1 thought on “कोरोना के बाद कला-संस्कृति की भूमिका पर मनीषी राम बहादुर राय जी का व्यख्यान”
आदरणीय राय साहब ! आपका कला – संस्क्रृति पर सम्बोधन सुना । आपके साथ बहुधा पी जाने वाली लस्सी याद आ गयी । उतना ही मृदु – सुस्वाद । ८० की आयु में आए तमाम आपात
कालोंं की श्रंखला में एक कार्टून रोज डाल कर इस समय का भी साक्षी बना रहता है यह कला-संस्कृति बिहीन कार्टूनिस्ट । आपको स्वस्थ देख कर बड़ी राहत और प्रसन्नता मिली ।
आपका काक
आदरणीय राय साहब ! आपका कला – संस्क्रृति पर सम्बोधन सुना । आपके साथ बहुधा पी जाने वाली लस्सी याद आ गयी । उतना ही मृदु – सुस्वाद । ८० की आयु में आए तमाम आपात
कालोंं की श्रंखला में एक कार्टून रोज डाल कर इस समय का भी साक्षी बना रहता है यह कला-संस्कृति बिहीन कार्टूनिस्ट । आपको स्वस्थ देख कर बड़ी राहत और प्रसन्नता मिली ।
आपका काक