संसद की नई इमारत में कार्यवाही मंगलवार से शुरू हुई. पहले दिन क़ानून मंत्री ने महिला आरक्षण से जुड़ा विधेयक पेश किया.इस विधेयक में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फ़ीसदी आरक्षण देने का प्रावधान किया गया है. महिला आरक्षण के लिए पेश किया गया विधेयक 128वां संविधान संशोधन विधेयक है.विधेयक में कहा गया है कि लोकसभा, राज्यों की विधानसभाओं और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की विधानसभा में एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी.
लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए सीटें आरक्षित हैं. इन आरक्षित सीटों में से एक तिहाई सीटें अब महिलाओं के लिए आरक्षित की जाएंगी. इस समय लोकसभा की 131 सीटें एससी-एसटी के लिए आरक्षित हैं. महिला आरक्षण विधेयक के क़ानून बन जाने के बाद इनमें से 43 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. इन 43 सीटों को सदन में महिलाओं के लिए आरक्षित कुल सीटों के एक हिस्से के रूप में गिना जाएगा.
इसका मतलब यह हुआ कि महिलाओं के लिए आरक्षित 181 सीटों में से 138 ऐसी होंगी जिन पर किसी भी जाति की महिला को उम्मीदवार बनाया जा सकेगा यानी इन सीटों पर उम्मीदवार पुरुष नहीं हो सकते. यह गणना लोकसभा में सीटों की वर्तमान संख्या पर की गई है. परिसीमन के बाद इसमें बदलाव आने की संभावना है.सबसे पहले संसद के दोनों सदनों, लोकसभा और राज्यसभा को इस विधेयक को दो-तिहाई बहुमत से पास करना होगा. इसके बाद जनगणना के बाद परिसीमन की कवायद की जाएगी.
परिसीमन में लोकसभा और विधानसभा क्षेत्रों की जनसंख्या के आंकड़ों के आधार पर सीमाएं तय की जाती हैं. पिछला देशव्यापी परिसीमन 2002 में हुआ था. इसे 2008 में लागू किया गया था.
परिसीमन की प्रक्रिया पूरी होने लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के भंग होने के बाद महिला आरक्षण प्रभावी हो सकता है. अभी ऐसा लग रहा है कि 2024 के लोक सभा चुनाव से पहले महिला आरक्षण का लागू होना संभव नहीं है.लागू हो जाने के बाद महिला आरक्षण केवल 15 साल के लिए ही वैध होगा. लेकिन इस अवधि को संसद आगे बढ़ा सकती है. यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि एससी-एसटी के लिए आरक्षित सीटें भी केवल सीमित समय के लिए ही थीं, लेकिन इसे एक बार में 10 साल तक बढ़ाया जाता रहा है.
सरकार की ओर से पेश विधेयक में कहा गया है कि परिसीमन की हर प्रक्रिया के बाद आरक्षित सीटों का रोटेशन होगा. इसका विवरण संसद बाद में निर्धारित करेगी. यह संविधान संशोधन सरकार को संसद और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के आरक्षण के लिए अधिकृत करेगा. सीटों के रोटेशन और परिसीमन को निर्धारित करने के लिए अलग एक कानून और अधिसूचना की ज़रूरत होगी. स्थानीय निकायों, जैसे पंचायत और नगर पालिकाओं में भी एक तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हैं. इनमें हर चुनाव में सीटों का आरक्षण बदलता रहता है यानी रोटेशन होता है. अनुसूचित जाति के लिए सीटें किसी निर्वाचन क्षेत्र में उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षित की जाती हैं.
अभी यह साफ नहीं हुआ है कि लद्दाख, पुडुचेरी और चंडीगढ़ जैसे केंद्र शासित राज्य, जहां लोकसभा की केवल एक-एक सीटें हैं, वहां सीटें कैसे आरक्षित की जाएंगी. उत्तर-पूर्व के कुछ राज्यों जैसे मणिपुर और त्रिपुरा में दो-दो सीटें हैं, जबकि नागालैंड में लोकसभा की एक ही सीट है.
साल 2010 में राज्यसभा की ओर से पारित किए गए विधेयक में कहा गया था कि जिन राज्यों या केंद्र शासित प्रदेशों में केवल एक सीट है, वहां एक लोकसभा चुनाव में वह सीट महिलाओं के लिए आरक्षित होगी और अगले दो चुनाव में वह सीट आरक्षित नहीं होगी. वहीं दो सीटों वाले राज्यों में दो लोकसभा चुनावों में एक सीट आरक्षित होगी, जबकि तीसरे चुनाव में महिलाओं के लिए कोई सीट आरक्षित नहीं होगी.17वीं लोकसभा में 82 महिलाएँ चुनकर आई हैं. उनका प्रतिनिधित्व करीब 15 फीसदी है. वहीं देश के 19 राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 10 फीसदी से कम है. संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, दुनिया भर की संसदों में महिलाओं का औसत प्रतिनिधित्व 26.5 फीसदी है.