हर कुछ महीनों में देश एक और बलात्कार की खबर के साथ जागता है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में हर चार घंटे में एक महिला का बलात्कार होता है यह इस बात का एक स्पष्ट संकेत है कि कितनी महिलाएँ इस के साथ संघर्ष कर रही हैं, कि बलात्कार की शिकार महिलाएँ ऐसी स्थिति की सामना कर रही हैं जहाँ उन्हें या तो सामाजिक दबाव के कारण या शर्म के साथ अपने ज़िंदगी को जीना पर रहा है |इस बिंदु पर, हम सभी मातृदेवो भव: जैसे नारे लगाते-लगाते थक गए हैं। किसी भी महिला को भगवान नहीं माना जाता है, उसके साथ एक जानवर से भी बदतर व्यवहार किया जाता है। हम एक ऐसे समाज में रह रहे हैं जहाँ महिलाओं को घर या बाहर, एक आदमी की ज़रूरतों को पूरा करने वाली वस्तु के रूप में देखा जाता है। उसे व्यक्तियों के रूप में नहीं देखा जाता है। यह बात सच है कि बलात्कार उन पहले युद्ध अपराधों में से एक है जो तब किए जाते हैं जब किसी राजनीतिक क्षेत्र पर कब्ज़ा किया जाता है और इसका इस्तेमाल आतंक फैलाने के साधन के रूप में कियाजाता है।
बलात्कार के लिए भारतीय न्यायिक प्रतिक्रिया एक लंबी प्रक्रिया रही है, जो 1978 में तुकाराम बनाम महाराष्ट्रराज्य के मामले से लेकर मुकेश बनाम जीएनसीटीडी राज्य या दिसंबर 2012 के सामूहिक बलात्कार मामले तक है। महिलाओं को यह साबित करने के लिए लड़ना पड़ा है कि उनके साथ बलात्कार हुआ था, कि यह कार्रवाई गैर-सहमति से की गई थी और निर्दोष-जब तक दोषी साबित न हो जाए सिद्धांत के नाम पर बनाई गई कानूनों के खिलाफ़।
बलात्कार पीड़ितों की काउंसलिंग और चिकित्सा उपचार के बारे में सुप्रीम कोर्ट द्वारा समय-समय पर दिए गए विभिन्न दिशा-निर्देशों के बावजूद, कठोर वास्तविकता यह है कि ये आसानी से उपलब्ध नहीं हैं। बलात्कार की रिपोर्ट करने वाली महिलाएँ सांख्यिकीय रूप से हिंसा की अधिक शिकार होती हैं और पुलिस मामले को संवेदनशीलता के साथ नहीं संभालती। इससे जो माहौल बनता है वह दरिंदे के लिए अनुकूल होता है, जिससे उसे महिलाओं को केवल अधीनता या आनंद के नज़रिए से देखने का दुस्साहस मिलता है।
देश में बलात्कार की खबर हमेशा आती रहती है। विरोध प्रदर्शन होते हैं और फिर जीवन हमेशा की तरह चलता रहता है।मुकदमे शुरू होते हैं, बलात्कारी कानूनी खामियों का फायदा उठाते हैं, जैसे मेडिकल रिपोर्ट के नाम पर या नाम में मामूली अंतर के नाम पर बलात्कारी बच निकलने की कोशिश करते हैं। दिसंबर 2012 के सामूहिक बलात्कार में, एक फास्ट-ट्रैक कोर्ट कीस्थापना की गई थी और मामले को आठ महीने में निपटा दिया गया था। हालांकि, उन्हें फांसी पर लटकाने में सात साल लग गए। भारत सरकार ने अब पहले के कानूनों को निरस्त कर दिया है और भारतीय दंड संहिताकी जगह भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस), 2023, भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 2023 और भारतीय नागरिकसुरक्षा संहिता, 2023 को लागू किया है, जिससे सख्त कानून बन गए हैं और कार्यान्वयन में बहुत जरूरी सरलीकरण हुआ है। हालांकि, बलात्कार कानूनों में अभी भी कुछ मुख्य मुद्दे हैं जिन्हें कड़ा करने की जरूरत है।सख्त कानून एक मानसिकता बनाते हैं जहां अपराधी परिणामों से डरता है। आज के भारत में यह रोक थाम बेहद जरूरी है। दुनिया भर में, हम देखते हैं कि जहां बलात्कार की सजा तेज और कठोर है, वहां बलात्कार कीघटनाएं बहुत कम हैं।
निवारक कानूनों की तत्काल आवश्यकता है। बीएनएस, 2023 में पहले से ही बलात्कार और संबंधित अपराधों की सज़ा के लिए कड़े प्रावधान शामिल हैं। बीएनएस की धाराएँ 64, 66, 70(1), 71, 72(1), 73, 124(1) और 124(2) बलात्कार, बलात्कार और हत्या, सामूहिक बलात्कार, बार-बार अपराध और पीड़ित की पहचान का खुलासा सहित यौन हिंसा के विभिन्न पहलुओं को संबोधित करते हुए एक व्यापक कानूनी ढाँचा प्रदान करती हैं। ये धाराएँ इन अपराधों की गंभीरता और मजबूत निवारकों की आवश्यकता पर ज़ोर देती हैं। त्वरित रिपोर्टिंग की सुविधा के लिए इलेक्ट्रॉनिक प्रथम सूचना रिपोर्ट (ई-एफआईआर) पेश की गई है और अगर पीड़ित नाबालिग है तो यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम, 2012 (POCSO अधिनियम) की सभी प्रासंगिक धाराओं को लागू करना अनिवार्य किया गया है। बीएनएस ने कठोर दंड की रूपरेखा तैयार की है: धारा 64(1) बलात्कार के लिए 10 वर्ष से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा निर्धारित करती है, जबकि धारा 64(2)
गंभीर बलात्कार के मामलों में व्यक्ति के शेष प्राकृतिक जीवन के लिए इसे आजीवन कारावास तक बढ़ाती है। बीएनएस की धारा 66 कुछ अपराधों के लिए न्यूनतम 20 वर्ष के कठोर कारावास का प्रावधान करती है।बीएनएसएस द्वारा कानून को सख्त बनाने के बावजूद, आर जी कर बलात्कार का मामला अभी भी हुआ है। इससे पता चलता है कि मौजूदा कानून पर्याप्त निवारक के रूप में काम नहीं करते हैं, इसलिए सख्त कानून आवश्यक हैं।
पश्चिम बंगाल सरकार ने अपराजिता महिला और बाल विधेयक (पश्चिम बंगाल आपराधिक कानून और संशोधन) विधेयक 2024 पारित किया है, जो एक ऐसा वातावरण बनाने की दिशा में एक सराहनीय कदम है। विधेयक में बलात्कार के दोषी लोगों के लिए मृत्युदंड का प्रस्ताव है, यदि उनके कार्यों के परिणामस्वरूप पीड़िता की मृत्यु हो जाती है या वह कौमा अवस्था में चली जाती है, साथ ही क्रमशः 21 दिनों और 30 दिनों के भीतर जांच और परीक्षण पूरा करने के लिए एक फास्ट-ट्रैक कोर्ट का भी व्यवस्था किया गया है। यह कानून तो बन गया है या बन जायेगा लेकिन इसको लागू कराने वाली संस्था इसको लागू किस तरह से कराती है यह तो आने वाला समय बताएगा ।