इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा अपने परिसर से एक मस्जिद को हटाने के आदेश के खिलाफ अपील सुनते हुए गनीमत है सुप्रीम कोर्ट ने कल (14 मार्च 2023) रोक (स्टे) नहीं दिया। हालांकि पेंचीदिगी फंसा दी। न्यायमूर्ति द्वय मुकेशकुमार रसिकभाई शाह और चूडलायी थेवर रवि कुमार ने सुझाया कि हाईकोर्ट यदि चाहे तो नई मस्जिद हेतु वैकल्पिक भूमि आवंटित कर सकता है। यह राय एक मिसाल, एक नजीर बन सकती है। तब आदत बन जाएगी कि पहले सार्वजनिक भूमि की सीमा लांघ कर कब्जा कर लो और खाली करने के ऐवज में नई भूमि हथिया लो। मस्त्य न्याय इसी को कहेंगे। भला हो हाईकोर्ट का जिसने कह दिया कि वैकल्पिक भूमि देना मुमकिन नहीं है। अर्थात हाईकोर्ट का काम इंसाफ करना है। वह भूमि विकास बैंक नहीं है।
कुछ ऐसा ही निर्देश दिया था न्यायमूर्ति रंजन गंगोई (अब सांसद) ने 9 नवंबर 2019 के दिन। उन्होंने अपनी खंडपीठ के फैसले में कहा था कि अयोध्या मंदिर हेतु जमीन का दावा छोड़ने पर मुसलमानों को पांच एकड़ जमीन दे दी जाए। हिंदू पक्ष मूक रहा। विरोध नहीं कर पाया। हालांकि उजबेकी डाकू जहीरूद्दीन बाबर ने रामजन्म स्थल छीना, ध्वंस किया, फिर उसी पर मस्जिद बना डाली। हिंदू कमजोर थे। एकता नहीं थी। टूट गए थे। नतीजन सुन्नी वक्फ बोर्ड को सेंटमेंट में, नाहक, मुफ्त में पांच एकड़ जमीन सेक्युलर सरकार से दान में मिल गई। इंडो-इस्लामिक कल्चर फाउंडेशन ट्रस्ट को वक्फ बोर्ड ने मस्जिद निर्माण का जिम्मा सौंपा है। उसका दावा है कि अयोध्या में भव्य राम मंदिर का निर्माण (दिसम्बर 2023) होने तक मस्जिद भी मुकम्मल हो जाएगी। नाम “धन्नीपुर अयोध्या मस्जिद” होगी जबकि परिसर को “मौलवी अहमदुल्लाह शाह काम्प्लेक्स” के तौर पर जाना जाएगा। अहमदुल्लाह शाह 1857 में स्वतंत्रता-सेनानी थे। वस्तुतः इस तरह मस्जिद को भूमि आवंटन करना महज न्यायिक समाधान ही था, जो हील तराशने के माफिक है। तात्पर्य इतिहास-चक्र के साथ पलड़ा उठता-झुकता रहा। मगर उच्चतम न्यायालय ने ऐतिहासिक जुल्म पर बोनस दे दिया।
खैर चलिए यह बहुसंख्यकों की उदारता है कि मस्जिद हेतु भूमि दे दी गई। मगर चार वर्ष गुजर गए अभी तक एक ईंट भी नहीं जड़ी गई। दस्तावेजी सबूत पर आधारित रपट है कि मस्जिद बनने के आसार अभी तक नहीं दिख रहे हैं। मस्जिद तथा अन्य सुविधाओं के लिए अग्निशमन विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र हासिल करने के आवेदन पर हुई पड़ताल के दौरान विभाग ने मस्जिद की ओर जाने वाला रास्ता कम चौड़ा होने को लेकर आपत्ति की थी। प्रशासन ने इस पर तत्काल कदम उठाते हुए रास्ता चौड़ा करने के लिए दी जाने वाली अतिरिक्त जमीन की नाप-जोख की प्रक्रिया पूरी कर ली है। ट्रस्ट के सचिव अतहर हुसैन ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया था कि “हमें अयोध्या विकास प्राधिकरण से मस्जिद, अस्पताल, सामुदायिक रसोई, पुस्तकालय और रिसर्च सेंटर का नक्शा मिल जाने की उम्मीद है। उसके फौरन बाद हम मस्जिद का निर्माण कार्य शुरू कर देंगे।” बाकी चीजों का भी निर्माण शुरू कराएगी। क्योंकि मस्जिद छोटी है इसलिए उसके जल्द बनकर तैयार हो जाने की संभावना है। हालांकि इसके निर्माण की कोई समय सीमा नहीं तय की गई है। उम्मीद है कि इसी साल के अंदर (दिसंबर 2023 तक) मस्जिद का ढांचा तैयार हो जाएगा।
गौरतलब है कि श्रीराम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने अयोध्या में राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण दिसंबर 2023 तक तैयार हो जाने की बात कही है। संभावना है कि मस्जिद का निर्माण भी उसी समय तक पूरा हो जाए। राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने पिछली 25 अक्टूबर को संवाददाताओं को बताया था कि मंदिर का निर्माण दिसंबर 2023 तक पूरा कर लिया जाएगा और जनवरी 2024 में मकर संक्रांति के बाद मंदिर में विधिवत दर्शन-पूजन शुरू कर दिए जाएंगे।
फिलहाल विवाद जो भी हो मस्जिद का नाम एक बड़े राष्ट्रवादी व्यक्ति पर रखा गया है : अहमदुल्लाह शाह भारत के प्रथम स्वाधीनता संग्राम में शहीद हुए थे। उनके पुरखे मैसूर की सेना मैं अफसर थे जो ब्रिटिश सेना से लड़े थे। अयोध्या में अहमदुल्लाह ने जनता को ब्रिटिश सत्ता के विरुद्ध जगाया था। वे स्वयं रूस, ईरान, इराक गए थे तथा हज भी किया था। मगर एक ईस्ट इंडिया कंपनी के टट्टू राजा ने उनकी हत्या (5 जून 1858) कर दी थी। बताया जाता है कि पुवायां के राजा ने अहमदुल्लाह को धोखे से मार डाला। उनका सर अंग्रेजों को थाली में रख कर पेश किया था।
याद रहे कि मस्जिद निर्माण विषय पर कभी भी मुसलमानों मे एक मत नहीं बन पाया। सुप्रीम कोर्ट में मस्जिद के वकील जनाब जफरयाब जिलानी का मानना था कि सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय वक्फ बोर्ड के नियमों के विपरीत है। शरियत कानून की भी अवहेलना है। फिलहाल मंदिर तो निर्माण के शिखर पर है। मस्जिद अभी भी कच्छ्प गति से है, आधे अधूरे दौर में ही है। शायद खुदा की कृपा की आस में।