विचार में शक्ति संकल्प से आती है। आजादी के अमृत महोत्सव का संकल्प वैसा ही है, जैसा महात्मा गांधी के नमक सत्याग्रह का था। वह पराधीनता से पूरी मुक्ति का दूसरा आंदोलन था। जिसे आत्मनिर्भर भारत के विचार का पर्याय कहना चाहिए। ‘पूर्ण स्वराज्य’ के प्रस्ताव पर देशभर में बड़े उल्लास से आयोजन हुए थे। 26 जनवरी, 1930 के हर आयोजन से स्वाधीनता का संकल्प आसमान को चूम रहा था। लेकिन प्रश्न था कि अगला कदम क्या हो? पहले सविनय अवज्ञा आंदोलन की परिस्थितियां नेताओं के दिमाग में थीं। उसे महात्मा गांधी ने 1919 में शुरू किया और 1922 में वापस ले लिया।
महात्मा गांधी के सहयोगी समझ नहीं पा रहे थे कि जनता क्या सघर्ष के लिए तैयार है। अगर हां तो उसके लक्षण पर बड़े मतभेद थे। गांधीजी ने दूसरे सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए नमक को ही क्यों चुना? यह प्रश्न भी उमड़-घुमड़कर तैर रहा था। इसका एक इतिहास है। जो 11 सूत्री मांग वाइसराय इरविन को गांधीजी ने दी थी, उसमें भी नमक का प्रश्न चौथे नम्बर पर था। अचानक वह पहले नम्बर पर कैसे आया? क्यों गांधीजी ने पूर्ण स्वराज्य के संग्राम को नमक से जोड़ा? यही महात्मा गांधी का अनोखापन था, जिसे जनसमर्थन के ज्वार ने नेतृत्व को तब समझाया।
जिन्हें महात्मा गांधी का स्नेह प्राप्त था और जो हिंदू-मुस्लिम मामलों में उनके परामर्शदाता भी थे, वे डॉ. मुख्तार अंसारी भी समझते थे कि इस समय आंदोलन का वातावरण नहीं है। उन्होंने एक पत्र लिखा, जिसमें कहा कि हिंदू-मुस्लिम एकता वैसी नहीं है जैसी पहले सविनय अवज्ञा आंदोलन के समय थी। क्या यह भी एक कारण है कि गांधीजी ने नमक को ही सत्याग्रह के लिए चुना? इसका हां और ना में उत्तर नहीं हो सकता। नमक का प्रश्न था पुराना। जिसे उस समय गांधीजी ने इसलिए चुना क्योंकि हर भारतीय को प्रभावित कर रहा था। अमीरी और गरीबी जिसके रास्ते में बाधा नहीं बनती। मजहब का भेद जिसमें मिट जाता है। वह ऐसा प्रश्न था जिसे इतिहास के तहखाने में डाल दिया गया था। उसे उन्होंने खोजा।
सत्याग्रह से पहले ही पूरे देश को याद आया। इसमें मीडिया ने भूमिका निभाई कि ब्रिटिश शासन में 1836 वह साल है जब एक नमक आयोग बनाया गया। उसकी सिफारिश पर भारत में नमक पर कर लगाने का निर्णय हुआ। उससे अंग्रेजी नमक को बाजार मिला। भारत में नमक बनाना अवैध हो गया। इसे गांधीजी ने बहुत पहले एक मुद्दा बनाया था। राजमोहन गांधी ने लिखा है कि 1891 में महात्मा गांधी ने एक लेख लिखा जिसमें उन्होंने नमक पर कर का विरोध किया था। उसे इतिहास का अन्याय बताया था। हिन्द-स्वराज में भी यह विषय आया है।
नमक के प्रश्न को दादाभाई नौरोजी और गोपालकृष्ण गोखले भी उठाते रहे। इस तरह कह सकते हैं कि यह विषय पुराना था जिसे उस समय गांधीजी ने फिर से जिंदा किया। उन्होंने वाइसराय लार्ड इरविन को एक लंबा पत्र लिखा। यह एक ऐतिहासिक दस्तावेज है। जिसे वायसराय ने अगर पढ़ा होगा तो उनकी नींद हराम हो गई होगी। किसी वायसराय के लिए एक ही बार में उसे आत्मसात करना असंभव था।
गांधीजी अपने पत्र में सीधे कहते हैं- ‘मैं ब्रिटिश शासन को भारतवर्ष के लिए नाशकारी मानता हूं’। इसकी व्याख्या वे करते आ रहे थे कि ब्रिटिश शासन भारत की आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विपदा का मूल कारण है। इन कारणों को दूर करने के लिए ही वे स्वतंत्रता संग्राम उस समय छेड़ने के लिए संकल्पबद्ध थे। महात्मा गांधी अपने पत्र का अंत इस तरह करते हैं- ‘इस पत्र का हेतु धमकी देना नहीं है। यह तो सत्याग्रही का साधारण और पवित्र कर्तव्य मात्र है। इसीलिए मैं इसे भेज भी खासतौर पर एक ऐसे युवक अंग्रेज मित्र के हाथ रहा हूं जो भारतीय पक्ष का हिमायती है। जिसका अहिंसा पर पूर्ण विश्वास है और जिसे शायद विधाता ने इसी काम के लिए मेरे पास भेजा है।’ गांधीजी का दूत रेजिनाल्ड रेनाल्ड था।
वाइसराय इरविन ने स्वयं नहीं, अपने सचिव से उत्तर भिजवाया। वह नकारात्मक था। इस पत्रोत्तर ने नमक सत्याग्रह के दरवाजे खोल दिए। गांधीजी को आशंका थी कि सरकार उन्हें गिरफ्तार कर सकती है। इसे यात्रा की पूर्वसंध्या पर उन्होंने अनेक तरह से जहां व्यक्त किया वहीं निर्देश भी दिए कि उनकी गिरफ्तारी हो जाने पर सत्याग्रह रुकना नहीं चाहिए। गांधीजी के सहयोगियों के अलावा उनके जीवनी लेखकों ने 11 मार्च के उनके भाषण को अपने-अपने ढंग से लिखा है। साबरमती आश्रम की चहल-पहल और उत्सुकता का वर्णन भी किया है। वे वर्णन प्रेरक हैं। इतिहास की गवाही देते हैं। गांधीजी की दांडी यात्रा 24 दिनों की थी। वह निर्विघ्न पूरी हुई। 6 अप्रैल, 1930 को हाथ में नमक उठाकर उन्होंने ब्रिटिश सरकार को चुनौती दे दी। मेरा मानना है कि ब्रिटिश सरकार पहली बार महात्मा गांधी के पत्र की भाषा में ऐसी उलझी रही कि वह अनिर्णय से निकल ही नहीं पाई। नमक सत्याग्रह ने पूरे देश को स्वाधीनता के सपने से जोड़ दिया।
यात्रा के प्रारंभ को ‘बाम्बे क्रानिकल’ के शब्दों में पढ़ें ‘इस महान राष्ट्रीय घटना से पहले, उसके साथ-साथ और बाद में जो दृश्य देखने में आए, वे इतने उत्साहपूर्ण, शानदार और जीवन फूंकने वाले थे कि वर्णन नहीं किया जा सकता। इस महान् अवसर पर मनुष्यों के हृदयों में देश-प्रेम की जितनी प्रबल धारा बह रही थी उतनी पहले कभी नहीं बही थी। यह एक महान आंदोलन का महान प्रारम्भ था, और निश्चय ही भारत की राष्ट्रीय स्वतंत्रता के इतिहास में इसका महत्वपूर्ण स्थान रहेगा।’ नमक सत्याग्रह का विश्वव्यापी प्रभाव पड़ा। इसे दो उदाहरणों से आज भी याद किया जा सकता है। पहली बार ‘टाइम’ पत्रिका ने अपने कवर पेज पर महात्मा गांधी को नमक कानून तोड़ते हुए दिखाया। दूसरा उदाहरण यह है, जिसे डॉ. बी. पट्टाभि सीतारामय्या ने कांग्रेस के इतिहास में लिखा है कि ‘इसी बीच अमेरिका के भिन्न-भिन्न दलों के 102 प्रभावशाली पादरियों ने तार द्वारा ब्रिटिश प्रधानमंत्री रैम्जे मैकडानल्ड साहब की सेवा में आवेदन-पत्र भेजा और उनसे अनुरोध किया कि गांधीजी और भारतवासियों के साथ शांतिपूर्ण समझौता किया जाए। इसपर हस्ताक्षर न्यूयार्क के डॉक्टर जॉन हेनीज होम्स ने करवाए थे। संदेश में प्रधानमंत्री से अपील की गई थी कि भारत, ब्रिटेन और जगत का हित इसी में है कि इस संघर्ष को बचाया जाए और समस्त मानव-जाति की भयंकर विपत्ति से रक्षा की जाए।’
उस दौर में नमक भारत की आत्मनिर्भरता का एक प्रतीक था। अंग्रेजों ने भारत के मूल्यों के साथ-साथ इस आत्मनिर्भरता पर भी चोट की।’ इस प्रकार स्वाधीनता के अमृत महोत्सव का विचार आज ‘दांडी मार्च’ में रूपांतरित होकर आत्म-निर्भरता का संदेश दे सकेगा।
वह सत्याग्रह भारत के लिए उतना ही महत्व रखता है जितना अमेरिका के लिए 4 जुलाई, 1776 का है। उसी दिन अमेरिका आजाद हुआ। इसी तरह नमक सत्याग्रह का भारत के लिए उतना ही महत्व है जितना फ्रांस के लिए 14 जुलाई, 1789 का है। जिस दिन वहां क्रांति घटित हुई थी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इन संदर्भों से पार जाकर उस सत्याग्रह को स्वतंत्रता के अमृत महोत्सव का प्रारंभिक क्षण बना दिया जो 15 अगस्त, 2023 को पूरा होगा। उन्होंने अपने मन की बात में 28 मार्च को कहा- ‘अमृत महोत्सव का शुभारंभ दांडी यात्रा के दिन हो रहा है। उस ऐतिहासिक क्षण को पुनर्जीवित करने के लिए एक यात्रा भी अभी शुरू होने जा रही है। ये अद्भुत संयोग है कि दांडी यात्रा का प्रभाव और संदेश भी वैसा ही है, जिसे लेकर आज देश अमृत महोत्सव के माध्यम से आगे बढ़ रहा है। गांधी जी की इस एक यात्रा ने आजादी के संघर्ष को एक नई प्रेरणा के साथ जन-जन से जोड़ दिया था। इस एक यात्रा ने अपनी आजादी को लेकर भारत के नजरिए को पूरी दुनिया तक पहुंचा दिया था। यह ऐतिहासिक है ऐसा इसलिए है क्योंकि, बापू की दांडी यात्रा में आजादी के आग्रह के साथ-साथ भारत के स्वभाव और भारत के संस्कारों का भी समावेश था।
उन्होंने नमक सत्याग्रह को इस भांति प्रासंगिक बनाते हुए कहा कि ‘हमारे यहां नमक को कभी उसकी कीमत से नहीं आंका गया। हमारे यहां नमक का महलब है- ईमानदारी। हमारे यहां नमक का मतलब है- विश्वास। हमारे यहां नमक का मतलब है- वफादारी। हम आज भी कहते हैं कि हमने देश का नमक खाया है। ऐसा इसलिए नहीं क्योंकि नमक कोई बहुत कीमती चीज है। ऐसा इसलिए क्योंकि नमक हमारे यहां श्रम और समानता का प्रतीक है। उस दौर में नमक भारत की आत्मनिर्भरता का एक प्रतीक था। अंग्रेजों ने भारत के मूल्यों के साथ-साथ इस आत्मनिर्भरता पर भी चोट की।’ इस प्रकार स्वाधीनता के अमृत महोत्सव का विचार आज ‘दांडी मार्च’ में रूपांतरित होकर आत्म-निर्भरता का संदेश दे सकेगा।