राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र ने बीते पांच मार्च को सत्याग्रह मंडप के मंच पर जो दृश्य उपस्थित किया, वह अनोखा था। मंच से संविधान की उद्देशिका और संविधान में नागरिकों के लिए उल्लेखित मौलिक कर्तव्यों का पाठ कराकर लोगों को संविधान की पाठशाला में प्रवेश कराया। यही वह अनोखा दृश्य है, जिससे परिचित होना संविधान की पाठशाला में प्रवेश सरीखा है।
सत्याग्रह मंडप एक अनोखे दृश्य का पिछले दिनों गवाह बना। तारीख थी, 5 मार्च। दिन रविवार था। वैसे तो सत्याग्रह मंडप में अक्सर आयोजन होते रहते हैं। इन आयोजनों में विविधता होती है। भले ही सत्याग्रह मंडप दिल्ली के बीचोंबीच न हो, पर इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। गांधी दर्शन और स्मृति का यह विशाल परिसर अगर किसी एक स्थान विशेष के लिए अपनी जगतव्यापी पहचान बना सका है तो वह सत्याग्रह मंडप है। इसे बढ़ा-चढ़ाकर कहना न तो जरूरी है और न ही बढ़ा-चढ़ाकर कहा जाना चाहिए। लेकिन यह सूरज की रोशनी सरीखा साफ है कि सत्याग्रह मंडप ने एक विशेष आकर्षण अपने आप में अर्जित कर लिया है। इसे अगर बताने लगूं कि कोरोना काल में भी वहां अनेक अत्यंत महत्वपूर्ण आयोजन हुए, तो वह सूची इतनी लंबी होगी कि केवल इसके लिए ही बहुत पन्ने चाहिए। इसलिए उस अनोखे दृश्य पर लौट आएं और यह जानें कि वह क्या था?
अवसर था, माटी का छठा वार्षिक उत्सव। मंच पर ठीक समय से पहुंचे मुख्य अतिथि। वे माटी क्षेत्र से आते है। मुख्य अतिथि थे, राजस्थान के राज्यपाल कलराज मिश्र। उनसे सिर्फ माटी के ही लोग परिचित नहीं हैं, बल्कि यह कहना चाहिए कि उनसे हर कोई परिचित है। उनके नाम से परिचित हैं। उनके काम और धाम से परिचित हैं। उनके सामाजिक जीवन से परिचित हैं। जिस संवैधानिक दायित्व का वे निर्वाह कर रहे हैं और अत्यंत कुशलतापूर्वक अपने पद की प्रतिष्ठा को बढ़ा रहे हैं, उनका क्या कोई औपचारिक परिचय दे सकता है! राज्यपाल उतने ही हैं जितने राज्य हैं। लेकिन राजस्थान के राज्यपाल ने माटी के मंच पर पहुंचते ही जो दृश्ये रचा उसकी कल्पना वहां उपस्थित लोगों में किसी को नहीं थी। हो सकता है कि माटी के संयोजक आसिफ आजमी को रही हो। यह इसलिए बता रहा हूं क्योंकि राज्यपाल की कुर्सी के सामने की छोटी मेज पर दो अलग-अलग पन्ने सुंदर तरीके से प्रिंट किए हुए पहले से रखे थे। राज्यपाल महोदय पहले बैठे। उनका स्वागत और अभिनंदन हुआ। जिसे उन्होंने सहज परंतु प्रसन्नता से स्वीकार किया।
राज्यपाल कलराज मिश्र की मेज पर उन दो पन्नों के बगल में एक हैंड माइक भी रखा हुआ था। इससे अनुमान लगा सकते हैं कि उन्होंने जब माटी के वार्षिक उत्सव में आने की सहमति दी होगी तब उनके सचिवालय ने यह निर्देश भी दिया होगा कि वे सबसे पहले क्या करेंगे और इसके लिए आयोजकों को क्या इंतजाम करना होगा। उसी इंतजाम में वे पन्ने थे और हैंड माइक भी रखा हुआ था। इसे पढ़ते हुए अवश्य आपको यह जानने की उत्सुकता होगी कि वह दृश्य क्या था और क्यों अनोखा था? यह उत्सुकता इसलिए भी होगी क्योंकि कलराज मिश्र का सार्वजनिक जीवन कोई दो-चार साल का नहीं है। अगर ठीक-ठीक बताएं तो वे काशी विद्यापीठ से जब एमए की पढ़ाई पूरी कर रहे थे, उससे पहले से ही उनका सामाजिक जीवन प्रारंभ हो गया था। वह साल न कलराज मिश्र भुला सकते हैं और न ही वे लोग जो उन्हें जानते हैं। 1963 का वह साल है। उस साल का महत्व दो बातों के कारण है। पहला कि कलराज मिश्र उसी साल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक बने। दूसरा कि वही साल है जब जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में भारत पराजित होकर अपने घाव सहला रहा था। इस दूसरे कारण से युवा अपने कैरियर की नहीं, भारत के खोए स्वाभिमान को पहली प्राथमिकता में रखने लगे थे। उनमें से ही एक कलराज मिश्र थे।
उन्होंने जो पथ अपने जीवन यात्रा में चुना, उस पर वे अविचल चलते रहे। थके नहीं। रुके भी नहीं। इसी को याद दिलाती हुई कलराज मिश्र पर एक किताब 10 साल पहले आई थी। उसमें विश्व हिन्दू परिषद के संरक्षक अशोक सिंहल ने लिखा था कि ‘जहां जाति, क्षेत्र, भाषा और मजहब के नाम पर अपनी रोटी सेंकने वाले अपराधी तत्व विधायक, सांसद और मंत्री बन रहे हैं, वहां ऐसे कलुषित वातावरण में कुछ लोग और भी हैं, जिनका जीवन भीषण गरमी में शीतल, मंद और सुगंधित बयार की भांति सुखकारी है। कलराज मिश्र उनमें से ही एक हैं। उन्होंने अपने लंबे सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन में जो आदर्श प्रस्तुत किए हैं, वे सबके लिए अनुकरणीय हैं।’ इस कथन में दो शब्द ध्यान खींचते हैं। पहला है, आदर्श और दूसरा है, अनुकरणीय।’ सत्याग्रह मंडप के मंच पर जो दृश्य दिखा वह इन दोनों शब्दों का संगम था। संगम में भिन्नता समाप्त हो जाती है और अभिन्नता का उदय होता है। संगम नदियों का तो होता ही है, जिससे कोई ऐसा नहीं है जो अपरिचित हो। लेकिन अपने उदाहरण से विचार का आदर्श और वह भी अनुकरणीय जो रख सके वह संगम वास्तव में परंपरागत से परे सचमुच अनोखा माना जाएगा। कोई उसे कहेगा, यह संभव है। कोई उसे अनुभव करेगा, पर शायद कह न सके। अनुभव अधिक महत्वपूर्ण है, जरूरी नहीं है कि उसे अभिव्यक्त ही किया जाए। सत्याग्रह मंडप में उपस्थित सैकड़ों लोगों ने राज्यपाल कलराज मिश्र के एक वाक्य पर क्षणभर भी बिना हिचके अपनी तत्क्षण तैयारी दिखाई। इसे सबने देखा। उन्होंने अपने हाथ में माइक लिया और बोले कि ‘मैं जहां भी जाता हूं, वहां सबसे पहले इस कार्य को करता हूं। मैं भारत के संविधान की उद्देशिका को पढ़ूंगा और आप लोग मेरे साथ उसे दोहराएंगे।’
उन्होंने उद्देशिका का हर शब्द इस तरह पढ़ा कि उनके बाद उसे लोग बोलकर दोहरा सकें। जो पढ़ा वह यह था-
हम, भारत के लोग, भारत को एक संपूर्ण प्रभुत्वसंपन्न समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिए तथा उसके समस्त नागरिकों को:
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक, न्याय
विचार, अभिव्यक्ति, विश्वाोस, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता, प्रतिष्ठा और अवसर की समता प्राप्त कराने के लिए तथा उन सब में व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़संकल्प होकर अपनी इस संविधान सभा में आज तारीख 26 नवंबर, 1949 ई. (मिति मार्गशीर्ष शुक्ल सप्तमी, संवत् दो हजार छह विक्रमी) को एतत् द्वारा इस संविधान को अंगीकृत, अधिनियमित और आत्मार्पित करते हैं।’
इसका सामूहिक पाठ कराने के बाद उन्होंने कहा कि मैं अब संविधान में उल्लिखित मौलिक कर्तव्य पढूंगा। उसे आप लोग ध्यान से सुनें और अपने जीवन में अपनाएं।
संविधान में उल्लेखित मौलिक कर्तव्य की संख्या 11 है। ये मौलिक कर्तव्य नागरिकों को देश की अखंडता और अक्षुणता कायम रखने के साथ ही सद्भाव कायम रखने की संस्कृति को इंगित करते हैं। संविधान के मौलिक कर्तव्यों के अंतर्गत यह अपेक्षा की जाती है कि प्रत्येक नागरिक संविधान का पालन करते हुए अपने दायित्वों का निर्वहन करे। मौलिक कर्तव्य इस प्रकार हैं-
1-प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होगा कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रयगान का आदर करे।
2- स्वतंत्रता के लिए हमारे राष्ट्री य आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोए रखे और उनका पालन करे।
3- भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करे और उसे अक्षुण्ण रखे।
4- देश की रक्षा करे।
5- भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व की भावना का निर्माण करे।
6- हमारी सामाजिक संस्कृति की गौरवशाली परंपरा का महत्व समझें और उसका निर्माण करें।
7- प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा और उसका संवर्धन करे।
8- वैज्ञानिक दृष्टिकोण और ज्ञानार्जन की भावना का विकास करे।
9- सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखे।
10- व्यक्तिगत एवं सामूहिक गतिविधियों के सभी क्षेत्रों में उत्कर्ष की ओर बढ़ने का सतत प्रयास करे।
11- माता-पिता या संरक्षण द्वारा 6 से 14 वर्ष के बच्चों को प्राथमिक शिक्षा प्रदान करना कर्तव्य है।
यही वह अनोखा दृश्य है, जिससे परिचित होना संविधान की पाठशाला में प्रवेश सरीखा है। उस दिन हर कोई अपनी जगह खड़े होकर संविधान का व्रती बना। यह तो शुरुआत थी। अपने समापन भाषण में राज्यपाल कलराज मिश्र ने ‘माटी’ के महोत्सव का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की संस्कृति, लोक कलाओं, खान-पान और रहन-सहन को बचाए-बनाए रखने लिए ऐसे आयोजन होने चाहिए। राज्यपाल ने इस अवसर पर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी डॉ. अरुणवीर सिंह, बिग्रेडियर संजय कुमार मिश्र, क्रिकेटर निखिल चोपड़ा, इंटेल इंडिया की कंट्री हेड निवृति राय, फिल्म कलाकार विनीत सिंह, बहरीन स्थित प्रवासी भारतीय शकील ए. जी. को अपने-अपने क्षेत्रों में सराहनीय कार्य के लिए सम्मानित किया।
‘जहां जाति, क्षेत्र, भाषा और मजहब के नाम पर अपनी रोटी सेंकने वाले अपराधी तत्व विधायक, सांसद और मंत्री बन रहे हैं, वहां ऐसे कलुषित वातावरण में कुछ लोग और भी हैं, जिनका जीवन भीषण गरमी में शीतल, मंद और सुगंधित बयार की भांति सुखकारी है। कलराज मिश्र उनमें से ही एक हैं। उन्होंने अपने लंबे सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन में जो आदर्श प्रस्तुत किए हैं, वे सबके लिए अनुकरणीय हैं।’