हेमंत शर्मा ने अपनी पुस्तक ‘राम फिर लौटे’ के जरिये रामतत्व, रामत्व और पुरुषोत्तम स्वरूप की विराटता से लोगों को परिचित कराया है। यह पुस्तक ‘मंदिर किन भारतीय मूल्यों का कीर्ति-स्तंभ होगा? इस पर रोशनी डालती है।’ इस अर्थ में भी यह पुस्तक भविष्योन्मुखी है। मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह रामनवमी का पहला अवसर है। जब रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे भगवान के माथे पर सूर्य तिलक होगा।
राम फिर लौटे, यही नाम है उस पुस्तक का, जिसे हेमंत शर्मा ने लिखा है। इसमें अतीत, वर्तमान और भविष्य भी है। वैसे तो इस पुस्तक का हर वाक्य पाठक के मन को और मर्म को छूता है। लेकिन अपनी भूमिका में हेमंत शर्मा ने एक प्रश्न उठाया है, ‘राम ही क्यों?’ उन्होंने इसका समाधान यूं किया है, ‘क्योंकि राम भारत की चेतना हैं। राम भारत की प्राणशक्ति हैं। राम ही धर्म हैं। धर्म ही राम है। भारतीयों के जीवन का आदर्श लोक रामनाम के धागों से बुना है।’ वे राम के समग्र आकलन का दावा नहीं करते। यह जरूर बताते हैं कि इस पुस्तक का उद्देश्य ‘रामतत्व, रामत्व और पुरुषोत्तम स्वरूप की विराटता से लोगों को परिचित कराना है।’ यह पुस्तक ‘मंदिर किन भारतीय मूल्यों का कीर्ति-स्तंभ होगा? इस पर रोशनी डालती है।’ इस अर्थ में भी यह पुस्तक भविष्योन्मुखी है। ऐसी अनेक बातें इसमें जगह-जगह हैं।
इस पुस्तक में आठ अध्याय हैं। पहला अध्याय अयोध्या पर है, ‘लोक मंगल की अयोध्या।’ दूसरा अध्याय है, ‘सबके राम।’ तीसरा अध्याय है, ‘सीय राममय सब जग।’ चौथा अध्याय है, ‘शताब्दियों का तप।’ पांचवां अध्याय है, ‘भूगर्भ की गवाही: अदालत का फैसला।’ छठवां अध्याय है, ‘भारतीयता का तीर्थ।’ सातवां अध्याय है, ‘मंदिर के साधक।’ आठवां अध्याय है, ‘समय साक्षी है।’ये अध्याय इस पुस्तक को एक समग्रता में समेटे हुए है। अयोध्या पर हेमंत शर्मा की दो प्रामाणिक पुस्तकें कुछ साल पहले आई थी। उनमें अयोध्या की संघर्ष गाथा थी। यह पुस्तक अयोध्या की विजय गाथा है। विजय का दूसरा नाम अयोध्या है। जिसे हेमंत शर्मा ने ‘लोकमंगल की अयोध्या बताया है।’ पुस्तक जिन कुछ वाक्यों से शुरू होती है, उन्हें यहां रखना इसलिए जरूरी है क्योंकि इनमें अयोध्या का परिचय है, ‘इतिहास अयोध्या का है। अयोध्या राम की है। और राम लोक के हैं। लोकतंत्र की परिधि में इस ‘अयोध्याकांड’ का एक चक्कर पूरा हो गया। अयोध्या में रामलला का भव्य एवं दिव्य मंदिर बन गया। अयोध्या का गौरव लौट आया। यह सिर्फ राम के जन्मस्थान का मंदिर ही नहीं, भारत की सनातनी आस्था का शिखर भी है। राम जन्मस्थान मंदिर अब इतिहास के खंडहरों से निकल देश के भविष्य का ‘सिंहद्वार’ बन गया है।’
यह पुस्तक रामजन्मस्थान पर रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पहले छपी थी। हम जानते हैं कि 22 जनवरी, 2024 को प्राण प्रतिष्ठा समारोह सम्पन्न हुआ। वह ऐतिहासिक दिन था। रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा का सपना हर भारतीय 496 साल से अपने मन में संजोये हुए था। वह पूरा हुआ। इसलिए वह घटना भारत के इतिहास में मील का पत्थर बनी रहेगी। लेकिन इस पुस्तक को पढ़ते हुए जब आप इसके पन्ने-दर-पन्ने पार करते हुए और उसका आनंद लेते हुए बढेंगे तो चकित हुए बिना नहीं रह सकेंगे। क्योंकि इस पुस्तक के अध्याय ‘भारतीयता का तीर्थ’ में यह वर्णन आप को जहां चकित करेगा, वहीं आनंद से भी भर देगा। ‘अयोध्या में रामनवमी रामभक्तों के लिए सबसे बड़ा आकर्षण होता है। अब वहां इस पवित्र दिन दोपहर 12 बजे एक अद्भुत नजारा दिखाई देता है। जब सूर्य की किरण रामलला के ललाट को छूती है और दृश्य ऐसा होता है, मानो सूर्यदेव खुद प्रभु का तिलक कर रहे हों।’
यही इस रामनवमी को घटित होने जा रहा है। इस आधार पर कह सकते हैं कि यह पुस्तक भविष्य में भी उतनी ही तरोताजा रहेगी जितनी आज है। हेमंत जी ही यह बता सकते हैं। दूसरा कोई लेखक अयोध्या पर पुस्तक लिखते समय इसे कदाचित विस्मृत कर देता। उससे यह वर्णन छूट जाता। हिंदी-अंग्रेजी की पुस्तकों में इसे आप खोजते रह जाएंगे और यह उल्लेख उनमें नहीं मिलेगा। लेकिन इस पुस्तक में है। यह अयोध्या की गहरी समझ का द्योतक है। उन्होंने जो लिखा है, वही इस वर्ष के रामनवमी पर्व को विशेष बनाता है। मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद यह रामनवमी का पहला अवसर है। मंदिर निर्माण समिति के अध्यक्ष नृपेंद्र मिश्र ने अप्रैल के पहले सप्ताह में देश-दुनिया को बताया कि ‘प्रयास हो रहा है कि रामनवमी के दिन दोपहर 12 बजे भगवान के माथे पर सूर्य किरण पड़े।’ इसे लोग रामलला का सूर्य तिलक कहेंगे। वह समय पांच मिनट का होगा। हेमंत जी ने अपनी पुस्तक में लिखा है, ‘इस दैवीय दृश्य को ज्यादा-से-ज्यादा श्रद्धालु देख पाएं, इसका भी उपाय किया गया है। सामान्य तौर पर 20 हजार भक्त मंदिर परिसर में मौजूद होते हैं। जिनमें से कुछ साक्षात् तो कुछ मंदिर परिसर में लगे टेलीविजन स्क्रीन पर उसे देख सकते हैं। सिर्फ मंदिर परिसर ही नहीं, पूरी अयोध्या नगरी में सैकड़ों स्क्रीन हैं, जिनके जरिए करोड़ों लोग एक साथ प्रभु के ‘सूर्य तिलक’ को निहार सकते हैं।’
इसे समझने के लिए पुस्तक का यह अंश भी पढ़ें, ‘दरअसल इस सूर्य तिलक को संयोग कहना ठीक नहीं है, बल्कि इसे खगोलशास्त्र और आधुनिक विज्ञान का योग कहना उचित होगा। प्रभु के सूर्य तिलक की यह कल्पना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की थी, जिसे पूरा करने के लिए निर्माण समिति ने बड़ी जुगत लगाई। बहुत से वैज्ञानिकों से सलाह ली गई, लेकिन प्रथम दृष्टया यह संभव नहीं लगा। विज्ञान के सिद्धांत कहते हैं कि सूर्य की दिशा और गति हर वर्ष एक जैसी नहीं होती, फिर तय वक्त पर, तय जगह पर, तय कोण पर ही सूर्य की किरण हर साल कैसे पहुंचाई जाए, यह बड़ी समस्या थी। लेकिन जहां चाह थी, वहीं राह मिली। मंजिल का मार्ग दिखाया रूडकी के केंद्रीय भवन अनुसंधान संस्थान ने। कई खगोल वैज्ञानिकों के साथ मिलकर एक ‘पायलट प्रोजेक्ट’ शुरू किया गया। प्रयोगशाला में पता चला कि कंप्यूटर के जरिए सूर्य की किरण को सही कोण देकर किसी तय स्थान पर केंद्रित किया जा सकता है। सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीटयूट (सीबीआरआई) की इस कड़ी मेहनत के बाद लैब सिमुलेशन कामयाब रहा और सूर्य तिलक की परिकल्पना साकार हो पाई।’
जैसे-जैसे रामनवमी निकट आने लगी, सूर्य तिलक के प्रति लोगों की उत्सुकता बढ़ी। यह बात आम हो गई। हर किसी को उस क्षण की प्रतीक्षा रही। इसलिए मीडिया में यह प्रमुख समाचार बना। जिन दिनों रामलला के सूर्य तिलक का ट्रायल हो रहा था उसे मीडिया ने लोगों तक पहुंचाया। यह बताया कि ट्रॉयल सफल रहा। उसकी तस्वीरें वायरल हुई। उन चित्रों में साफ दिखाई पड़ा कि सूर्य की किरणें रामलला के ललाट पर अनूठी छटा बिखेर रही हैं। सूर्य अभिषेक का प्रसारित वीडियो आकर्षण का केंद्र हो गया। रामनवमी के एक सप्ताह पहले की यह घटना है। वैज्ञानिकों ने सफल ट्रायल की सूचना दी। वैज्ञानिकों के एक दल ने जरूरी उपकरणों को लगाया और ट्रॉयल किया। इस तरह इसे पूरी दुनिया में भक्त देख सकेंगे।
सेंट्रल बिल्डिंग रिसर्च इंस्टीटयूट के वैज्ञानिकों ने जो सफलता पाई है, उससे रामनवमी के दिन रामलला के ललाट पर ढाई मिनट तक किरणों की तीव्रता अधिक होगी। लेकिन पांच मिनट तक सूर्य तिलक होता दिखाई पड़ेगा। यह सूर्य तिलक 75 मिलीमीटर का होगा। जो उपकरण तैयार किया गया है उसमें दर्पण, लेंस व पीतल का प्रयोग हुआ है। इसको सक्रिय करने के लिए बिजली या बैटरी की जरूरत नहीं होगी। यह भी योजना है कि प्रत्येक वर्ष रामनवमी पर रामलला का सूर्य तिलक किया जाएगा।
हेमंत शर्मा ने ‘भारतीयता का तीर्थ’ अध्याय में अयोध्या तब और अब को इस तरह लिखा है- ‘जन्मस्थान मंदिर के जरिए अयोध्या के नवनिर्माण की कोशिश राम की अयोध्या को अपने मूल स्वरूप की ओर लौटाने की है। सपना यही है कि अयोध्या फिर वैसी ही दिखे, जैसी महर्षि वाल्मीकि को दिखी। जैसी बाबा तुलसी को दिखी। मनु की बसाई हुई अयोध्या। मनु के पुत्र इक्ष्वाकु की अयोध्या। राजा भरत की अयोध्या। महाबली हनुमान की अयोध्या। हम सबके राजा रामचंद्र की अयोध्या।’ हमें वे यह याद दिलाते हैं कि ‘सरयू के किनारे बसी अयोध्या का उल्लेख ‘ऋग्वेद’ में आया है।’ जो इस तरह है- ‘सरयू नदी के तट पर संतुष्ट जनों से पूर्ण, धनधान्य से भरा-पूरा, उत्तरोत्तर उन्नति को प्राप्त कोसल नामक एक बड़ा प्रदेश था।’ राम जन्मस्थान मंदिर से अयोध्या ने पुन: अपने गौरव को प्राप्त कर लिया है।
आज अयोध्या के गौरव का अर्थ क्या है, इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक ट्वीट में लिखा है, ‘रामराज्य सच्चे लोकतंत्र का पर्याय है।’ अयोध्या का यही शास्वत संदेश है। जिसे महात्मा गांधी ने भी स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण अवसरों पर कहा और समझाया। अयोध्या ने पूरी दुनिया को एक सपना दिया, रामराज्य का। रामराज्य में एक ऐसे लोकतंत्र की कल्पना है जिसमें हर व्यक्ति अभय रहे। धर्म अर्थात कर्तव्य से संचालित हो। भारत इसी राह पर है।
(इस पुस्तक को प्रभात प्रकाशन ने छापा है।)