अमेरिका विश्व के उन चुनिंदा देशों में शामिल है जिसके साथ भारत का व्यापार अधिशेष रहता है . अमेरिका और भारत के बीच द्विपक्षीय व्यापार 145 अरब डॉलर से ज्यादा का होता है . ट्रंप भारत से टैरिफ़ में और कटौती करने की मांग कर रहा है ताकि भारत को और वस्तुओं और सेवाओं का निर्यात किया जा सके और उसके साथ उसका व्यापार घाटा कम हो सके. हाल के कुछ वर्षों के दौरान अमेरिका का भारत के साथ व्यापार घाटा बढ़ कर 46 अरब डॉलर तक पहुंच गया है. लेकिन भारत के लिए इस तरह की कोई अड़चन मौका भी बन सकती है.
हाल के कुछ वर्षों में भारत ने अमेरिका से कारोबारी सौदे बढ़ाने में दिलचस्पी दिखाई है. भारत के साथ ट्रंप प्रशासन बाइडन प्रशासन की तुलना में ज़्यादा अच्छा वार्ताकार साबित हो सकता है. बाइडन प्रशासन ने भारत के साथ अपने व्यापार समझौतों में पर्यावरण और श्रम संबंधी शर्तें लगाई थीं.
ट्रंप बगैर वैध दस्तावेज के अमेरिका में रह रहे और भारतीयों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं. कुछ अनुमानों के मुताबिक़ अमेरिका में ऐसे भारतीयों संख्या सात लाख से अधिक है. अमेरिका में ये ऐसे लोगों का तीसरा बड़ा समूह है. भारत के विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने हाल में संसद में कहा था कि भारत सरकार अमेरिकी सरकार से बात करके ये सुनिश्चित करेगी कि अवैध तौर पर अमेरिका में रह रहे भारतीयों को वापस भेजते समय दुर्व्यवहार न किया जाए.
2021 में भारत अमेरिकी तेल निर्यात का सबसे बड़ा बाज़ार था. लेकिन यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद अंतरराष्ट्रीय तेल बाज़ार में काफ़ी बदलाव देखने को मिला.इस दौरान भारत अपने करीबी सहयोगी रूस से सस्ता तेल ले रहा है . हालांकि भारत अमेरिका से कितना तेल खरीदेगा, ये इसकी क़ीमतों पर निर्भर करेगा. भारत भी अमेरिका से ऊर्जा क्षेत्र की अपनी मांगें रख सकते हैं. भारत चाहेगा कि अमेरिका भारत के न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर में निवेश करे. भारत अपने न्यूक्लियर लाइबिलिटी क़ानून में संशोधन कर रहा है. उसने एक नए न्यूक्लियर एनर्जी मिशन का भी एलान किया है. भारत चाहता है कि उसके न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर में विदेशी निवेश बढ़े. भारत तुलनात्मक तौर पर ज़्यादा स्वच्छ ऊर्जा न्यूक्लियर एनर्जी सेक्टर में निवेश के लिए ट्रंप प्रशासन को मनाने की कोशिश कर सकता है. हालांकि सौर और पवन ऊर्जा में अमेरिका से निवेश हासिल करना कठिन हो सकता है.
भारत और अमेरिका के बीच टेक्नोलॉजी पर भी बातचीत हो सकती है. बाइडन प्रशासन के दौरान दोनों के बीच इस पर काफ़ी काम हुआ था. इसका श्रेय 2022 में लागू इनिशिएटिव ऑन क्रिटिकल एंड इमरजिंग टेक्नोलॉजिज यानी आईसीईटी को जाता है. दोनों पक्ष इसे अपनी सामरिक पार्टनरशिप की बुनियाद मानते हैं. आईसीईटी दोनों देशों के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकारों की निगरानी में है ताकि ये ब्यूरोक्रेसी के जाल में न फंसे. अमेरिका भारत को ग्लोबल टेक सप्लाई चेन का बड़ा हिस्सा बनाकर चीन को चुनौती देता है तो ये साझेदारी बरकरार रहेगी.
भारत ईरान के चाबहार शहर में ईरान के साथ मिलकर एक बंदरगाह विकसित कर रहा है. ये ईरान और अफ़ग़ानिस्तान के ज़रिये मध्य एशिया के साथ कनेक्टिविटी को मजबूत करने की भारत की रणनीति का हिस्सा है. लेकिन पिछले सप्ताह अमेरिकी प्रशासन ने ट्रंप के अधिकतम दबाव की रणनीति के तहत ईरान के ख़िलाफ़ एक मेमोरेंडम जारी किया, जिसमें चाबहार में वाणिज्यिक गतिविधियां चलाने वालों को मिलने वाली अधिकतम छूट को हटाने के संकेत दिए गए.
जिन मुद्दों पर भारत और अमेरिका सकारात्मक रुख़ बनाए रख सकते हैं उनमें क्वाड शामिल है. अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया की सदस्यता वाले इस ग्रुप के मजबूत समर्थक हैं. इसका फोकस चीन की बढ़त को रोके रखने पर है. अपने पहले कार्यकाल में ट्रंप ने इसका वार्षिक सम्मेलन का दर्जा बढ़ा कर विदेश मंत्रियों के स्तर तक ले गए थे. जबकि बाइडन ने तो राष्ट्र प्रमुखों के बीच बैठक की थी. भारत को इस साल क्वाड सम्मेलन का आयोजन करना है. इन बातों से यह मतलब निकलता है कि ट्रंप प्रशासन को लेन-देन में विश्वास है .