ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध तमार जनजातीय विद्रोह सन् 1789 से 1832 के बीच सात बार भड़का। अंग्रेजों की शह पर जमींदार, साहूकार, ठेकेदार, मिशनरी और अंग्रेज अधिकारियों ने जनजाती इलाकों में जमकर अतिक्रमण किया। इसके विरोध में मिदनापुर कोलपुर, ढाढा, छठशिला, जाल्दा और सिली इलाकों में तमार विद्रोह भड़का। इस विद्रोह का नेतृत्व भोलानाथ सहाय ने किया।
सन् 1832 में यह विद्रोह पूरे क्षेत्र में उग्र रूप ले चुका था। गंगा नारायण सिंह के नेतृत्व में ओरांव, मुंडा, हो या कोल जनजातीय लोगों ने अपनी जातीय संस्कृति और विशिष्ट परंपराओं की रक्षा की खातिर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। वे अपनी जाति के अलग घुसपैठियों को ‘डिकू’ या ‘बाहरी लोग’ कहते थे। इलाके के ग्रामीण क्षेत्रों में जनजातीय लड़कों ने ‘बाहरी’ लोगों के कत्ल किए। उनके घरों में आगजनी और लूट की।
मामले की नजाकत को भांपते हुए सरकार ने एक बड़ा अभियान चलाकर वर्ष 1932-33 में इस आंदोलन को कुचलकर रख दिया और उनके इलाकों को ब्रिटिश हुकूमत में मिला लिया।