अपने विश्वविद्यालय के बारे में अच्छा पढ़कर बड़ा भला लगता है। अपनत्व का एहसास जो गहराता है। इसीलिए पत्रकार साथी जावेद मुस्तफा की रपट (दैनिक हिंदुस्तान : 25 मई 2023) मन को बहुत भा गई। खबर मिली कि लखनऊ विश्वविद्यालय में बापू के आश्रम (साबरमती) की तर्ज पर एक प्रतिकृति बनायी जा रही है। मकसद है कि छात्रों को राष्ट्रपिता से विस्तृत तथा सम्यक तरीके से अवगत कराया जा सके। यूं बापू तो लखनऊ आए थे (24 दिसंबर 1916) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 31वें प्रतिनिधि सम्मेलन में जब जवाहरलाल नेहरू की उनसे पहली भेंट चारबाग रेलवे स्टेशन पर हुई थी। मगर बापू तब विश्वविद्यालय नहीं आ पाए थे हालांकि परिसर निर्मित हुये अर्धसती बीत गई थी। तब उस पर अंग्रेज गवर्नर सर लेस्ली एलेक्जेंडर और उनके हितैषी तालुकेदारों का आधिपत्य था।
भारत में राष्ट्रवादी भावना तो प्रस्फुटित और बलवती हुई 1925 के बाद जब काकोरी घटना (9 अगस्त 1925) और चौरी चौरा कांड (4 फरवरी 1922) ब्रिटिश साम्राज्यवाद के प्रतिरोध मे हुए थे। यूनाइटेड प्रोविंसेस (आज का उत्तर प्रदेश) फिर भारत की जंगे आजादी में राष्ट्र का सिरमौर बना था। अब तो यह सब आधुनिक इतिहास का भाग है।
आह्लादमयी अनुभूति इससे हुई की बापू के महाप्रस्थान (शहादत) के 75 वर्षों बाद भी ऐसे अनूठे विचार उपजे। लखनऊ विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आलोक राय कल्पना करते हैं कि गांधीजी आज होते तो इस टीवी, मोबाइल, इंटरनेट आदि के युग में क्या सोचते ? गांधीजी की मजेदार आदतों की बावत प्रो. राय को स्मरण हो आया कि डाक से मिले पत्रों के लिफाफों का पुनः उपयोग खत लिखने के लिए बापू कैसे करते थे। आलपिन निकालकर वे रख लेते थे।
प्रो. आलोक राय द्वारा लखनऊ विश्वविद्यालय के फाइन आर्ट्स विभाग (गोमती तट) के परिसर में बापू के आश्रम के प्रतिरूप की रचना ही एक विलक्षण प्रयोग होगा। अचंभा इसलिए भी होता है कि वे मूलतः प्रबंधन के निष्णात (काशी हिंदू विश्वविद्यालय) हैं। लखनऊ विश्वविद्यालय को राष्ट्रीय मूल्यांकन प्रत्यायन परिषद (नैक) द्वारा जांच के बाद ए-डबल-प्लस की ग्रेडिंग इन्ही के कार्यकाल में मिली थी। पहला संस्थान है लखनऊ विश्वविद्यालय जिसने नैक मूल्यांकन में ऐसी ग्रेडिंग पायी।
गमनीय बात यह है कि उत्तर प्रदेश में पचास से अधिक विश्वविद्यालय हैं मगर इस किस्म का गांधी आश्रम केवल लखनऊ में ही बन रहा है। प्रो. आलोक राय के आकलन में उनकी यह “सपनों की कार्ययोजना” भारत सरकार की नवीन शिक्षा नीति के अनुरूप है। इस नीति-2020 के लागू होने के बाद केन्द्रीय मंत्रालय ने उच्च शिक्षा को अपनी भाषा में ही पढ़ने की स्वतंत्रता के साथ ही छात्रों को कला के क्षेत्र में भी प्रोत्साहन दिया है।
साबरमती आश्रम (जिसे हरिजन आश्रम भी कहा जाता है) 1917 से 1930 तक गांधीजी का आवास भी था जो भारत की स्वतंत्रता के आन्दोलन के मुख्य केन्द्रों में विशेष था। मूलरूप से सत्याग्रह आश्रम कहलाने वाले इस आश्रम ने महात्मा गांधी द्वारा सिविल प्रतिरोध आन्दोलन को दर्शाते हुए, एक आदर्श स्थल का आकार लिया था। इसका नाम साबरमती आश्रम रखा गया क्योंकि साबरमती नदी तट पर स्थित है। इसका निर्माण दोहरे लक्ष्य हेतु एक ऐसे संस्थान के रूप में करवाया गया जो सत्य की खोज जारी रखे। साथ ही अहिंसा को समर्पित कार्यकर्ताओं के ऐसे समूह को तैयार करे जो भारत को स्वतंत्रता दिलवा सकें। सभी को एक मंच पर लाकर कार्य हो सके। आश्रम में गांधीजी ने ऐसी पाठशाला बनाई थी जो मानव श्रम, कृषि और साक्षरता को केन्द्रित करके उन्हें आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर कर सके। यह वही जगह थी जहां से 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने आश्रम से 241 मील लम्बी दांडी यात्रा (78 साथियों के साथ) की थी। ब्रिटिश राज ने नमक पर कर थोप दिया था। इस सरकारी निर्णय के विरूद्ध यात्रा इसी आश्रम से शुरू की गई थी। इस सत्याग्रह में ब्रिटिश जेलों को 60,000 स्वतंत्रता सेनानियों से भर दिया गया था।
बातचीत के दौरान प्रो. आलोक राय को मैंने अवगत कराया था कि चार दशक पूरे होने पर दांडी मार्च के कुछ सत्याग्रहियों से साक्षात्कार पर विशेष रपट मैंने लिखी थी जो “टाइम्स ऑफ इंडिया” के अहमदाबाद संस्करण (4 मार्च 1970) में प्रकाशित हुई थी। अतः लखनऊ विश्वविद्यालय में बनने वाली प्रतिकृति में दांडी नमक सत्याग्रह का परिदृश्य विशेष रूप से पेश हो क्योंकि यही साबरमती आश्रम की सर्वाधिक महत्वपूर्ण घटना थी। गांधीजी ने तभी घोषणा भी की थी कि वे दांडी सागर तट से स्वतंत्रता पाकर ही लौटेंगे। फिर बापू ने वार्धा (सेवाग्राम, महाराष्ट्र) में नया आश्रम बनाया था।
प्रो. आलोक राय द्वारा रेखांकित चित्र से प्रतीत होता है कि यह जन आकर्षण का महत्वपूर्ण केंद्र निश्चित ही बनेगा। कारण यही है कि संघर्ष और सत्याग्रह जो बापू ने चलाए वे अधिकतर पश्चिमी और पूर्वी भारत (नोआखली) में रहे। दिल्ली केंद्र था ही जहां यूपी के नेता भाग लेते रहे थे। मगर यादगार साबरमती रहा।
अतः लखनऊ विश्वविद्यालय परिसर में यह साबरमती आश्रम का कलात्मक प्रतिरूप दर्शकों के लिए लुभावना तथा मनमोहक तो रहेगा ही, बापू के बारे में जानने वालों की उत्सुकता की संतृप्ति भी करेगा। आश्रम में गांधीजी जिस कुटिया में रहते थे, जो चश्मा पहनते थे, उनके परिधान, लाठी, चरखा गांधी जी की मूर्ति के साथ ही अन्य चीजों को लखनऊ विश्वविद्यालय के गांधी आश्रम में तैयार किये जाएंगे। इस प्रोजेक्ट पर विश्वविद्यालय का फाइन आर्ट विभाग और मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभाग साथ काम करेगा। प्रो. आलोक कुमार राय ने बताया कि गांधी आश्रम के साथ ही देश के लिए प्राण न्योछावर करने वाले गुमनाम शहीदों की एक गैलरी भी बनेगी। इसके लिए सूची तैयार की जा रही है।
गांधीवादी आयोजनों की दृष्टि से प्रो. आलोक राय की मनोरचना जब रूप ले लेगी तो उन सभी के लिए नए वर्ष की सौगात होगी जिन्हें अभी साबरमती देखने के लिए 1200 किलोमीटर दूर की यात्रा करनी पड़ती है। अब नजारा बदलेगा। गोमती तट पर ही बापू का आश्रम दिखेगा। लखनऊ विश्वविद्यालय के कल्पनाशील कुलपति की यह उत्तर भारत को नायाब भेंट होगी।
( लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं )