ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी में दिये गये राहुल गाँधी के बयान से उपजा विवाद बड़े राजनीतिक संघर्ष की ओर बढ़ चला है. माफी और कबूलनामे के इसी विवाद के बीच राहुल गाँधी अपनी संसदीय सदस्यता गवाँ बैठे. इसकी वजह है गुरुवार को सूरत की अदालत द्वारा मोदी उपनाम से जुड़े मानहानि मामले में दो साल की सजा सुनाया जाना.इसी परिपेक्ष्य में शुक्रवार को लोकसभा सचिवालय द्वारा जारी अधिसूचना के अनुसार उनकी लोकसभा सदस्यता रद्द कर दी गई. यह निर्णय संविधान के अनुच्छेद 102 (1) (e) के प्रावधानों और जनप्रतिनिधित्व कानून 1951 की धारा आठ के तहत लिया गया. गौरतलब है कि राहुल गाँधी केरल के वायनाड से संसद सदस्य चुने गये थे.
असल में 2019 के आम चुनाव में कोलार की एक रैली में राहुल गांधी ने कहा था कि, “नीरव मोदी, ललित मोदी और नरेन्द्र मोदी का सरनेम कॉमन क्यों है? सभी चोरों का सरनेम मोदी ही क्यों होता है? सभी चोरों का उपनाम मोदी है?” इसी को लेकर गुजरात के भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया था. अदालत ने राहुल गांधी को सजा खिलाफ अपील करने के लिए 30 दिन की मोहलत दी है.
हालांकि राहुल गांधी की सदस्यता बचाने के विकल्प अभी उपलब्ध है. यदि उच्च न्यायलय सूरत सेशन कोर्ट के फैसले पर स्टे आर्डर देता है तो उनकी सदस्यता बच जाएगी नहीं तो वे सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं. अगर उच्चतम न्यायलय राहुल गाँधी को राहत नहीं देता है तो उनके लिए विकट स्थिति उत्पन्न हो सकती है क्योंकि सजायाफ्ता होने की वज़ह से वे अगले आठ वर्षों तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगे. जनप्रतिनिधि कानून 1951 की धारा 8 के अनुसार सांसद या विधायक को किसी भी मामले में दो वर्ष अथवा उससे अधिक की सजा होने पर उनकी संसद सदस्यता स्वतः रद्द हो जाती है तथा वे सजा की अवधि पूरी होने के छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते. इसी नियम के आधार पर राहुल गाँधी वर्ष 2024 और 2029 के आम चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित हो जाएंगे.