हमें डा. अंबेडकर की संविधान सभा में भूमिका को समझने के लिए उनकी पृष्ठिभूमि को ध्यान में रखना बहुत जरूरी है। पहली बात यह है कि जब अंतरिम सरकार बनी तो उसमें कांग्रेस ने अपनी टीम में जगजीवन राम को हरिजन प्रतिनिधि के रूप में रखा।
मुस्लिम लीग जब उसमें शामिल हुई तो उसनें जोगिंद्र नाथ मंडल को रखा। उस समय डा. अंबेडकर की क्या मन:स्थिति थी। यह धनंजय कीर की डा.अंबेडकर की जीवनी को पढ़कर समझ सकते हैं। उन्होंने लिखा कि तब वह बहुत विचलित थे। उसी अवस्था में मित्रों की सलाह पर वे लंदन गए। उन्होंने शेड्यूलकास्टस फेडरेशन की तरफ से वायसराय को अनेक तार भिजवाए। जिसमें कहा गया कि जगजीवनराम नहीं, डा. अंबेडकर हमारे नेता हैं। 5 नवंबर 1946 को हाउस आफ कामंस के एक कमरे में बंद मीटिंग हुई। वह अंबेडकर के शुभ चिंतकों की मीटिंग थी। वहां उन्हें सलाह दी गई कि इस नई परिस्थिति में वायसराय कुछ नहीं कर सकते। इसी परिस्थिति में आपको रास्ता निकालना होगा।
इस सलाह से वह देश वापस आए। उनका नया अवतार हुआ और उसी मानसिकता में वे संविधान सभा में शामिल हुए। उन्हें कांग्रेस ने एमआर जयकर की खाली सीट पर संविधान सभा के लिए चुनवाया। पहले वे मुस्लिम लीग से समर्थन से बंगाल से चुनकर आए थे। कांग्रेस ने उन्हें संविधान की प्रारूप समिति का अध्यक्ष बनवाया।