मैंने अपनी निरक्षर और लगभग संपूर्ण जीवन वैधव्य में काटने वाली दादी को कभी अल्लाहाबाद कहते नहीं सुना था । वे ताउम्र प्रयाग ही कहती रहीं । मैं यह साफ़ अनुभव करता हूँ कि कथित निरक्षर भारत अपने संस्कारों के प्रति अत्यंत विनयी और आग्रही भी था । उसे पता था कि वह स्थल प्रयाग है, चाहे लाख अकबर उसे अल्लाहाबाद बनाने की कोशिशें कर ले ।
हमने पढ़ लिख लिया । ज़रा ज्यादा अंग्रेज हो गए और सेक्यूलर इतने बड़े हुए कि प्रयाग जैसे मर्मस्थल को भी इलाहाबाद कहना स्वीकार कर लिया। यह हिन्दुओं की पराजय का जीवंत प्रमाण है । इससे बड़ी पराजय क्या होगी कि तुमने प्रयाग को इलाहाबाद कहना स्वीकार कर लिया !
कल वाराणसी को सूफ़ियानाबाद और मथुरा को मौलानाबाद कहना भी मंज़ूर कर लेते । यह सब घटित होकर रहता अगर प्रबल हिन्दू सरकार सत्ता में न आती । प्रयाग कितना सुंदर, कितना विलक्षण और कितना संप्रेषी नाम है ! ध्वनि सौन्दर्य ही अनूठा है ।
एक शब्द जैसे भारततीर्थ को साकार करता है । आह! प्रयाग में ही प्राण निकले! यह सोचकर न जाने हिन्दुओं की कितनी तो पीढियां खप गईं । गंगा जमुना के तट पर स्नान करने को विकल हिन्दू आत्मा से उसे प्रयाग मानते हुए मुंह से इलाहाबाद कहने को बाध्य होता रहा और पतित कांग्रेसियों के कान को कोई गर्म हवा छू तक न सकी ।
आज इनका दूसरा मासूम स्त्रीहंता अच्छा हिन्दू बनने का स्वांग रच रहा है । अच्छा हिन्दू !! हाहाहाहाहा ….तुझसे खराब हिन्दू तो खोजने से भी न मिले ! ईश्वर न करे कि हिन्दू तुम्हारे पदचिन्हों पर चल पड़े….अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण और अल्लाहाबाद का प्रयाग में पर्यवसन ही समय की पुकार है । वह हो रहा है उसमें भागीदार बनो…! न हो सकते भागीदार तो भाग खड़े हो कही और तमाशा देखो…
देवांशु झा की फेसबुक वाल से