पूरी दुनिया में भारत की पहचान धर्म के आधार पर बनी है। भारत की पहचान यहाँ जन्में अवतारों के कारण बनी है। इससे बढ़कर भगवान के जो नित्य अवतार हैं; ऋषि-महर्षि, विचारक-चिंतक जिन्होंने सतयुग से लेकर कलयुग तक जो विपुल साहित्य भंडार सम्पूर्ण समाज को दिया है उससे बनी है। उन्होंने प्रत्येक युग में विचरण करते हुए परिव्राजक जीवन जीते हुए सम्पूर्ण आर्यावर्त में अपने ज्ञान का आलोक बिखेरा है। इसके कारण हमारा देश ‘भारत’ सम्पूर्ण विश्व में विश्वगुरु के रूप में स्थापित हुआ है।
“अतीत को वर्तमान से जोड़ना और वर्तमान को अनागत से जोड़ना ही हमारी पद्धति रही है” और इसीलिए हमने अपने आप को रूढ़िवादी होने के आरोप से सदैव बचाया है और हम हमेशा आधुनिकतावादी बने रहे हैं और इसलिए हम हमेशा अद्यतन रहते हैं। क्योंकि दुनिया के साहित्य मनीषी इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि दुनिया का सबसे आदि ग्रंथ ऋग्वेद है और ऋग्वेद ने ही हमें जीवन जीने की कला दी है। आज जितना कुछ अन्वेषण के रूप में दुनिया के सामने आ रहा है उसके मूल में भारत का ऋग्वेद ही है।
आज हम वैश्वीकरण के युग में, सेटेलाइट के युग में जी रहे हैं और एक सूचना को क्षण में एक जगह से दूसरी जगह भेज रहे हैं यह हमारे प्राचीन वैज्ञानिकों की ही उपलब्धि का विकास है। दो हजार साल पहले आई अंग्रेजी भाषा में आए शब्द ही आजकल ज़्यादा प्रचलन में हैं और हमने उसका प्रयोग इतना किया है की अब रिसर्च, एक्सपेरिमेंट, लैबोरेटोरी, जैसे शब्द का प्रयोग करते हैं तो यह मान लिया जाता है कि यही भाषा दुनिया को सिखाने वाली भाषा है। इससे पहले कोई समृद्ध भाषा नहीं थी।
देश विदेश जहाँ भी मुझे ऐसे तर्क दिए जाते हैं तो उनसे मेरा सिर्फ एक ही सवाल होता है कि “क्या अंग्रेजी भाषा से पहले कोई रिसर्च नहीं होता था, क्या इससे पहले कोई एक्सपेरिमेंट नहीं हुआ करते थे, क्या इससे पहले लैबोरेटोरी नहीं हुआ करती थी। आज के वैज्ञानिक जब यह कह रहे हैं कि हम उस भगवान की खोज में जिसके कारण यह चित्र-विचित्र दुनिया हमें दिखाई दे रही है। मुझे इस बात से हंसी आती है जब वैज्ञानिक यह कहते हैं की हमने ब्रम्हांड में ‘गॉड पार्टिकल’ की खोज कर ली है, तो हम भी अपने अतीत में जाते हैं जहाँ चार वर्ष के ध्रुव ने नारद का उपदेश प्राप्त करने के बाद 100 प्रतिशत गॉड को प्रकट किया है, नौ वर्ष का प्रल्हाद अपनी आस्था और विश्वास से अपने पिता के सवाल कि “तेरा भगवान कहाँ है?” का उत्तर देता है कि “मेरा भगवान हर जगह है ‘अनोरिणीयान महतोमहियान’ है। वही भगवान जब सरयू के तट पर जन्म लेता है तो वही रामलला होते हैं, वही रामचन्द्र होते हैं, वही राघव होते हैं और वही अयोध्या पर्व का केंद्र बिन्दु होता है।
सारी दुनिया को आलोकित करने वाले उस राम के कारण ये भारतवर्ष पूरी दुनिया में जाना जाता है। अभी जनवरी के महीने में मैं जाबालिपुरम (जबलपुर) जो जबालि ऋषि की तपोभूमि है और नर्मदा के तट पर स्थित है, से आया हूँ। वहाँ अभी द्वितीय वर्ल्ड रामायण कांफ्रेंस आयोजित हुई थी। जहाँ दुनिया के कई विद्वान रामायण के संदर्भ में अपने विचार व्यक्त करने आए। ‘फादर कामिल बुल्के’ के बारे में जानते होंगे जिन्होंने राम के संदर्भ में बहुत रिसर्च करके उनके विचारों और उनकी संस्कृति को स्थापित किया।
भारत के लोग संस्कृत में कहते हैं ‘रामो: विग्रहवान धर्मः’। सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीशों ने कहा की अयोध्या का मामला हमारे प्राथमिकताओं में नहीं है लेकिन भारत के इतिहास को भारत का न्यायालय कभी झुठला नहीं सकता और वही हुआ सुप्रीम कोर्ट ने आखिरकार इस पर मोहर लगाई और अयोध्या का यह ऐतिहासिक फैसला आया। ये विजय हमारे परंपरा की है, हमारे विश्वास की है।
अयोध्या पर्व के इस अवसर पर यह पर जो भिन्न-भिन्न कार्यक्रम आयोजित किए गए हैं उन सांस्कृतिक कार्यक्रमों के माध्यम से हमारे संज्ञान में खासतौर से इस वर्तमान पीढ़ी के हाथ में लाया जा सकता है। हम एक क्लिक में दुनिया के किसी कोने में आयोध्य के इस पर्व को पहुँच सकते हैं। जब हम दुनिया भर की चीज़े यह देख सकते हैं तो हमारे पास तो दुनिया को देने के लिए बहुत कुछ है। हम क्यों नहीं दुनिया को दिखा सकते हैं। मुझे दुनिया के भ्रमण का चार बार मौका मिला। जहाँ दुनिया भर के प्रोफेसर और छात्रों के साथ बात करने का मौका मिला तो जाना की वो भारतवर्ष के विशेषताओं को जानना चाहते हैं। उन विशेषताओं को रेखांकित करने के लिए ये अयोध्या पर्व, अयोध्या न्यास के माध्यम से आयोजित, दुनिया को अमरपाथेय देने वाला हो सकता है।
मैने पौराणिक ग्रंथों का अध्ययन किया है दुनिया कहती है कि आर्यवर्त छोटा था। मैं ये मानता हूँ की पूरी दुनिया आर्यावर्त के अंतर्गत थी। राम के राज्याभिषेक की खबर देने जब उनके गुरु खुद आए तो राम को क्षोभ हुआ की क्या मुझे अयोध्या के चारदीवारी में बंद किया जा रहा है। राम केवल अयोध्या के महापुरुष नहीं है, राजपाट में विश्वास रखने वालों के लिए राजनैतिक आदर्श हैं, राज्य प्रबंधकों के लिए वो एक अच्छे प्रबंधक हो सकते हैं, वो आस्थावान लोगों के दिलों की धड़कन हैं, उनके प्राणों के स्पंदन हैं, इसलिए राम असीमित हैं। और ऐसा राम कभी पराजित नहीं होता।
विभीषण भी राम के सामने युद्ध के मैदान में खड़े होकर कहते हैं कि आपके पास न रथ है, आपके पास पदत्राण भी नहीं है, और ऋषि होने के कारण आपका हृदय जीर्ण-शीर्ण है आप कैसे जीतेंगे? तो राम कहते हैं कि ये मेरा विश्वास है कि मैं जीतूँगा क्योंकि वो संसार को रुलाने वाला है और मैं संसार को आनंदित करने वाला।
अयोध्या पर्व की पहली आवृति स्थापना और उसके बाद ये दूसरी आवृति। ऐसे ही आवृतियाँ दोहराई जाएंगी और उनमें हम विश्व को ये संदेश देना चाहते हैं, आज विश्व आतंकवाद की चुनौतियों से जूझ रहा है, अनेक प्रकार के अनर्गल प्रलाप हो रहे हैं, लोगों के मन में भ्रम, लोगों के मन में संशय, लोगों के मन में विपरीत ज्ञान, लोगों के मन में विपरीत धारणा फिर लोग कहते हैं कि हम नूतन अवधारणा की तरफ आगे बढ़ रहे हैं। मैं भारतवर्ष के लोगों को कहना चाहूँगा की आप नूतन अवधारणा का सम्मान तो करें लेकिन हमारी पुरानी संस्कृति जो ऋषि प्रणीत परंपरा है उसे नष्ट न होने दें।
हमारे मूल्य धूलधूसरित न हो जाए ये चिंता करने की जरूरत है। उसके लिए ये अयोध्या पर्व भले ही भारत की राजधानी में मनाया जा रहा हो लेकिन इस पर्व को फैलाने की आवश्यकता है। देश के सभी अंचलों में, देश के सभी क्षेत्रों में, देश के सभी प्रांतों में, जनपदों में, देश के 5 लाख 75 हजार गाँव तक इसकी अनुगूँज फैलाने की आवश्यकता है। वाल्मिकीय या तुलसीदास जी के रामायण ही नहीं है इसमें तमिल के महान कवि कम्बन ने भी एक रामायण लिखा है। इन्होंने तुसलीदास जी के पहले ही रामायण लिखा था और काशी में जब उसका पाठ हुआ करता था तो वो भी सुनने जाया करते थे। वाल्मीकि जी ने राम की प्रेरणा नारद से ली थी और तुलसीदास जी वाल्मीकि और अन्य रामायणों से।
तुलसी के राम आम नहीं हैं वो माता की आज्ञा को मानकर उसमें अपना हित देखकर वन चले जाते हैं। तुलसी के राम आदर्श राम हैं। मैं फादर कामिल बुल्के का बहुत आदर करता हूँ। उन्होंने एक ईसाई होकर भी भारतीय संस्कृति को पढ़ा, समझा, जाना। इसीलिए आज मुझ जैसा अदना सा इंसान जो 1984 से आंदोलन से जुड़ा, संघ से जुड़ा और प्रचारक बना, आज भी विश्व हिन्दू परिषद के साथ जुड़ा हूँ। इसलिए मुझे विश्वास था कि राम कभी पराजित नहीं होते, यह आर्यावर्त का सत्य है। इसलिए धर्म की व्याप्ति को हम छोटी न करें, आर्यावर्त की व्याप्ति को हम छोटी न करें और अयोध्या पर्व जैसा छोटा-सी गंगोत्री जैसा ये आयोजन महासागर बन जाए।
चित्रकूट में एक छोटा सा बालक था वहाँ मैंने राममनोहर लोहिया को सुना था, उन्होंने कहा था की अगर विश्व को कोई जोड़ सकता है तो वो श्रीराम हैं और आज इंग्लैंड की महारानी और अमेरिका का राष्ट्रपति जब अपने यूथ को बुलाते हैं तो कहते हैं की इंडियन यूथ तुम्हें फेल करने जा रहे हैं इसलिए भारत के युवकों में पुरुषार्थ जाग रहा है। ये अयोध्या पर्व, अयोध्या न्यास भारत के युवकों में पुरुषार्थ जागरण की प्रेरणा दे रहा है। धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ये चतुर्विद पुरुषार्थ हैं इन्हें जगाने के लिए अयोध्या पर्व अमरपाथेय सिद्ध होने वाला है। अपने अनुभवों के माध्यम से ये कह सकता हूँ की भारत विश्वगुरु था, विश्वगुरु है और भविष्य में भी विश्वगुरु रहेगा।