चीन के कम्युनिस्ट पड़ोसी और शत्रु वियतनाम को नरेंद्र मोदी ने काफी संवेदनशील ढंग से भारत का प्रगाढ़ मित्र बनाया है, खासकर पिछली (2 सितंबर 2016) यात्रा से। इसीलिए कल (12 दिसंबर 2023) चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की वियतनाम यात्रा, छः वर्षों बाद, भारत को चौंका देने वाली है। स्मरण आता है वह हादसा (8 जून 1978) जब विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेई एक ही दिन रुककर चीन की यात्रा बीच में छोड़कर दिल्ली लौट आए थे। उसी सप्ताह चीन ने वियतनाम पर सैनिक आक्रमण किया था। वियतनाम के राष्ट्रपति डॉ हो ची. मिन्ह भारत के गहरे मित्र रहे। अतः अटलजी ने चीन का आतिथ्य खारिज किया, स्वदेश लौट आए थे।
ठीक तभी से भारत और वियतनाम के पारंपरिक रिश्ते हिमालयी ऊंचाई पर जा पहुंचे थे। सोवियत रूस ने भी तब भारत की विदेश नीति को पसंद किया था। रूस-चीन सीमा विवाद तभी उभर रहा था।
इन्हीं तथ्यों और पृष्ठभूमि के कारण चीन को फिर से वियतनाम को मित्र बनाने की कोशिश एशियाई समुद्री क्षेत्र में भारत के हितों को कठिनाई में डाल सकता है। दक्षिण चीन सागर पर अमेरिका, वियतनाम और भारत का नजरिया समान है, स्वाभाविक भी है। अतः चीन बौखला उठा है। उसके राष्ट्रपति की यात्रा इन्हीं अर्थों में चिंता का सबब है। हनोई और बीजिंग के बीच दक्षिण चीन सागर पर खटास के चलते अमेरिका के साथ वियतनाम का नजदीकियां बढ़ी हैं। दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव के दौर में राष्ट्रपति शी जिनपिंग वियतनाम की यात्रा पर है। उन्होंने दक्षिण चीन सागर पर विवाद के समाधान की बात की। दो दिवसीय यात्रा पर पहुंचे जिनपिंग ने कहा कि इसे सुलझाने के लिए बीजिंग और हनोई दोनों को ‘परस्पर स्वीकार्य समाधान’ ढूंढना चाहिए। शी अपनी पत्नी पेंग लियुआन के साथ हनोई पहुंचे हैं। वियतनाम के साथी नेताओं के साथ गहन दौर की बातचीत की। एक नई रेल परियोजना सहित कई नए सौदों पर वार्ता हुई। इस दौरान शी ने बीजिंग और हनोई से दक्षिण चीन सागर विवाद का पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान खोजने और दीर्घकालिक क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखने का आह्वान किया। शी ने कहा कि इस क्षेत्र में विवाद को खत्म करने के लिए दोनों पक्षों के नेताओं को आम समझ पर काम करने, समुद्री मुद्दों पर मतभेदों को ठीक से प्रबंधित करने और संयुक्त रूप से पारस्परिक रूप से स्वीकार्य समाधान तलाशने की जरूरत है।
याद रहे वियतनाम, फिलीपींस, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान के साथ दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा करता है। वहीं चीन भी इसके अधिकांश हिस्से पर अपना दावा करता है। शी की यह वियतनाम यात्रा इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह चीन और फिलीपींस के बीच बढ़ते तनाव और हाल के दिनों में चीनी और फिलीपीन जहाजों के बीच कई टकरावों के बीच हो रही है। साथ ही चीन, वियतनाम के जापान और अमेरिका के साथ बढ़ती नजदीकियों से भी चिंतित है। हाल ही में बाइडन की हनोई यात्रा के बाद दोनों पक्षों के बीच तनाव और भी गहराया है।
वियतनाम एशियाई रणनीति की दृष्टि से भारत के लिए आर्थिक तथा सामाजिक दृष्टि से खास है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की (1 सितंबर 2016) वियतनाम यात्रा ऐतिहासिक थी। हनोई में प्रधान मंत्री मोदी ने राष्ट्रपति त्रान दाई क्वांग और प्रधान मंत्री गुयेन जुआन फुक से मुलाकात की थी। शीर्ष नेतृत्व के साथ व्यापक बातचीत की। वियतनाम भारत का सबसे महत्वपूर्ण रणनीतिक साझेदार है। इस यात्रा का चीन ने तब उत्सुकता से अनुसरण किया था। वियतनाम समुद्री और ऊर्जा संसाधनों पर दावा करता है, इसलिए चीन के साथ उसका गंभीर विवाद है। मोदी की वियतनाम यात्रा का उद्देश्य रक्षा, तेल अन्वेषण, सुरक्षा और व्यापार सहित द्विपक्षीय संबंधों को और मजबूत करना था।
नरेंद्र मोदी एक अहम रणनीति के तहत पिछली यात्रा में चीन से पहले वियतनाम की राजधानी हनोई पहुंचे थे। यह पिछले 15 साल में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली वियतनाम यात्रा है। इससे पहले 2001 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी गए थे। दक्षिण चीन सागर दोनों देशों की बैठक का मुख्य एजेंडा था। इस क्षेत्र पर चीन अपना अधिकार जताता रहा है। इसको लेकर वियतनाम और चीन एक दूसरे से उलझे हुए हैं। हालांकि हेग स्थित अंतरराष्ट्रीय ट्रिब्यूनल ने इस क्षेत्र में चीन के दावे को खारिज कर चुका है। हालांकि चीन ने इसके फैसले को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि उसके लिए यह सिर्फ कागज का टुकड़ा है।
यूं भी मोदी सरकार ने जापान, दक्षिण कोरिया, वियतनाम आदि मित्र राष्ट्रों को एक सूत्र में सिरोकर रक्षा कवच गढ़ लिया है। शायद ही किसी अन्य भारतीय प्रधानमंत्री ने इतनी गर्मजोशी से इतने व्यापक तरीके से प्रशांत महासागर तथा हिंद महासागर के तटवर्ती देशों की साझेदारी सुदृढ़ की होगी। भारत और वियतनाम हिंद महासागर पर स्थित है, अतः ज्यादा करीब है।