लोकसभा के बाद राज्यसभा में भी तीन तलाक़ विधेयक पारित हो चुका है और जल्दी ही ये क़ानून भी बन जाएगा, इंतज़ार बस राष्ट्रपति की मुहर का है|
मुस्लिम महिला (विवाह अधिकार संरक्षण) विधेयक 2019 के प्रावधानों के मुताबिक़ महिला को एक बार में तीन तलाक़ देना दंडनीय अपराध | इसके लिए तीन साल के जेल की सज़ा के साथ ज़ुर्माना भी हो सकता है| मुस्लिम महिलाएं बहुत वक़्त से इसका इंतज़ार कर रही थीं| इस तीन तलाक़ की वजह से मुसलमान औरतों को न जाने क्या-क्या बर्दाश्त करना पड़ता था, मिनटों में घर से बाहर निकलना पड़ता था|
ये एक ऐतिहासिक क़दम है, जो मुस्लिम महिलाओं के साथ होने वाली नाइंसाफ़ी को रोकेगा| अब मुसलमान अपनी बीवियों को तलाक़ देने से पहले दो बार-चार बार रुककर सोचेंगे कि ऐसा करने से उन्हें सज़ा हो सकती है| महिलाओं के सशक्तीकरण की दिशा में भी ये एक बड़ा क़दम है|
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार में तीन तलाक़ देने को असंवैधानिक भले ही ठहरा दिया था लेकिन इसका पालन नहीं होता था| शरीयत में भी तीनतलाक़ का ज़िक्र नहीं है, फिर भी मुस्लिम समुदाय में इसका चलन जारी था|
यहां ध्यान देने वाली बात ये है कि तीन महीने के भीतर दिए जाने वाले तलाक़ पर पाबंदी नहीं लगाई गई है बल्कि एक बार में तीन तलाक़ देने को ग़ैरक़ानूनी घोषित किया गया है|
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद मुस्लिम पुरुष धड़ल्ले से तीन तलाक़ दे रहे थे|सच्चाई तो ये है कि बहुत सी मुसलमान महिलाओं ने इसके लिए बाक़ायदा ‘हस्ताक्षर अभियान’ चलाया था कि क़ानून पारित करके ट्रिपल तलाक़ को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया जाए| ये बिल्कुल नहीं कि तीन तलाक़ क़ानून किसी धर्म विशेष को निशाना बनाता है| मेरा मानना है कि क़ानून सभी औरतों के लिए समान होना चाहिए, चाहे वो किसी भी धर्म या समुदाय से ताल्लुक़ रखने वाली हों.|
अगर इन मामलों में अदालत फ़ैसले दे तो बेहतर होगा.| मामला अदालत में जाने पर महिलाओं को भी अपना पक्ष रखने का मौक़ा मिलता है.| पहले तीन तलाक़ बोलकर उन्हें रातों-रात घर से बेदख़ल कर दिया.| ना उन्हें किसी तरह की आर्थिक मदद मिलती थी और न ही क़ानूनी|. इसलिए तीन तलाक़ क़ानून महिलाओं के हक़ में है, न कि उनके ख़िलाफ़| अब किसी का घर उजड़ने से बचेगा। कानून के डर से अत्याचार कम होंगे।