डोनाल्ड लेक नामक एक अमेरिकन ने पांच खंडों में किताब लिखी जिसका नाम है ‘एशिया इन द मैकिंग आफ यूरोप’ इस लेखक ने पहली बार है कि 15वीं शताब्दी या उसके पहले से एशिया का यूरोप के निर्माण में कितना योगदान था। उसमें भारत के सामान्य नागरिक के चरित्र की जो प्रशंसा है, वह आश्चर्य चकित करती है, लेकिन भारत की छवि को बिगाड़ने का प्रयास किया गया। जबकि जबसे भारते में अंग्रेजों को राज्य शुरू हुआ तो वह स्वयं चमत्कृत थे। अंग्रेजों ने इसे कई बार कहा है कि यह इतिहास का एक चमत्कार है।
उसी के लिए अंग्रेजों ने अपने साम्राज्य को स्थाई बनाने के लिए एक विचारधारा विकसित की, वह यह कि अगर भारत को ईसाई बनाया जा सके तो फिर हमारा साम्राज्य चिर स्थाई हो सकता है। इसे चार्ल्स ग्रांट ने रखा। वह 1768 में भारत आया था। 1792 में भारत से गया। खूब धन बटोर कर गया। उस समय जो क्रश्चियन मिशनरी थे उनका पूरा फोकस हिन्दू समाज था।
ब्रिटेन में एक समय पंफलेट वार चला। वह 1808 से 1812 का दौर था। इसमें एक तरफ मिशनरी थे, दूसरी तरफ कारोबारी थे। मिशनरी चार्ल्स ग्रांट से प्रेरित थे। दूसरी तरफ वारेन हेस्टिंग्स को मानने वाले थे। ब्रिटिश पार्लियामेंट ने चार्ल्स ग्रांट के दृष्टिकोण को स्वीकार कर लिया। उसी समय ब्रिटेन में एक अभियान चला कि भारत को ईसाई धर्म में दीक्षित करना चाहिए। उसके लिए पहले हिन्दुओं के चरित्र को काले रंग में चित्रित करना चाहिए। उसी दौर में वहां एक तीसरी धारा भी पैदा हुई। वह धारा उपयोगितावाद की थी। तब औद्योगिक क्रांति की शुरूआत हो चुकी थी। उस धारा का प्रवक्ता जेम्स मिल था। उसे चार्ल्स ग्रांट ने भारत का इतिहास लिखने के काम में लगाया। वह कभी भारत नहीं आया। भारत आए बिना ही उसने भारत का इतिहास लिखा। अंग्रेजों ने उसे पाठ्य पुस्तक बना लिया।
इसी क्रम में दूसरा सबसे महत्वपूर्ण नाम मैकाले का है। उसने 1835 में लिखा कि हम भारत के अंदर अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से यूपोपीय ज्ञान को पहुंचाकर एक ऐसा छोटा से वर्ग खड़ा करेंगे, जो रंग और रक्त से भारतीय होगा, लेकिन आदर्शों और रूचियों में अंग्रेज होगा। इस वर्ग को शिक्षा के माध्यम से खड़ा करना है। उससे भी ज्यादा दूरदर्शी विश्लेषण चार्ल्स ट्रेविलियन का है। वह मैकाले का बहनोई था।
उसने 1838 में पुस्तक लिखी भारतीय की शिक्षा पर नोट्स। उसने यह प्रश्न उठाया कि भारत के साथ हम अपने संबंध को स्थाई कैसे बना सकते हैं। उसने लिखा कि दो रास्ते हैं – या तो हम भारत से धक्का मारकर निकाल दिए जाएं या फिर हम अपनी योजना से भारत छोड़कर बाहर निकलें, और अपने पीछे एक कृतज्ञ भारत छोड़कर जाएं। उसने यह लिखा कि मै देख रहा हूं कि बंगाल में अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त जो एक छोटा सा वर्ग खड़ा हुआ है वह पूरी तरह हमारे आदर्शों को अपना चुका है। वह अपने हित में हमारे राज्य को आवश्यक समझता है। इस छोटे वर्ग को धीरे-धीरे आगे बढ़ाना है। उसे हम सत्ता सौंपकर बाहर जाएं। इसमें काफी समय लगेगा। यह विचार उसने 1857 से बीस साल पहले उस पुस्तक के अंदर प्रस्तुत की। इंडियन सिविल सर्विसेस की रूपरेखा उसी चार्ल्स ट्रेविलियन ने तैयार की।
विलियम वेंटिक 1828 में भारत आया और 1835 तक रहा। उसने भारत के अंदर ब्रिटिश संस्थाओं को आरोपित करना शुरू किया। 1832 में ही भारतीय भाषाओं को अपदस्त कर अंग्रेजी को बढ़ाने का प्लान तैयार किया। उसे दस साल लग गए। 1842 को कोर्ट कचेहरी की भाषा बनाया गया।