इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कांग्रेस के हाथ में है, लेकिन जब से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इंडिया गठबंधन की अगुआई करने की इच्छा जताई है तब से नेतृत्व परिवर्तन के मुद्दे पर बहस हो रही है .समाजवादी पार्टी, एनसीपी (शरद पवार) और शिवसेना (उद्धव ठाकरे) इस मुद्दे पर ममता बनर्जी का समर्थन कर चुकी हैं. ममता बनर्जी को राष्ट्रीय जनता दल अध्यक्ष लालू यादव का समर्थन मिलने के बाद नेतृत्व परिवर्तन पर बहस और तेज़ हो गई है.
लालू यादव की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल और कांग्रेस के रिश्ते अच्छे रहे हैं. बिहार और झारखंड में दोनों दलों के बीच अब तक अच्छा तालमेल दिखा है. जब पत्रकारों ने उनसे कहा कि कांग्रेस ने ममता को नेतृत्व देने की मांग पर आपत्ति जताई है तो उन्होंने कहा, कांग्रेस के विरोध से कुछ नहीं होने वाला है. ममता को नेतृत्व दिया जाना चाहिए. तेजस्वी यादव ने भी अपने पिता के सुर में सुर मिलाते हुए ममता का समर्थन किया है. उन्होंने कहा कि ममता बनर्जी के नेतृत्व को लेकर कोई आपत्ति नहीं है. इस बीच, आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावनाओं से इनकार किया है. कहा जा रहा है कि ऐसा करके वो भी कांग्रेस को इंडिया गठबंधन का नेतृत्व करता नहीं देखना चाहते हैं.
सवाल ये है ‘इंडिया’ गठबंंधन में शामिल कुछ पार्टियां कांग्रेस के नेतृत्व पर सवाल क्यों उठा रही हैं. लोकसभा चुनाव में कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) और एनसीपी (शरद पवार) और तृणमूल कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन से विपक्ष के हौसले बुलंद थे. उसे लग रहा था कि अब वो विधानसभा चुनावों में बीजेपी को हरा देगा. लेकिन राज्यों के चुनाव में खास कर हरियाणा और महाराष्ट्र में कांग्रेस की हार के बाद बाकी विपक्षी दलों को लग रहा है कि इससे ‘इंडिया’ गठबंधन कमजोर हुआ है.
कांग्रेस को हाल के विधानसभा चुनावों में करारी हार का सामना करना पड़ा. हरियाणा में इसे 90 सीटों में से सिर्फ 37 सीटें मिलीं.जम्मू-कश्मीर में 90 सीटों में सिर्फ उसे छह सीटें मिली हैं और वो नेशनल कॉन्फ्रेंस की जूनियर पार्टनर बन कर रह गई. वहीं महाराष्ट्र में वो महाविकास अघाड़ी गठबंधन में सबसे ज़्यादा 103 सीटों पर चुनाव लड़ी, लेकिन सिर्फ 16 सीटें जीत पाई.
कांग्रेस इंडिया गठबंधन को जिस तरह से चला रही है. उससे उसके सहयोगी दल नाराज हैं. होना तो ये चाहिए कि गठबंधन का कोई कार्यालय होता, संयोजक और प्रवक्ता होता. साझा मुद्दे होते. लेकिन ये सारी चीजें गायब हैं. इसलिए सहयोगी दलों को लगता है कांग्रेस इस गठबंधन को चलाने में सक्षम नहीं है. उसे दूसरे को मौका देना चाहिए. दूसरी ओर कांग्रेस को लग रहा है कि समाजवादी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, एनसीपी (शरद) पवार, शिवसेना (उद्धव ठाकरे) का सीमित असर है. वे जाएंगे कहां. भाजपा के पास तो जा नहीं सकते. इसलिए कांग्रेस मनमानी कर रही है.