स्मरण होगा कि मई 1992 में संतों ने उज्जैन की बैठक में कारसेवा की तारीख पक्की कर दी तो राजनीतिक नेतृत्व सख्ते में आ गया था। सवयं प्रधानमंत्री नरसिंह राव ने संतों के प्रतिनिधिमंडल से भेंट करने की इच्छा जाहिर की थी। जब वह भेंट हुई तो उसमें स्वामी परमानंद गिरी भी शामिल थे। संतों ने प्रधानमंत्री से स्पष्ट बात की थी। उस बातचीत में नरसिंह राव ने कहा था- ‘यह मुद्दा राजनीतिक हो गया है। राजनीति को इससे दूर रखा जाना चाहिए।
धर्म से जुड़े मामले को धर्म के आधार पर ही निपटाना चाहिए।’ इसके जवाब में स्वामी परमानंद गिरी ने कहा था- ‘इसमें कोई राजनीति नहीं है। यह राजनैतिक इच्छाशक्ति का सवाल है।’ जब भी जरूरत पड़ी स्वामी परमानंद गिरी ने अयोध्या आंदोलन को वैचारिक खुराक से समृद्ध करते रहे।
दिसंबर 2018 को विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने राम मंदिर निर्माण के लिए दिल्ली के रामलीला मैदान में धर्मसभा की थी। उस सभा को संबोधित करते हुए स्वामी परमानंद ने मोदी सरकार को सख्त चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि ‘अगर पीएम नरेन्द्र मोदी राम मंदिर निर्माण के अपने वादे को पूरा नहीं करते हैं तो हम उन्हें दोबारा सत्ता में नहीं आने देंगे।
उन्होंने कहा कि हम आपकी न तो कठपुतली हैं। न ही आपसे डरते हैं।’ इससे पहले स्वामी परमानंद ने कई बार मुस्लिम समुदाय से अनुरोध किया था कि वे सहमति के आधार पर विवादित जमीन हिन्दुओं को सौंप दें। उन्होंने विहिप के प्रस्तावों लगातार समर्थन किया और धर्म सम्मेलनों में राम मंदिर की बात को मुखरता से रखते रहे।