डा. वेद प्रताप वैदिक जी का जाना पत्रकारिता जगत की बड़ी क्षति है। वह प्रखर चिंतक, लेखक और सामाजिक सरोकारों वाले व्यक्ति थे। हमेशा वो किसी न किसी अभियान में लगे रहते थे। अंतिम क्षण तक वह अत्यंत सक्रिय रहे। अभी परसों ही उनका फोन आया था। बहुत लंबी बात हुई।
वैदिक जी की धर्म पत्नी डा.वेदवती जी बहुत विदुषी महिला थी। वेद पर संस्कृति में उन्होंने चार खंडों में भाष्य लिखा था। उसका लोकार्पण वैदिक जी मा. मोहनभागवत जी से कराना चाहते थे। संभवत: 6 अप्रैल की तारीख भी तय हो गई थी।
पत्रकार के साथ ही साथ वह एक एक्टिविस्ट भी थे। उन्होंने बातचीत में बताया कि उन्होंने एक जन दक्षेस नामका संगठन बनाया है। जन दक्षेस के सभी दस्तावेज उन्होंने मुझे भेजे। इस विषय पर हम लोगों की लंबी चर्चा होनी थी। वैसे वह इस तरह के अभियान में लगे रहते थे। मुझे याद है कि उन्होंने राजनीतिक दलों को सुधारने का भी एक अभियान चलाया था।
वैदिक जी हिन्दी के बडे पैरोकार था। वैदिक जी जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र से पीएचडी की। उन्होंने अपनी पीएचडी हिन्दी में लिखी। यह पहली बार हुआ था कि किसी छात्र ने अपनी पीएचडी हिन्दी में लिखी हो। जिसकी अनुमति जेएनयू ने नहीं दी थी। इस विषय को डा. राममनोहर लोहिया ने संसद में उठाया। तब जाकर जेएनयू प्रशासन ने उसे स्वीकार किया।
उन्होंने अंग्रेजी हटाओ एक पुस्तक भी लिखी। वह कई भाषाओं के जानकार थे। विदेश माललों पर उनकी गहरी पकड़ थी। पहले इस तरह के विषय अंग्रेजी के माने जाते थे। लेकिन वैदिक ने उस धारणा को तोड़ दिया। भाषा समाचार एंजेंसी के वह संस्थापक संपादक थे।