तों से परिचित कराया है। कोरोना की महामारी को भारत ने पछाड़ दिया है। अब वह एक रोग मात्र रह गया है। वह रोग कब तक रहेगा? यह प्रश्न हर मनुष्य के सामने है। लेकिन महामारी की जानलेवा दहशत जा चुकी है। उस दौर में दवा जितनी मददगार बनी उससे ज्यादा मदद योग की क्रियाओं से मिली। कैसे और क्यों? यही योग समझाता है।
योग के अनेक आयाम हैं। उनमें एक अध्यात्म है। जीवन-जगत से मुक्ति और परमात्मा से मिलन को ही अध्यात्म कहा जाता है। इस आलेख में योग के औषधि रूप की जानकारी देने का एक प्रयास है। यह कहना उचित होगा कि कोरोना की महामारी का सबसे बड़ा सबक यह है कि योग एक महाऔषधि है। जिसे मुहावरे की भाषा में रामबाण कहते हैं। जिसे धार्मिकता के आवरण में सदियों से रखा गया था, क्या वह विज्ञान की कसौटी पर औषधि भी हो सकता है। यही प्रश्न पश्चिमी दुनिया में पूछा जाता रहा है। इसका उत्तर महामारी के दिनों में मिला। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि यह अचानक हुआ।
आजकल अनेक नामी संगीतकार सामूहिक स्वर में गाते हुए पाए जा रहे है, वे योग को स्वर दे रहे हैं। उनके गीत की पहली लाइन है- भारत का उपहार है। उपहार एक स्वैच्छिक क्रिया है। उसमें संबंधों की नैतिकता का ताना-बाना होता है। संगीतकारों की दूसरी लाइन हर व्यक्ति को स्पर्श करती है। एक नए बोध से सुनने वाले को मार देती है। दूसरी लाइन है- योग रोग पर प्रहार है। इसमें योग के औषधि विज्ञान का सूत्र है, जिसकी थोड़ी व्याख्या जरूरी हो जाती है। मनुष्य के मनोजगत के लिए योग का यह सबसे ऊंचा और सबसे गहरा सूत्र है। यह दो बातें समझाता है। पहली बात यह है कि योग शरीर के रोग को मिटाने में समर्थ है। दूसरी बात तो इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण है कि योग शरीर में रोग बनने से रोकता है। मनुष्य को स्वस्थ रखने में सहायक होता है।
स्वस्थ के दो अर्थ हैं। पहला जो स्व में स्थित होता है, वही स्वस्थ होता है। यह आध्यात्मिक तत्व है। दूसरा कि जिसे शरीर की हर समय चिंता नहीं होती, वह स्वस्थ होता है। अस्वस्थ वह होता है जिसे कोई न कोई शारीरिक कष्ट घेरे रहता है। योग कैसे मनुष्य को स्वस्थ रखता है? यही जानना वास्तव में उसके औषधीय तत्व को समझता है। कोरोना काल में मनोवैज्ञानिक और शरीरशास्त्री यानी चिकित्सक भी एक बात मानने के लिए तैयार हो गए कि योग शरीर की आंतरिक संरचना के असंतुलन को दूर करने में सहायक है। इतना ही नहीं वह साक्षात एक विज्ञान है। इस समय पूरी दुनिया के वैज्ञानिक एक विषय पर अंतत: पहुंच गए हैं कि मनुष्य के शरीर में दो तरह के यंत्र एक साथ काम करते हैं। एक तो स्वेच्छा से चलता है, दूसरी एक ऐसी आंतरिक शारीरिक व्यवस्था है, जो स्वेच्छा के बाहर चलती है।
शरीर में रक्त का संचार आंतरिक शारीरिक व्यवस्था का अंग है। पश्चिम में पहले यह तथ्य भी ज्ञात नहीं था। यह माना जाता था कि शरीर में रक्त भरा हुआ है। उसके बहने की जानकारी बहुत बाद में खोज से मिली। यह क्रिया किसी की भी स्वेच्छा से बाहर है। लेकिन व्यायाम और आसन जो है वह स्वेच्छा के आधीन है। जो आंतरिक व्यवस्था है, उसे बहुत पहले योगियों ने खोजा। उसे जीवन जीने के अनुकूल बनाया यही क्रिया औषधि बन जाती है।
शरीर की सारी व्यवस्था स्वेच्छा में रहे। इसके लिए ही योग की क्रियाएं हैं। उस योग की एक परंपरा है। परंपरा से आशय यह कि योगियों की एक परंपरा है। उसे पतंजलि ने एक परिभाषा दी। यह समझाया कि योग विशुद्ध विज्ञान है। जैसे कि गणित है। जो आंतरिक अस्तित्व से मनुष्य को परिचित कराता है, वह योग है। प्रयोग और अनुभव की प्रक्रिया से वह औषधीय भी हो जाता है, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी इसी योग की परंपरा के वाहक हैं। योग की ऐसी लंबी परंपरा में आज भी अनेक बड़े नाम है। सद्गुरु जग्गी वासुदेव ने योग को ‘इनर इंजीनियरिंग’ नाम दिया है। डॉ. एच.आर. नागेन्द्र ने अपनी टीम के साथ एक पर्चा लिखा है, वह खूब पढ़ा जा रहा है। उसमें वे योग को मन-शरीर की एक तकनीक बता रहे हैं। जिस तकनीक से शरीर निरोग रह सकता है। इसमें पहली बात है, रहन-सहन में सुधार।