हमरे बगिया में रंग-रंग के आम, महुआ, जामुन, कटहर, बडहड, इमली, कैथा, बईर, जंगल जलेबी, ढेरा, सिंहोर, बांस, चिलबिल अउर बेल आदि के पेड अहइ। अइसन हलब्बी और गुणी पेड दुनिया में कतंउ न मिले। सवाद छोडा, महक एतनी नीक अहइ कि एक बार सूंघ ल्या तउ पूरी जिनगी ना बिसरइ। पेडे के नीचे तरह-तरह के जडी-बूटी के झील-झंक्खाड। हम सभे अपने बगिया के गंगा माई से बढिके मानी था। बगिया का, सब तीरथ इहीं मिलि जाइ। हां, हर पेडे के आपन नाम अहइ। पुरखन गुण-धर्म के मुताबिक दिल से पेडवन के नाम रखे अहंइ। आमे में करिअमवा, फुलउरिअहवा, गनटेढवा, खंइअहवा, दषरिअहवा, मलदहवा, छुरिअहवा, मिठउवा, खटउवा, लंगडहवा, सरअहवा, गुलगुलहिया आदि।
महुआ में पिपरहवा, लपसिअहवा, चिनिअहवा, गुडअहवा, तितउआ, मुडघुमउना अंगुरिअहवा, बेडअहवा, लेंडअहवा अउर मिसिरिअहवा आदि। पंचउ, आज हम अपने बगिया के करिअमवा आमे के किस्सा सुनावत अही। ध्यान से पढत अउर सुनत जाया। करिअमवा हमरे छः बिगहा बगिया के एकदम बीचउ-बीच अउर बहुत बडा जहाजा दुइ पेडिया पेड रहा। ओहमा दुइ रंग के आम फरत रहा। एक तउ साधारण आम अउर दुसरा लम्बा-लम्बा एकदम करिआ-करिआ। कच्चे पे तउ खट्टा रहत रहा, मुला पाके पे लाल -लाल मीठ-मीठ रस, एकदम जइसे अमरित। जे एक बार खाइ लेइ जिनगीभर ना भूलइ। करिअमवा में माघ के महींना में बउर देखाइ जात रहा और टिकोरा सबसे पहिले तैयार होइ जाय। जाली सबसे पहिले पडइ। बइसाख बीतत अउर जेठ लगतइ वोहमा सींकर गिरइ लागइ। सिंकरिया चपटी- चपटी होई अउर अइसन महकइ, जइसन कस्तूरी। सब लरिकन भोरइ में उठिके सींकर हेरंइ। करिअमवा में जेठ अउर असाढ दुइ महींना पक्का गिरत रहा।
सबेरे तउ चार झउवा से कम पक्का नाहीं गिरत रहा। एकरे अलावा दिनउ में दुइ-तीन झउवा आम करिअमवा तरे मिलि जाइ। करिअमवा के नाम बहुत दूर-दूर तक फइलि गा रहा। गांव-देष के मनइ आवंइ तउ करिअमवइ के पक्का मांगइ अउर खाये के बाद खूब बखानइं। अब एतना आम गिरे जब, तउ अमावट तउ पडबइ करे। सब पेडे के आम मिलाइ के अमावट बनइ, मुला करिअमवा के आमे के अलग से पना निकालि के ओकर अलग अमावट पडइ। करिअमवा के अमावट भूंखे-पियासे अउर मेहमाने बिना घी अउर कडुवा तेल लगाइ के रखा जात रहा। खास-खास रिष्तेदारन के करिअमवइ के पाले के आम अउर अमावट भेजा जात रहा। एक बार हमरे फुइय्या के घरे करिअमवा के अमावट नाहीं पहुंचि पाएस तउ, फुइय्या के सास अउर ननद रिसिआइ गइ रहिन। अगले साल फिर फुइय्या के हिंया दुइनउ साल के अमावट भेजइ के पडा। ऐसनइ ढेर नात-कबीला करिअमवा के आमे अउर अमवटे बिना रिसिआइ जात रहेन। जइसन गरमी के मौसम में अंगरेंजन के राजधानी षिमला में चली जाात रही वैसनइ आमे के समय में हम सब लरिकन के राजधानी करिअमवा तरे चली जात रही। हम सब लरिकन मिलिके करिअमवा के तरे छान छावत रहे। उहीं छान्ही तरे बइठि के बगिया रखाइ अउर पक्का बिन-बिन उहीं छान्हीं तरे रक्खत रहे।
सेयान मनई उहीं छान्हीं तरे बइठि के बतकही करंइ अउर ताास खेलंइ। उही के तरे बईठि के पूरे बगिया देखत रहे। फुरि पूछा तउ हम-सब अपने बगिया के राजा रहे। हां, करिअमवा में छोट-बडा दर्जनन खोड्हर रहा। खेडहरवन में मरे के चिरइ आपन-आपन घर बनाए रहंइ। कुछ खोडहरे में ढेलहरा सुग्गा अंडा देहे रहंइ। हम सभे अंडा खोडरे से निकाली अउर बाद में खोडरे में रखि देई। अइसनइ जब अंडा से बच्चा बाहर आइ जाइ, तउ बच्चा खेलाई। एक बार जइसेन सुग्गवा के बच्चा खेडहरे से निकाले, सुग्गवा उडि के हमरे मूडे में चोंच से मारि देहेस। बल-बल-बल खून बहइ लाग। गामा डाक्टर के हियां जाइके मरहम-पट्टी करावइ के परा ह। वोकरे बाद से सुग्गा के बच्चा निकालब छोडि देहे। खैर, सब दिन होइ ना एक समाना, तुलसी बाबा के ई चैपाई करिअमवउ पे लागू भइ। सन 1987 के जेठ महींना के कउनउ तिथि के बहुत तेज आंधी-तूफान आइ अउर करिअमवा जरी से उखडि गा।
आंधी-तूफान थमे पे गांव-देष के ढेर मनइ नफा-नुकसान के हाल लेइ आयेन। मनइ सबसे पहिले करिअमवइ के हाल पूछंइ। अइसन लागइ, जइसन घरे-परिवारे के पुरनिया गुजरि गा। पूरे गांव के मनइ के काटा तउ खून नाहीं। वंह दिन हमरे घरे चूल्हा नाहीं बरा। गोरू-बछरू सब मुंह लटकाये पडा रहेन। लरिकनउ बिना खायेन सोइ गयेन। पूरे गांव में जइसन मरनी पडि गइ। कारी रात सांय-सांय करत रही। मुई चिरइया अलग से हूं-हूं करइ। चारिउ कइती असगुनइ-असगुन देखाइ अउर सुनाइ। वंह साल आमे के पूरा मौसम गमे में बीति गा। खैर! क्इसेउ रात बीती। सबेर भा। पहिले सयान उठेन, ओकरे बाद हमस ब लरिका उठे। सब मुंह लटकाये। सब बगिया मूं ताकंइ, मुला केहू के मोहे से अवाज न निकलइ। एतने में हमरे बडका बाबू आएन अउर बइठि के सब लरिका-सेआन के समझायेन। कहेन कि – दुख जिन करत जा। भगवान के इहइ मंजूर रहा। करिअमवा के एतनिन उमर रही। चला वोकर बेचारे के अब उद्द्धार होइ गा। बहुत खियाएस। अब उ नई जिन्दगी पाये। बडका बाबू इहउ बताएन कि घबराइ के बात नाहीं अहइ। करिअमवा के चार अमोला तैयार करे अही। यंह बरसात में खोद के लगाइ देब अउर चउथे-पंचवे साल फरइ लागे। पहिला फल गंगा माई के चढउबइ। बडके बाबू के मुंहे से एतनी बात सुने तउ जाइके कतंउ हम सब लरिकन के बोध भ। चूल्हा में आगी बरी अउर अम्मा खिचडी बनइन। धीरे-धीरे ई बात सगरउ गांव में फइलि गइ। गांव वाले तउ धीरे-धीरे करिअमवा के बिसरि गयेन, मुला हम सब लरिकन सेयानउ भये पे करिअमवा के छांव, ओकर बउर, टिकोरा, सींकर अउर कोंपर नाहीं भूलि पाये। अबेउ आमे के समय में करिअमवा बहुत याद आवत ह। बस मन मसोस के रहि जात जाई थ, अब कइन का सकी थ।।