तीसरे विश्वयुद्ध की आहट !

प्रज्ञा संस्थानमंगलवार को इसराइली सेनाओं ने, लेबनान में “सीमित” ज़मीनी आक्रमण शुरू किया, जिसके बाद ईरान की तरफ़ से भी लगभग 200 बैलिस्टिक मिसाइल इसराइल में दागे जाने की ख़बरें आई हैं.क़रीब साढ़े तीन लाख लोगों के अपने घरों से विस्थापित होने की पुष्टि हुई है, हालांकि लेबनान सरकार के अनुमान के अनुसार यह संख्या 10 लाख तक हो सकती है. सवा लाख से अधिक लोगों ने सीमा पार करके सीरिया में प्रवेश किया है, जिनमें सीरियाई व लेबनानी नागरिक हैं.

ईरान का परमाणु हथियार हासिल करने का सपना काफी पुराना है। ऐसे में ईरान इस तरह के हमलों के बाद पीछे नहीं हट सकेगा। इजरायल और ईरान के बीच सैन्य टकराव बढ़ने पर पश्चिम भी इसमें शामिल होगाईरान के सहयोगी रूस, उत्तर कोरिया और चीन भी हालिया घटनाक्रम पर नजर रख हुए हैं। वहीं यूक्रेन में भी संघर्ष है, जहां रूस के सामने लड़ते यूक्रेन को पश्चिम का समर्थन है। ये सब चीजें तीसरे विश्व युद्ध की आशंका को बढ़ाती हैं। कुछ एक्सपर्ट का कहना है कि विश्वयुद्ध में दुनिया पहले ही उलझी है, बस इसका रूप अलग है। इसे ‘हाइब्रिड वॉर’ कहते हैं जो पर्दे के पीछे भी लड़ा जाता है। इसमें गुप्त सैन्य अभियान, मिशनों को अस्थिर करना, दुष्प्रचार, चुनाव में हस्तक्षेप और हैकिंग आदि शामिल हैं।

इजरायल अपने पड़ोसियों पर हमले के पीछे तर्क दे रहा है कि वह खुद को सुरक्षित करने के लिए ऐसा कर रहा है। हमास और हिजबुल्लाह से इजरायल लंबे समय से खतरा महसूस करता रहा है और इनको खत्म करना चाहता है। हालांकि ये हमले लेबनान  और फिलिस्तीन में गंभीर आर्थिक और मानवीय संकट पैदा कर रहे हैं। इसका पूरे क्षेत्र ही नहीं विश्व स्तर पर असर दिख सकता है।

इसराइल का कहना है कि वह पड़ोसी मुल्क़ लेबनान से हिज़्बुल्लाह के ख़तरे को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध है. पिछले 11 महीनों से दोनों ओर से रोज़ाना होते हमलों ने इस तनाव को और भी बढ़ा दिया है. इसराइल-ईरान संघर्ष के बीच भारत इस मुद्दे पर शांतिपूर्ण समझौते के पक्ष में रहा है.हालांकि भारत साल 1988 में फ़लस्तीनी राष्ट्र को मान्यता देने वाले पहले देशों में से एक था. लेकिन हाल के वर्षों में मध्य-पूर्व के हालात पर भारत किसी एक पक्ष की तरफ स्पष्ट तौर पर झुका नज़र नहीं आता है.

पिछले महीने संयुक्त राष्ट्र महासभा में इसराइल के ख़िलाफ़ लाए गए एक प्रस्ताव में एक साल के अंदर ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में इसराइली कब्ज़े को ख़त्म करने की बात कही गई थी.ये प्रस्ताव इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ़ जस्टिस यानी आईसीजे की एडवाइज़री के बाद लाया गया था. 193 सदस्यों की संयुक्त राष्ट्र महासभा में 124 सदस्य देशों ने इस प्रस्ताव के पक्ष में वोट किया. 14 देशों ने इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोटिंग की और भारत समेत 43 देश इस वोटिंग से दूर रहे. ब्रिक्स गुट में ब्राज़ील, रूस, भारत, चीन और साउथ अफ़्रीका शामिल हैं. ब्रिक्स गुट में भारत एकमात्र देश है, जो वोटिंग से बाहर रहा था.

संयुक्त राष्ट्र में इस प्रस्ताव के ख़िलाफ़ वोटिंग करने वालों में अमेरिका, फिजी, हंगरी, अर्जेंटीना जैसे 14 देश शामिल रहे. इस प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग करने वालों में पाकिस्तान, चीन, बांग्लादेश, श्रीलंका, मालदीव, मलेशिया और रूस जैसे 124 देश शामिल रहे. संयुक्त राष्ट्र महासभा में हुई वोटिंग को संयुक्त राष्ट्र में फ़लस्तीनी राजदूत रियाद मंसूर ने ”आज़ादी और इंसाफ़ की लड़ाई” में अहम मोड़ बताया था.

भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान की बात करें तो हसन नसरल्लाह की मौत के बाद पाकिस्तान में लोगों ने इसराइल के ख़िलाफ़ उग्र प्रदर्शन किए थे. 7 अक्तूबर 2023 को हमास ने इसराइल पर बड़े पैमाने पर एक सुनियोजित हमला किया था.हमले में क़रीब 1200 इसराइली मारे गए थे. इसके बाद इसराइल ने ग़ज़ा में सैन्य कार्रवाई शुरू की थी. इसराइली कार्रवाई में अब तक ग़ज़ा और वेस्ट बैंक में हज़ारों लोग मारे जा चुके हैं. इसराइली हमलों के कारण लेबनान में भी मरने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है.

 

 

 

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