एक दौर होता था उसका भी कभी। आतुरता से उसका इंतजार था। उत्कंठा भरा। उतावलेपन की हद तक। व्याकुलता समाए। तब अभिसार फिर परिरंभन की उत्फुल्ल्ता होती थी। क्या था वह ? बस पत्र की प्रतीक्षा ! उसी युग का सादा, सीधा, सरल माध्यम था सूचना व समाचार का। एक अदना पोस्टकार्ड ! उस पाती में ही समूची बाती होती थी। भली या बुरी। अब यह आयताकार गत्ते का टुकड़ा दिखता कम है। अधिकतर सिर्फ स्मृतियों में। आज के इंटरनेट का युग, एसटीडी, वाहट्सएप में। टेलीग्राम ही अदृश्य हो गया है। बेतार भी नही है। मोबाइल तक पुराना पड़ गया, स्मार्टफोन के आते। न चिट्ठी, न संदेश ! कौन सा देश ? अलबत्ता फुर्सत बढ़ गई। बिना लुत्फ वाली। मगर तब वह सब कुछ सुगम होता था। बोधगम्य भी।
आजकल तो डाकघर भी छूट गए। पोस्ट बॉक्स पर ताला झूलता रहता है, धूल धूसरित। यदा-कदा खाकी पहने पोस्टमैन दिख जाता है। कभी वही अपेक्षित विषय होता था हाईस्कूल की परीक्षा में निबंध लिखने हेतु। दिलचस्प होता था, बहुधा रटा रटाया।
संवाद तथा सूचना का यह सर्वाधिक सस्ता, लोकप्रिय और जनसाधारण की अभिव्यक्ति का यह साधन पोस्टकार्ड भले ही आजकल चलन में न रहा हो, पर बाजार में है अभी भी। हां मुहावरा जैसा बन गया। कहां टि्वटर ! कहां पोस्टकार्ड !!
तो आखिर जन्मा कैसे यह सर्वसाधारण का संदेशवाहक ? इसे पहले डेन्यूब तटीय ऑस्ट्रिया में सांसद प्रतिनिधि कोल्बेंस्टीनर ने इसे रूपित किया था। उन्होंने ही वीनर न्योस्टॉ में सैन्य अकादमी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर डॉ. एमैनुएल हर्मेन को सुझाया। उन्हें यह विचार काफी आकर्षक लगा और 26 जनवरी 1869 को एक अखबार में इसके बारे में लेख भी लिखा था। ऑस्ट्रिया के डाक मंत्रालय ने इस विचार पर बहुत तेजी से काम किया और पोस्टकार्ड की पहली प्रति एक अक्टूबर 1869 में जारी की गई। यहीं से पोस्टकार्ड के लंबे सफर की शुरुआत हुई। दुनिया का यह प्रथम पोस्टकार्ड पीले रंग का था। इसका आकार 122 मिलीमीटर लंबा और 85 मिलीमीटर चौड़ा था। इसके एक तरफ पता लिखने के लिए जगह छोड़ी गई थी, जबकि दूसरी तरफ संदेश लिखने के लिए।
अपनी पैदाइश के पहले महीने में ही 1869 में ऑस्ट्रिया में इसका इस्तेमाल पंद्रह लाख उपभोक्ता करने लगे। लोकप्रियता दिनोंदिन बढ़ती गई। इसके बाद ब्रिटेन में 1872 में जारी होने के बाद, पोस्टकार्ड भारत में 1879 को अस्तित्व में आया।
पोस्टकार्ड के परिष्कृत आकार का आविष्कार अमेरिका मे हुआ था। अमेरिकी कांग्रेस ने 27 फरवरी, 1861 को, एक अधिनियम पारित किया, जिसमें एक औंस या उससे कम वजन वाले निजी तौर पर मुद्रित कार्ड को मेल में भेजने की अनुमति दी गई। उसी वर्ष जॉन पी. चार्लटन (अन्य स्थानों पर कार्लटन के रूप में देखा जाता है) ने अमेरिका में पहले पोस्टकार्ड का कॉपीराइट किया।
भारत में पोस्टकार्ड का चलन 15 जुलाई 1879 से शुरू हुआ। तब पहली जुलाई 1879 को जारी पहला पोस्टकार्ड ईस्ट इंडिया पोस्टकार्ड के नाम से जाना जाता था। इस पर रानी विक्टोरिया की छवि थी। कालचक्र के इस पोस्टकार्ड पर किंग जॉर्ज पंचम (1912) और जॉर्ज छठे (1939) को भी स्थान मिला। इस बीच 1935 में पहली बार देश में नॉर्थ वेस्टर्न रेलवे के चार पिक्चर पोस्टकार्ड जारी हुए जिन पर स्वर्ण मंदिर और दरबार साहिब डेरा बाबा नानक को भी स्थान मिला। आजाद भारत में 7 सितंबर 1947 को जारी नौ पाई के पोस्टकार्ड पर हरे रंग में त्रिमूर्ति की छवि अंकित की गई। गांधी जयंती पर 1951 में गांधीजी की चार पिक्चर पोस्टकार्ड देखने को मिले। एक प्रकरण याद आया। पोस्टकार्ड की एक प्रतिलिपि मिली थी गांधी संग्रहालय में। उस पर केवल बापू की आकृति बनी थी। पता लिखा था “भारत में किसी स्थान पर।” वह सेवाग्राम (वार्धा) आश्रम पहुंचा दी गई। पहले पोस्टकार्ड की कीमत तीन पैसे रखी गई थी। मगर व्यवसायिक दृष्टि से यह लाभकारी नहीं था। पचास पैसे का जब यह बिका था तो लागत आई थी छः रुपए। हालांकि अंतर्देशीय पत्र की लागत रही ढाई रुपए। डाकघर के कर्मचारियों ने बताया कि अंतर्देशीय पत्र के लिए महीने में दो-चार भूले-भटके चले आते हैं। यही हालात लगभग सभी डाकघरों में है। वहीं ज्यादातर न्यायालय, एंप्लॉयमेंट, पावती, कस्टमर को जोड़ने, मंत्री और राजनेता को बधाई देनी, श्राद्ध कर्म की सूचना देने वाले ही पोस्टकार्ड का इस्तेमाल करते हैं। थोक में अधिकतर पोस्टकार्ड ही बिकते हैं।
आजकल पिक्चर पोस्टकार्ड के आकार में यह जीवित है। बहुधा पर्यटक लोग हर ऐतिहासिक स्थल से डाक से अपनी यात्रा का चिन्ह भेजते रहते हैं। यह लोकप्रिय भी काफी है। डाकघर का स्त्रोत भी। मगर इतना तो अहसास होता है कि आधुनिकता और नई संचार तकनीको के ईजाद होने के फलस्वरूप ऐसी जनसयोंगी माध्यम अब मात्र संग्रहालय में ही पाये जाएंगे। इतिहास को शायद यही बदा है।