राजा-प्रजा के नैतिक आचरण का राज्य ही है रामराज्य

बनवारी

अयोध्या का रामराज्य से क्या संबंध है? गांधी जी ने रामराज्य को क्यों चुना? और तीसरी बात यह कि गांधी जी के लिए रामराज्य का क्या अर्थ था? अयोध्या एक ऐसा शब्द है जो आपको दुनिया भर में कहीं मिलेगा नहीं। हम सब उसकी ऐतिहासिकता को जानते हैं कि वह सूर्यवंशी राजाओं की राजधानी है। दो वंश है ‘सूर्यवंश’ और ‘चंद्रवंश’। चंद्रवंश में चक्रवर्ती भरत हुए उनसे हमारे देश को भारत नाम मिला। वर्णाश्रम में विहित समाज जितना हो सकता था वहां तक इसकी सीमाएं पहुँचाई और चक्रवर्ती हुए। भरत ने भारत को सम्यक विस्तार दिया और इस कारण हमने उन्हें गौरव दिया और उनका नाम धारण किया। चंद्रवंशियों ने हमको नाम दिया और सूर्यवंशियों ने राज्य का आदर्श। 

अयोध्या आंदोलन जब शुरू हुआ, तब मेरा ध्यान पहली बार इस शब्द की तरफ गया कि यह अयोध्या है क्या? तब मैंने वाल्मीकि रामायण और तुलसीदास का रामचरित मानस देखना शुरू किया कि अयोध्या का अर्थ क्या है? मैंने पाया की दोनों ही जगह अयोध्या का एक ही अर्थ है, “जो आयोध्य हो वही अयोध्या है।” लेकिन अयोध्य होने का अर्थ क्या है? बहुत सुंदर शब्दों में वाल्मीकि और तुलसीदास ने कहा है कि “जो नीति में इतनी ऊँची हो कि उससे लड़ने की इच्छा न हो और जो पराक्रम में इतनी ऊँची हो कि उससे लड़ने का साहस न हो वो अयोध्या है।” 

ये जो अयोध्या है ये अलौकिक है। इससे हमारी सभ्यता, हमारी राज्य व्यवस्था, हमारा राज्य धर्म परिभाषित होती है। तो अयोध्या अलौकिक है और रामराज्य लौकिक। ये दिखाता है कि एक राज्य को नीति के साथ-साथ पराक्रम पर भी समान रूप से ध्यान देना चाहिए? हम आमतौर पर नीति याद रखते हैं पराक्रम भूल जाते हैं। एक आख्यान याद रखने वाला है कि राजा दशरथ के समय में रावण भारत आया और उसने दशरथ जी को छोड़ सभी राजाओं को हरा दिया। और वापस जाने के बावजूद भी वह उत्पात मचाता रहा, पर दशरथ जी कुछ कर भी नहीं पा रहे थे क्योंकि नीति कहती है कि जब तक कोई आपके प्रति अपराध न करें तब तक आपको सामने वाले पर हमला नहीं करना चाहिए। 

महाराजा दशरथ का पराक्रम इतना ऊंचा है कि वो अकेले उस समय के अपराजेय राजा थे फिर भी उत्पात मचा रहे रावण के खिलाफ उन्होंने चढ़ाई नहीं की। क्योंकि उसने उनके खिलाफ कोई अपराध नहीं किया। फिर भगवान राम की लीला हुई या उन्हें वन भेज गया। सीता जी का हरण करके रावण ने अपराध किया और फिर भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई की और हम सब जानते हैं कि रावण कैसे परास्त हुआ। और उनकी जगह भगवान राम ने विभीषण का अभिषेक किया। 

जिस राज्य में नीति हो, जिस राज्य में पराक्रम हो, वही राज्य टिका रह सकता है। गांधी जी ने रामराज्य के बारे में बहुत कुछ कहा है, जब आप उसे जानेंगे तो आप उसमें तीन बातें पाएंगे, उन्होंने पहली बात कहा, “मेरा लक्ष्य रामराज्य है, मेरा लक्ष्य लोकतंत्र नहीं है, दूसरी बात उन्होंने कही की रामराज्य और स्वराज्य एक ही बात है, मेरा लक्ष्य स्वांतन्त्र ही नहीं है सिर्फ मेरा लक्ष्य रामराज्य है, तीसरी और अंतिम बात जो उन्होंने कही वो कि रामराज्य वो होता है “जिसमें राजा और प्रजा दोनों ही नैतिक आचरणों का पालन करे।” 

वो हमें सोचना है कि वो मर्यादा, वो नीति कैसी होगी और ये सोचना मुश्किल काम नहीं है। आज हम बहुत जल्दी इस बात पर आ जाते हैं कि जो पुराना है वो बीत गया अब उसे दोहराने से क्या मिलेगा? ये इतनी नादानी भरी बात है जो लोग दुनिया को नहीं जानते उसके इतिहास को नहीं जानते वही ऐसी बात कर सकते हैं। अगर यूरोप में रेनेसां ना हुआ होता, अगर पीछे मुड़कर ग्रीक थॉट को नहीं जाना होता तो आज उन्होंने जो ताना बाना खड़ा कर लिया है वो नहीं कर पाए होते। एक बहुत बड़े स्कालर ने कहा है कि “यूरोप का आधुनिकीकरण प्लेटो के फूटनोट के बराबर है।” 

मूल सिद्धांतों के लिए पीछे मुड़कर देखना पड़ता है। दुनिया भर में जितने भी मूल सिद्धांत है वो आदिकाल में ही रचे गए हैं चाहे वो चीन हो, रूस हो, भारत हो या कोई और देश। तो अगर आज हम उन मूल सिद्धांतों पर नहीं जाएंगे तो आज की दुनिया नहीं बना पाएंगे। मैं जो आपको आख्यान बता रहा था- देखिए कि आज वो कितना दृष्ट हो रहा है। आप देखिए कि राजा दशरथ की मर्यादा अपनी नीति के अंतर्गत रहकर काम करने की है और रावण का पराक्रम इसमें है कि वो बाहर निकले और दुनिया को जीत ले। 

आप पिछले पाँच सौ या हज़ार साल का इतिहास देखिए आपको पता चल जाएगा की रावण कौन है। यूरोप जब अपनी सीमाओं में था तो 6.7 प्रतिशत दुनिया में सीमित था जब वो बाहर निकला तो भारी विनाश किया। वहाँ के विद्वान मानते हैं कि अमेरिका की जनसंख्या उस वक़्त दस करोड़ थी पर यूरोप में अपने दस करोड़ जनसंख्या का विनाश इन पचास सालों में कर दिया। महात्मा गांधी ने बहुत सुंदर शब्द कहा है, जब वो साउथ अफ्रीका जा रहे थे। उनसे किसी ने पूछा कि भारत और यूरोप की सभ्यता में क्या अंतर है? तो उन्होनें जवाब दिया कि “यूरोपिय सभ्यता सेन्ट्रिफ्यूगल है और भारतीय सभ्यता सेन्टरीपिटल” भारतीय सभ्यता केंद्र की तरफ झुकी रहती है और अपने स्वभाव की रक्षा करती है जब की यूरोप की सभ्यता बाहर निकाल कर विनाश करती है। 

आप देखिए की यूरोप बाहर निकला और दुनिया का तीस प्रतिशत हिस्सा कब्ज़ा कर लिया, रूस बाहर निकला तो साइबेरिया, सेंट्रल एशिया सब पर कब्ज़ा कर लिया। चीन 1912 में आजाद हुआ और मंगोलिया को अपने कब्ज़े में ले लिया जिसको पहले शीन जियान कहते थे, उसने तिब्बत को अपने कब्ज़े में ले लिया और हम बैठे ताकते रहे। ये भारत का काम था कि वो देखे कि मर्यादा भंग हो रही है और उसकी सुरक्षा को बहुत बड़ा खतरा पैदा हो रहा है। आज जो चीन है उसका पचपन प्रतिशत भूभाग वो है जो काभी चीन का नहीं था। तो ये आज के रावण हैं। इनका मुकाबला करने के लिए आपको अयोध्या चाहिए, रामराज्य चाहिए। 

रामराज्य केवल न्याय के लिए प्रसिद्ध नहीं हैं बल्कि पराक्रम के लिए भी प्रसिद्ध है। यह देश चक्रवर्ती राजाओं का देश है चक्रवर्त्य दुनिया पर विजय नहीं है, दुनिया में धर्म की स्थापना है कि ‘अनुशासन में रहो’। और चक्रवर्त्य राजा दशरथ का भी था और भगवान राम का भी था। गांधी जी के अहिंसा को लेकर बहुत भ्रांतियाँ हैं, एक मेजर जेनरल पॉलेक थे वो टाइम्स ऑफ इंडिया में लेख लिखते थे। एक लेख में उन्होंने जिक्र किया था कि जब वो जब गांधी जी से मिले थे तो उन्होंने गांधी जी कहा था कि आप मुझे सेना से त्यागपत्र देने की अनुमति दीजिए ! तब गांधी जी ने उन्हें मना करते हुए कहा कि आप इस्तीफा मत दीजिए! देश जब आज़ाद होगा तो हमें सेना की जरूरत होगी। उसी लेख में वो आगे लिखते हैं कि जब जम्मू-कश्मीर का मुद्दा आया तो उससे कुछ दिन पहले वो नेहरू के पास गए थे और कहा था कि ये सेना तो अंग्रेजों का बनाया हुआ है इसका भारतीयकरण होना चाहिए। तब नेहरू ने कहा था कि हम शांतिप्रिय देश हैं हमें सेना की जरूरत नहीं है, आप क्यों ये नया विवाद खड़ा करना चाहते हो? उनके बाद वो गांधी जी के पास गए और उनसे पूछा कि आपको क्या ये उचित लगता है कि भारतीय सेना वहां जाए और हस्तक्षेप करे? गांधी जी ने कहा की ये जो भारत भूमि है और इसकी मर्यादा की रक्षा करना सेना का काम है। और अगर वो अपना दायित्व नहीं निभाती तो वो अपना दायित्व भूल गई होगी तो उसे भेजा ही जाना चाहिए। 

आप देखिए की जब यूरोप का उत्कर्ष हुआ तो अमेरिका ने खुद अजेय बनाने की कोशिश की और आज अमेरिका अजेय है। उसके पास ऐसे हथियार हैं कि उससे जीतना आसान नहीं है। रूस के पास भारत से कम ही संसाधन हैं फिर भी उसने आयुधों के मामले में खुद को अमेरिका से कम नहीं समझा। हाल ही में बनाए मिसाइल का दावा है कि ऐसा मिसाइल अमेरिका में कोई वॉरहैन्ड उसको बेच नहीं सकता। तो रूस जब इतने कम संसाधनों में खुद को अजेय बना सकता था फिर हम क्यों नहीं बना सकते थे? क्योंकि हमने कोशिश नहीं की। 

आज चीन अमेरिका को चुनौती दे रहा है। चीन खुद को अजेय बनाने की ही कोशिश कर रहा है। दुनिया में रहने के लिए ये बहुत आवश्यक होता है कि आप ये देखे की आप अपराजेय हो सकते हैं या नहीं। इसलिए गांधी जी ने आधुनिकता को आसुरी कहा क्योंकि वो दुनिया पर कब्जा करना चाहती है और उन्हें स्वराज नहीं रामराज्य चाहिए था। उन्होंने कहा कि जो भी व्यवस्था हो उसमें ऐसी व्यवस्था होनी चाहिए की राजा और प्रजा दोनों नैतिकता का आचरण करे। 

(वरिष्ठ पत्रकार बनवारी जी का यह वकत्व 5 जनवरी 2019 को अयोध्या पर्व के दौरान गांधी और रामराज्य विषय पर हुई संगोष्ठी का है)

 

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