विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ ने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया है. संसद के मौजूदा सत्र की शुरुआत से ही सदन में गौतम अदानी और अन्य कई मुद्दे को लेकर सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गतिरोध जारी है. राज्यसभा का गठन हुए 72 हो गया है लेकिन आज तक राज्यसभा के सभापति के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया गया है .भारतीय संविधान में दिए गए प्रावधानों की बात करें तो संविधान में राष्ट्रपति को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया की विस्तार से चर्चा की गई है. उपराष्ट्रपति जो कि राज्यसभा के सभापति भी होते हैं, इसके लिए अलग से कोई नियम नहीं बनाया गया है. इस मामले में वही नियम लागू होते हैं जो लोकसभा के अध्यक्ष को हटाने के लिए हैं
उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए 14 दिन पहले उनके ख़िलाफ़ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दिया जाना ज़रूरी है.उपराष्ट्रपति को पद से हटाने की प्रक्रिया राज्यसभा में ही शुरू की जा सकती है, क्योंकि वो राज्यसभा के सभापति भी होते हैं , अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए राज्यसभा के सभापति के ख़िलाफ़ ख़ास (निश्चित) आरोप होने चाहिए और नोटिस के 14 दिनों के बाद ही इस प्रस्ताव को राज्यसभा में लाया जा सकता है. इस प्रस्ताव को राज्यसभा के मौजूदा सदस्यों के सामान्य बहुमत से पारित कराना ज़रूरी होता है. राज्यसभा से पास होने के बाद इस प्रस्ताव को लोकसभा के भी सामान्य बहुमत से पास कराना ज़रूरी होता है .
यह पहला मौक़ा है जब भारत के किसी उपराष्ट्रपति को हटाने की प्रक्रिया शुरू करने के लिए राज्यसभा में प्रस्ताव भेजा गया है. इस तरह की पहल से विपक्ष को कुछ भी हासिल नहीं होगा, क्योंकि वो इसे पास नहीं करवा पाएंगे. उपराष्ट्रपति के ख़िलाफ़ इस तरह के प्रस्ताव आना भी सही नहीं है. राज्यसभा के सभापति को हटाने के लिए 14 दिन पहले नोटिस देना ज़रूरी है, लेकिन संसद का सत्र 20 तारीख़ को ही ख़त्म हो रहा है. राष्ट्रपति के ख़िलाफ़ महाभियोग शुरू करने के लिए ‘संविधान का उल्लंघन करना’ आधार होता है, लेकिन उपराष्ट्रपति के लिए ऐसा कुछ नहीं है, उन्हें केवल सदन का भरोसा खो देने पर भी हटाया जा सकता है .लेकिन सदन का भरोसा उन पर कायम है .
विपक्षी दलों के इस कदम से शीत सत्र में सरकार और विपक्ष के बीच तल्खी और बढ़ जाएगी .विपक्षी दलों ने संविधान के अनुच्छेद 67बी के तहत यह नोटिस दिया है .प्रस्ताव पर 50 सांसदों के हस्ताक्षर की अनिवार्यताओं की पहली शर्त के अनुसार यह नोटिस दिया गया है . इसमे प्राविधान है कि उपराष्ट्रपति को राज्यसभा में बहुमत से हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव पारित किया जा सकता है , मगर इसे लोकसभा से भी पारित करना अनिवार्य है .लेकिन लोकसभा में सरकार का बहुमत है और यह प्रस्ताव पहले दिन ही ख़ारिज हो जाएगा .सब कुछ जानते हुए भी विपक्ष भ्रमित करने के लिए यह प्रस्ताव लाया है .