खेती किसानी के लिए वैज्ञानिक तरीका जरुरी

प्रज्ञा संस्थानखेती किसानी के मामले में भारत के किसानों को ज्यादा से ज्यादा तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए तभी पर एकड़ उपज को बढ़ाया जा सकता है |हमारे यहां आज भी दुसरे विकसित देशों की अपेक्षा पर हेक्टेयर उपज बहुत कम है |सरकार को किसानों को तकनीकी रूप से प्रशिक्षित करना  चाहिए |

भले ही भारत में किसान तकनीक का ज्यादा इस्तेमाल न करते हों लेकिन  देश को खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर ही नहीं बल्कि ‘फू़ड सरप्लस’ वाला देश बना दिया है|गेहूँऔर चावल के मामले में तो फू़ड सरप्लस की स्थिति है | साल 1950 में खाद्यान्न पैदावार पाँच करोड़ टन थी और आज 50 करोड़ टन है | यह कोई छोटी उपलब्धि नहीं है |इसके बावजूद भारत में फसलों की औसत पैदावार दुनिया के कई देशों की औसत पैदावार से कम है |कई फसलों के मामले में हमारे यहाँ प्रति हेक्टेयर या एकड़ उत्पादन दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में कम है| अमेरिका के बाद भारत में सबसे ज्यादा खेती की ज़मीन है, लेकिन फ़सल उत्पादन अमेरिका से चार गुना कम है|

चीन भारत से कम ज़मीन पर खेती करता है लेकिन इससे अधिक फसल उपजाता है|”चीन के पास हमसे कम ज़मीन है | उसकी ‘ग्रॉस लैंड होल्डिंग साइज़’ भी भारत से छोटी है | हमारे पास 1.08 हेक्टेयर की लैंड होल्डिंग साइज़ है, जबकि उसके पास महज 67 हेक्टेयर की | लेकिन उनका कृषि उत्पादन हमसे तीन गुना ज़्यादा है |’भारत को लेकर अच्छी बात यह है कि यह चाहे तो अपने फसलों की पैदावार दोगुनी कर सकता है| लेकिन ख़राब बात यह है कि अगर एग्रीकल्चर चेन से जुड़े सभी लोग  अपनी भूमिका अदा करते हैं तो भी इस लक्ष्य को हासिल करने में एक या दो पीढ़ियाँ बीत जाएंगीं| भारत में जो खेती होती है उसमें हर चीज एक दूसरे से जुड़ी हुई है| खेती के लिए मानसून और सिंचाई का पानी दोनों चाहिए|

इसके लिए कुशल जल प्रबंधन की ज़रूरत पड़ती है ताकि सूखे और बाढ़ का सामना किया जा सके और बेहतर तरीके से सिंचाई हो|मिट्टी बढ़िया होनी चाहिए| इसे पोषक तत्वों की ज़रूरत होती है| तभी अच्छी जुताई होती है | अच्छी मिट्टी के लिए माकूल मौसम चाहिए|मौसम अच्छा हो तभी मिट्टी की ऊपरी परत पर सूक्ष्म जीव पैदा होते हैं | अगर मिट्टी की ऊपरी परत बढ़िया होगी तो मिट्टी का क्षरण कम होगा और फसलों में पोषण भी भरपूर होगा |कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि तमाम वजहों से यह कृषि चेन कई जगहों से टूट जाती है| इन्हें जल्द से जल्द आपस में जोड़ने की ज़रूरत है|

कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि भारत में खेती की 40 फ़ीसदी ज़मीन की मिट्टी को नुकसान पहुँच चुका है और इसकी भरपाई में लंबा समय लग जाएगा |मिट्टी के क्षरण से इसकी उपज क्षमता कम हो जाती है| अवैज्ञानिक तरीके से खेती, एक ही मिट्टी का बार-बार इस्तेमाल, पानी की बर्बादी, जंगलों की कटाई और रासायनिक खादों के बहुत अधिक इस्तेमाल से मिट्टी की ऊपरी परत को नुकसान पहुँचता है|मिट्टी की भी एक जिंदगी होती है और हमें इसे सँवारना पड़ता है |मिट्टी एक एक जीवित इकाई है | उपजाऊ मिट्टी में ‘जीवित पदार्थ ‘ होते हैं , जैसे-कीटाणु और जीवित ऑर्गेनिज्म, जैसे हम हैं, वैसी ही मिट्टी भी है | मिट्टी को भी भोजन चाहिए.”

मिट्टी को पशुओं के मल-मूत्र, खर-पतवार या खेत में छोड़ दी गई फसलों के सड़ने से भोजन मिलता है | हालाँकि खर-पतवार, खेत में छोड़ दी गई फसल या पराली जलाने से अच्छा है (पराली से दिल्ली में वायु प्रदूषण की समस्या काफ़ी बढ़ जाती है) कि खेत को जोतते समय इन चीज़ों को मिट्टी में मिला दिया जाए |मिट्टी, पौधों, पशुओं का स्वास्थ्य और पर्यावरण एक हैं | इन्हें अलग नहीं किया जा सकता| मिट्टी पर्यावरण के लिहाज से बेहद ज़रूरी काम करती है | जैसे बारिश के पानी को बरकरार रखने जैसा काम| यह भूजल को प्रदूषित होने से बचाने के लिए फ़िल्टर की तरह काम करती है|

मिट्टी में जैव पदार्थों का स्तर तीन से चार फ़ीसदी से होना चाहिए| लेकिन उत्तर भारत के राज्यों की मिट्टी में जैव पदार्थ 2 फ़ीसदी ही है|बढ़िया यानी पोषक मिट्टी में फसल उगाना फ़ायदेमंद साबित होता है| क्योंकि कम ज़मीन में ही ज़्यादा फसल होती है. पानी भी कम लगता है| सिंचाई कम करने की ज़रूरत होती है इसलिए डीजल या बिजली की खपत भी कम होती है| इसके साथ ही रासायनिक खाद भी थोड़ा ही लगता है|

“भारत में मिट्टी क्षरण एक गंभीर समस्या है | यहाँ की मिट्टी में जैव तत्व काफ़ी कम हैं. इसलिए जब बहुत बारिश होती है तो बाढ़ आ जाती है और जब बारिश नहीं होती है तो सूखा पड़ जाता है|संयुक्त राष्ट्र के एक अध्ययन के मुताबिक़ उपजाऊ मिट्टी के तौर पर ऊपरी 2.5 सेंटीमेंट की परत तैयार होने में 500 साल लग जाते हैं लेकिन यह एक ही दशक में नष्ट हो सकता है |भारत की मिट्टी को इसके स्वाभाविक उपजाऊ स्तर तक पहुँचने में एक या दो पीढ़ियाँ लग जाएंगीं. भारत में प्रति हेक्टेयर कृषि पैदावार 2.1 टन है | अगर हम अपनी मिट्टी की सेहत बरकरार रख पाएं तो यह दोगुनी हो सकती है|

भारत में धान और गेहूँ के बीच कई किस्मों की दालें उगाते हैं | ये मिट्टी को काफ़ी पोषक तत्व देती हैं, इससे यूरिया कम लगता है |पहले किसान फसल लेने के बाद कुछ ज़मीन परती छोड़ देते थे | लेकिन आज दो या इससे ज़्यादा फसल लेनी पड़ती है क्योंकि खेती की लागत काफ़ी बढ़ गई हैभारत में आधी खेती बारिश पर निर्भर है | मानसून अच्छा रहा तो पैदावार ज़्यादा होती है और ख़राब रहा तो यह घट जाती है| यूएन की एक हालिया स्टडी में कहा गया है कि देश में पिछले 60 साल में दो करोड़ 20 लाख कुएं खोदे गए |

देश के कई हिस्सों में पानी के लिए बहुत गहरी खुदाई करनी पड़ती है | पश्चिमी भारत में 30 फ़ीसदी कुएं बगैर इस्तेमाल के छोड़ दिए गए हैं क्योंकि ये पूरी तरह सूख चुके हैं | कई राज्यों में तो भूजल स्तर ख़तरनाक स्तर तक नीचे जा चुका है| राजस्थान और गुजरात में रेगिस्तान का इलाका बढ़ता जा रहा है|

 

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