*टुकडे टुकडे पाकिस्तान / ७* *खैबर पख्तुनख्वा / २*

पाकिस्तान बना था इस्लाम की प्रेरणा से. उस समय के अखंड भारतवर्ष के मुसलमान एक अलग देश चाहते थे. इसलिए पाकिस्तान के नाम में ही इस्लाम हैं. ‘इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ़ पाकिस्तान’ अर्थात ‘इस्लामी जम्हूरिया पाकिस्तान’ यह इस राष्ट्र का पूरा नाम हैं. 
*लेकिन प्रश्न यह हैं, क्या मात्र इस्लाम के नाम पर एक राष्ट्र खड़ा हो सकता हैं..? इरान और ईराक, दोनों मुस्लिम राष्ट्र हैं. लेकिन दोनों के बीच कई युध्द हो चुके हैं. ईराक ने कुवैत पर कई बार हमले किये हैं. सीरिया को ध्वस्त करने में मुस्लिम संगठनों का बड़ा हाथ हैं. पाकिस्तान की अफगानिस्तान से नहीं पटती…. ऐसे अनेक उदाहरण हैं. ये सभी इस्लामी राष्ट्र हैं, लेकिन आपस में झगड़ते हैं. अर्थात, मात्र मुस्लिम होना, यह किसी राष्ट्र को बांधे रखने का आधार नहीं हो सकता हैं.*
*पाकिस्तान बनाते समय, उसे बनाने वाले शायद इसी बात को भूल गए थे..!* इसीलिए आजादी के पच्चीस वर्ष पूरे होने के पहले ही, पाकिस्तान से, उसका बहुत बड़ा भूभाग, भाषा और स्थानिक संस्कृति को लेकर अलग हो गया था. पूर्व बंगाल की जनता और नेता, प्रमुखता से मुस्लिम ही थे. शेख मुजीबुर्र रहमान पांच वक्त नमाज पढने वाले मुस्लिम थे. लेकिन उनकी नहीं बनी. *१९७० – ७१ के दौरान, पश्चिम पाकिस्तान के शासकों ने लाखों की संख्या में पूर्वी बंगाल के हिन्दुओं को तो मारा ही. साथ ही, वहां के मुसलमानों को भी मारा…. एक ही धर्म के मानने वालों ने ऐसा किया. कारण, मुस्लिम धर्म यह राष्ट्र को खड़ा करने का साधन या आधार हो ही नहीं सकता, यह पाकिस्तानी समझ ही नहीं पाएं.* और बंगला देश, एक अलग राष्ट्र के रूप में खड़ा हुआ.
यही बात पाकिस्तान के अन्य प्रान्तों में हो रही हैं. नार्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस के साथ भी यही हुआ, और यही हो रहा हैं. नेहरु और अंग्रेजों के कारण, गांधीजी को और कांग्रेस को मानने वाला यह महत्वपूर्ण प्रदेश पाकिस्तान में चला गया. उस पाकिस्तान में, जिसकी भाषा प्रमुखता से पंजाबी और उर्दू थी. बंगाली भी प्रारंभ में चलती थी. लेकिन इस NWFP में रहनेवाले अधिकतर, या तो पश्तो बोलते थे, या हिंदको. न तो भाषा की समानता थी, ना रीति-रिवाजों की. इसलिए १९४७ में पाकिस्तान के बनने से ही, पठान, दिल से कभी भी पाकिस्तान के साथ नहीं रहे.
उनके सर्वमान्य नेता, बादशाह खान अर्थात खान अब्दुल गफ्फार खान को तो पाकिस्तान ने उनके मरते तक भरपूर अपमानित किया. बार बार उन्हें पकड़कर जेल में ठूंस दिया जाता था. ९८ वर्ष के आयु में जब उनका इंतकाल हुआ, तब भी वे पेशावर में नजरबन्द थे..! 
ये सारा प्रदेश पहाड़ी हैं, जनजातियों से भरा हैं, अविकसित हैं, लेकिन गजब का सुन्दर हैं. ऐसा लगता हैं, प्रकृति ने अपनी सारी कृपा इस प्रदेश पर बरसाई हैं. पाकिस्तान में कुल २९ नेशनल पार्क हैं, जिन मे से १८ पार्क, इस प्रदेश में हैं. झेलम, सिन्धु, काबुल, कुर्रम, स्वात, पंजकोरा, कुनार, कुंहर… इन नदियों ने इस पूरे प्रदेश को हरा-भरा और प्राकृतिक सुन्दरता से भरपूर बना दिया हैं. हिन्दू कुश की पर्वत श्रेणियों ने इसे दुर्गमता के साथ सृष्टि का वैभव दिया हैं. इस प्रदेश में प्रमुखता से पश्तुनी लोग रहते हैं, जो पाकिस्तान में पंजाबियों के बाद, दूसरा सबसे ज्यादा संख्या वाला समूह हैं.
पेशावर यह NWFP, जो आज खैबर पख्तुनख्वा कहलाता हैं, की राजधानी हैं. दक्षिण आशिया का प्राचीनतम शहर. ईसा पूर्व ५३९ वर्षों का इतिहास, इस शहर में मिलता हैं. *किसी जमाने में यह हिन्दुओं की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिक, ‘पुरुषपुर’ शहर था. वैभवशाली और संपन्न. बौध्दों के लिए भी यह एक पवित्र स्थल था. आज वही पेशावर शहर आतंकी हमलों से बदतर हो गया हैं. प्रदुषण की भरमार, तंग गलियां और आतंकी हमलों की आशंका… यह पेशावर का स्थायीभाव बन गया हैं.*
किसी जमाने में समृद्ध रहे इस गांधार प्रांत के अवशेष अब खंडहर होते जा रहे हैं. अराजकता और अस्थिरता यह इस प्रदेश का स्वभाव विशेष बनाता दिख रहा हैं. अफगानिस्तान से लगा होने के कारण, इस प्रदेश में तालीबानियों की भी दखलंदाजी हैं. आतंकवादियों के विभिन्न गुट, एक – दूसरे की जान लेने पर उतारू रहते हैं.
पहले अमेरिकी जासूसों ने, अफगानिस्तान के रुसी सैनिकों से लड़ने के लिए इसका उपयोग किया. फिर रुसी सैनिक चले जाने के बाद, तालिबानी सैनिकों ने पेशावर को अपना ठिकाना बनाया. पाकिस्तान ने भी इस पूरे क्षेत्र को ‘आतंकवाद का अड्डा’ बनाए रखा. इसी प्रदेश के आबोटाबाद में पाकिस्तानी सेना ने ‘ओसामा बिन लादेन’ को अनेक वर्षों तक छुपाएं रखा था. यहां पाकिस्तानी प्रशासन बिलकुल लचर हैं. २०१४ में इसी शहर में तालिबानियों ने १३२ स्कूली बच्चों को मौत के घात उतारा था.  
प्रारंभ से ही इस NWFP में पाकिस्तान के विरुध्द, विरोध का वातावरण रहा. लेकिन सीमावर्ती क्षेत्र, और वनवासी जनजाति समुदाय होने के कारण पाकिस्तान ने कभी इस क्षेत्र पर ध्यान दिया ही नहीं. इसलिए विरोध के स्वर ज्यादा बुलंद नहीं हो सके. लेकिन नब्बे के दशक के बाद, अमरीका ने, अफगानिस्तान के रूसियों से लड़ने के लिए इसी क्षेत्र को युध्दभूमि बनाया, और सारे समीकरण बदलते चले गए. अमरीका ने ९/११ होने के बाद तो इस प्रदेश को युध्दभूमि मान लिया था. पठानों पर अत्याचार होने लगे. और पाकिस्तान, अमरीकी सेना का समर्थन कर रहा था. सारे पठान, पाकिस्तान के विरोध में होते गए. विरोध का यह वातावरण ऐसा बढ़ता गया, की सन २००९ में इस NWFP प्रदेश के प्रमुख सड़कों पर चालीस फीट के बड़े से होर्डिंग्स लगे थे, पाकिस्तान के विरोध में. तब तक यह इलाका ‘आतंकवाद का गढ़’ बन चुका था.
सन २०१० में पाकिस्तानी प्रशासन ने इसे सुधारने के लिए कुछ करने का सोचा. उन्होंने इसका नाम बदल दिया. NWFP से यह ‘खैबर पख्तूनख्वा बन गया. सन २०१८ में इस प्रदेश में पाकिस्तान का अर्ध स्वायत्त प्रदेश, FATA (Federally Administered Tribal Areas) विलीन कर दिया. लेकिन अन्य कोई बदलाव नहीं हुआ. आतंकी गतिविधियाँ वैसेही चलती रही. *पुश्तैनी निवास करनेवाले पठानों को यह सब सहन नहीं हो रहा था. उन्होंने अलग ‘पश्तुनिस्तान’ की मुहीम छेड़ रखी हैं.* 
*उमर दौड़ खटक* यह पश्तुनिस्तान समर्थक विद्रोही नेता हैं. ये पाकिस्तानी सेना में था. लेकिन अपने पश्तून प्रदेश में हो रहे पाकिस्तानी अत्याचार के विरोध में वो पाकिस्तानी सेना से भागा और अफगानिस्तान गया. वहां उसने ‘पश्तुनिस्तान लिबरेशन आर्मी’ बनाईं हैं, जिसका वह ‘मिशन कमांडर’ हैं. उमर का कहना हैं, ‘उसके जैसे अनेक युवा, पाकिस्तानी अत्याचार के विरोध में देश छोड़कर, उसकी ‘पश्तुनिस्तान लिबरेशन आर्मी’ में शामिल हो रहे हैं’.
(क्रमशः)

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