हमारे देश को आजाद हुए 70 वर्ष से ज्यादा हो गए हैं | इन वर्षों में देश ने काफी कुछ तरक्की किया है | लेकिन इन वर्षों में देश में काफी कुछ घटनाएं भी घटी हैं ,जो इतिहास के पन्नों में दर्ज है | इन्हीं घटनाओं में से एक है आजाद भारत का पहला घोटाला जो भारतीय इतिहास में जीप घोटाले के नाम से प्रसिद्ध है ||यूं तो हमारे देश में आजादी के बाद नेहरू से मनमोहन सिंह तक कई घोटाले हुए हैं ,लेकिन इस घोटाले की आंच से देश देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू भी नहीं बच पाए थे |
साल 1948, जहां एक तरफ लोग देश की आजादी के जश्न में डूबे हुए थे, वहीं भ्रष्टाचारी देश का पैसा लूट खुद की जमीन तैयार करने में जुटे हुए थे। दरअसल, हुआ यूं कि देश के आजाद होने के बाद भारतीय सेना के पास गाड़ियों की कमी थी, लिहाजा भारत सरकार ने लंदन की एक कंपनी से 2,000 जीपों की खरीद का सौदा किया। भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे, उन्होंने ही इस खरीद को मंजूरी दी थी। जीपों की खरीद के लिए कंपनी से सौदा 80 लाख रुपये में हुआ था, तब के 80 लाख आज के समय में करोड़ों हो जाएंगे। सौदा होने के करीब 9 महीने बाद जीपें भारत पहुंचीं, लेकिन सिर्फ 144 ही। बाकी जीपों का क्या हुआ, पता नहीं। लेकिन, जो जीपें भारत पहुंची थीं, वो भी घटिया किस्म की थीं। इनमें से ज्यादातर जीपें तय मानक पर खरी नहीं उतरीं।
तब, इसका आरोप लगा ब्रिटेन में तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त वी.के. कृष्ण मेनन पर। कुछ इतिहासकारों का मानना था कि भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बाद वी.के. कृष्ण मेनन दूसरे सबसे पावरफुल व्यक्ति थे। उस समय संसद में भी विपक्ष ना के बराबर थी, लेकिन जितनी थी उतने में ही खूब हो-हंगामा किया। लिहाजा मामले की जांच शुरू हुई और कृष्ण मेनन के खिलाफ केस दर्ज हुआ। लगभग 6 सालों तक कोर्ट में ये केस चला और प्रोगरेस लगभग ना के बराबर हुई। बाद में सबूतों के अभाव में कोर्ट ने मामले को खारिज कर दिया और साल 1955 में हमेशा के लिए इस घोटाले को फाइलों में बंद कर दिया गया। बाद में वहीं कृष्ण मेनन 1957 में नेहरू की कैबिनेट में शामिल हो गये और भारत के रक्षा मंत्री का पद संभाला। 17 अप्रैल 1957 से 31 अक्टूबर 1962 तक वो भारत के रक्षा मंत्री रहे। जाहिर है, इस जीप घोटाले ने भारत में घोटालों की नींव तो रख ही दी थी, साथ ही ये भी साबित हो गया था कि अगर आरोपी को सत्ता पक्ष का समर्थन हासिल है तो कोई भी कानून उसका बाल भी बांका नहीं कर सकती है।
अब चूंकि, नेहरू उस समय प्रधानमंत्री थे, लिहाजा उनपर भी इस घोटाले के छींटे पड़े थे, उनकी भी खूब आलोचना हुई थी। जाहिर है, किसी भी सरकार की नाक के नीचे घोटाला होता हो और उसे इस बात का पता न हो, ये पचने वाली बात तो है नहीं। वैसे तो नेहरू को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का सबसे करीबी माना जाता था और गांधीजी हमेशा से ही भ्रष्टाचार के सख्त विरोधी थे और हमेशा सत्य की मार्ग पर चलने को प्रेरित करते थे, लेकिन जिस तरह उनकी मृत्यु के बाद इस घोटाले को अंजाम दिया गया, उससे नेहरू पर भी घोटाले के छींटे पड़ने तय थे। हालांकि ऐसा कुछ हुआ नहीं, क्योंकि कहा जाता है कि जो सत्ता में होता है, वहीं देश का ‘सर्वेसर्वा’ होता है।