कोहिनूर हीरा फिर सुर्खियों में है। खासकर गत सप्ताह से। यूं यह सदियों से विवाद में रहा। द्वारकाधीश कृष्ण के स्यामंतकमणि (जामवंत से प्राप्त हुआ) के रूप से लेकर मुगलिया हुमायूं और लंदन के सम्राटों तक विभिन्न स्वत्वाधिकारों में रहा। बीते दिनों ब्रिटेन की नई महारानी केमिल्ला के मीडिया बयान (15 फरवरी 2023) से बात फिर निकली। बादशाह चार्ल्स तृतीय की यह रानी बोलीं : “अपने राजमुकुट में कोहिनूर हीरा राज्याभिषेक पर मैं नहीं लगाऊंगी। भारत से रिश्ते बिगाड़ने नहीं हैं।” बहुत सुनी-सुनाई घटना भारत में खूब चली थी कि नरेंद्र मोदी अपने लंदन दौरे पर महारानी एलिजाबेथ से भेंट करने गए। वहां रानी ने पूछा : “क्या अभी भी भारत में ठगों और सती का बोलबाला है ?” मोदी का उत्तर सटीक था : “ऐसा तो नहीं। मगर इतना जरूर जाना कि लूटा हुआ माल माथे पर लगाकर शायद ही कोई चमकाता है।” तब कोहिनूर ही महारानी के मुकुट पर दमक रहा था। कुछ वक्त पूर्व मोदी आस्ट्रेलिया गए थे। वहां की सरकार ने भारत की 29 प्राचीन कलाकृतियां उन्हें लौटा दी। ये सब भारत से तस्करों द्वारा ले जाया गया था। कोहिनूर के बारे में भी ऐसी ही जोरदार मांग उठती रही। अनुमान यह है कि ब्रिटिश सत्ता से निजी मधुर संबंध होने के बावजूद जवाहरलाल नेहरू ने माउंटबैटन अथवा प्रधानमंत्री क्लिमेंट एटली से कभी भी कोहिनूर के वापसी की मांग नहीं उठाई थी। इस परिवेश में कोई दस्तावेजी प्रमाण भारत के सरकारी संग्रहालय में नहीं मिलता है।
समय बीता। अब इस प्रसिद्ध हीरे के नए दावेदार पैदा हो गए। जुल्फिकार अली भुट्टो ने ब्रिटिश प्रधानमंत्री जेम्स कैलाद्यम से 1976 के आसपास कोहिनूर को पाकिस्तान को लौटाने की मांग की थी। उनका तर्क था कि निजामशाही हैदराबाद के गोलकोंडा खानों से यह मिला था। जनाब भुट्टो भूल गए कि यह हैदराबाद विभाजित भारत का प्रदेश हैं। यह उनके सिंध वाला हैदराबाद नहीं। यहां पेश हैं कुछ पुख्ता तथ्य भी। कोहिनूर की बाबत कुछ प्रमाणित इतिहास यूं है : यह हीरा आंध्र प्रदेश की कोल्लर खान, जो वर्तमान में गुंटूर जिला में है, से निकला था। दिल्ली सल्तनत के अलाउद्दीन खिलजी ने अपने भाई उलुघ खान को 1323 में काकतीय वंश के राजा प्रतापरुद्र को हराने भेजा था। हारने के बाद उलूघ खान फिर एक बड़ी सेना के साथ लौटा। तब राजा वारंगल युद्ध में हार गया। वारंगल में लूट-पाट, तोड़-फोड़ और हत्या-काण्ड महीनों चली। कोहिनूर हीरा भी उस लूट का भाग था। यहीं से यह हीरा दिल्ली सल्तनत के उत्तराधिकारियों के हाथों से मुगल सम्राट बाबर के हाथ 1526 में लगा। उसने अपने बाबरनामा में लिखा है कि यह हीरा 1294 में मालवा के एक (अनामी) राजा का था। बाबर ने इसका मूल्य आंका कि पूरे संसार को दो दिनों तक पेट भर सके, इतना महंगा। बाबर एवं हुमायुं दोनों ने ही अपनी आत्मकथाओं में इस हीरे के उद्गम के बारे में लिखा है।
हुमायुं के पुत्र अकबर ने यह रत्न कभी अपने पास नहीं रखा, जो कि बाद में सीधे शाहजहां के खजाने में ही पहुंचा। बादशाह ने कोहिनूर को अपने प्रसिद्ध मयूर-सिंहासन (तख्ते-ताउस) में जड़वाया। उसके पुत्र औरंगज़ेब ने अपने पिता को कैद करके आगरा के किले में रखा था। किस्सा है कि उसने कोहिनूर को खिड़की के पास इस तरह रखा गया कि उसके अंदर शाहजहां को उसमें ताजमहल का प्रतिबिम्ब दिखायी दे। कोहिनूर मुगलों के पास 1739 में हुए ईरानी शासक नादिर शाह के आक्रमण तक ही रहा। उसने आगरा व दिल्ली में भयंकर लूटपाट की। वह मयूर सिंहासन सहित कोहिनूर व अगाध सम्पत्ति फारस लूट कर ले गया। इस हीरे को प्राप्त करने पर ही, नादिर शाह के मुख से अचानक निकल पड़ा : “कोह-इ-नूर” जिससे इसको अपना वर्तमान नाम मिला। सन 1746 में नादिर शाह की हत्या के बाद यह अफगानिस्तान के अहमद शाह अब्दाली के हाथों में पहुंचा। उसके वंशज शूजा शाह, अफगानिस्तान का तत्कालीन पदच्युत शासक, 1830 में किसी तरह कोहिनूर के साथ बच निकला और पंजाब पहुंचा। वहां के महाराजा रंजीत सिंह को यह हीरा उसने भेंट किया।
कोहिनूर हीरे पर संयुक्त राष्ट्र संघ के नियमानुसार स्वामित्व भी सभ्य रिवाज के अनुसार लागू होने चाहिए। ऐतिहासिक प्रमाण भारत गणराज्य के पक्ष में हैं। यह हीरा आखिरी दौर में पंजाब के सिख महाराजा रणजीत सिंह के स्वामित्व में था। महाराज ने अपनी वसीयत में लिखा था कि इस पुरी के जगन्नाथ मंदिर को भेज दिया गया। मगर तभी लाहौर पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का कब्जा हो गया। सिख युवराज तेरह-वर्षीय दिलीप सिंह से अंग्रेजों ने इसे छीनकर महारानी विक्टोरिया को दे दिया। लाहौर के किले पर 29 मार्च,1849 को ब्रिटिश ध्वज फहराया। इस तरह पंजाब ब्रिटिश भारत का भाग घोषित हुआ। लाहौर संधि का एक महत्वपूर्ण अंग था: “कोह-इ-नूर नामक रत्न, जो शाह-शूजा-उल-मुल्क से महाराजा रण्जीत सिंह द्वारा लिया गया था, लाहौर के महाराजा द्वारा इंग्लैण्ड की महारानी को सौंपा जायेगा।” फिलहाल इसे भारत वापस लाने को कोशिशें जारी की गयी हैं। आजादी के फौरन बाद भारत ने कई बार कोहिनूर पर अपना मालिकाना हक जताया है। सिख महाराजा की बेटी कैथरीन की मृत्यु हो गयी थी। वह ही कोहिनूर के भारतीय दावे के संबध में ठोस दलीलें दे सकती थी।
भारत को ब्रिटेन द्वारा कोहिनूर हीरा वापस करना लाजिमी है। इस बात का विवरण विलियम डैलरिंपल की Kohinoor : The Story of the World’s Most Infamous Diamond (प्रकाशक जुगरनौट) में मिलता है। ब्रिटेन के भारतवंशी प्रधानमंत्री ऋषि सुनक को अपने पैतृक राष्ट्र को इसे सौंपना चाहिए। सभी जानते हैं कि भारत पर ढाई सदी का ब्रिटिश साम्राज्य छल, कपट, धोखा, फरेब, ठगी, धूर्तता, प्रवंचना, झांसा आदि से भरपूर रहा। अब इन श्वेत साम्राज्य वादियों को प्रायश्चित करना है। समय आ गया है।