बदलते हुए समय में किसान को उसकी मेहनत का मूल्य मिलना चाहिए। किसान कड़ी मजदूरी करके जो भी पैदा करता है, उसकी मजबूरी का लाभ बिचौलिया, दलाल लूट लेता है और कठिनाइयों के दिनों में माल (पैदावार) बेचने को आतुर किसान कम दामों में अपनी पैदावार बेचकर अपनी मेहनत-मजदूरी में लगा रुपया भी नहीं निकाल पाता है। ऐसी दशा में उस किसान का जीवन कितना मुश्किल हो जाता है, उसका हमें अंदाज है।
राज्य सरकार का प्रयास है कि किसान लूटा न जाए, उसके साथ धोखाधड़ी न हो। कोई अन्य किसान की मजबूरी का फायदा न उठा सके और किसान स्वयं ही अपना स्वामी बन सके। किसान को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। केंद्र सरकार के साथ किसानों के अधिकार के लिए जो लड़ाई हम लड़ रहे थे, वह हम जीत गए हैं। सन् १९८५ से किसानों को पैदावार का पैसा जो नहीं मिलता था, वह अब मिलने लगा है। पहले कभी ऐसा होता था कि गरीबों की सरकार चलाने की बातें की जाती थीं। बहुत से वायदे किए जाते थे, परंतु व्यवहार में कुछ और ही थी। कोई आदमी लट्ठा (शराब) पीए और मर जाए तो सरकार उसके घरवालों को पैसा देती थी।
कोई आदमी दंगा-फसाद में मर जाए तो उसके घरवालों को पैसे मिलते थे। परंतु जमीन का मालिक किसान या बिना जमीनवाला किसान कुआँ खोदते-खोदते मिट्टी गिरने से उसमें दबकर मर जाए तो उसे फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती थी। किसान खेत में काम करता हो, उसे जहरीला साँप डस ले और वह मर जाए तो उसे फूटी कौड़ी भी नहीं मिलती थी। क्या किसान के साथ यह अन्याय नहीं है ? कड़ी मजदूरी व मेहनत करके सरकार के अन्न-भंडार को भरनेवाले किसान के जीवन में कोई मुसीबत आए, तब उसकी तरफ देखनेवाला कोई भी नहीं? इससे अधिक दुःखद परिस्थिति और क्या हो सकती है ! मुझे लगा कि किसान तो इतनी अधिक संख्या में हैं, छोटी-बड़ी दुर्घटना हो जाए, कभी शरीर का कोई अंग भी गँवाना पड़ता है और कभी जीवन ही गँवाना पड़ता है। घर के लोग रो-धोकर रह जाते हैं। इसका कोई उपाय ढूँढ़ना चाहिए। इस कारण राज्य सरकार ने गुजरात के सभी किसानों का बीमा किया है। इस बीमे की पॉलिसी का पैसा राज्य सरकार स्वयं ही भरती है।
आज गुजरात के प्रत्येक किसान के पास किसान पुस्तिका है। किसान को क्रडिट कार्ड दिए गए हैं। हमने बनासकाँठा में लोक-कल्याण मेले का आयोजन किया है। यहाँ किसान को क्रेडिट कार्ड देने का जितना लक्ष्य बनाया गया था, उसको पूरा करने के लिए हमने एक बड़ा अभियान शुरू किया था, जिससे किसान सर्राफ के यहाँ जाकर लड़की के, पत्नी के, बहन के जेवर गिरवी रखकर रुपए लेने के लिए मजबूर न हो और ब्याजखोर सर्राफ किसान का शोषण न करे। किसान स्वयं बैंक में जाकर अपने अधिकार का पैसा ले सके, ऐसी व्यवस्था की है। ऐसा होने से किसान का शोषण रुकेगा।
बाजार में पैदावार का दाम (एकदम कम हो जाए) गड्ढे में चला गया हो, किसान को महामूल्यवान् अनाज मिट्टी के भाव बेचना पड़े, प्रत्येक किसान के पास उत्पन्न चीजों को रखने की जगह न हो, उस समय किसान को टिके रहने के लिए एक निर्धारित (टेका) भाव की आवश्यकता होती है। एक भी पाई का अनाज खरीदा नहीं जाए और किसान की जेब में से कुछ भी जाए नहीं। गुजरात सरकार ने मकई, बाजरा, मूंगफली, कपास आदि निर्धारित भाव से पहली बार खरीदकर गुजरात के मरते हुए किसान को बचाने का प्रयास किया है और इस कारण गुजरात का किसान जी गया है।
यदि गाँव सुखी होंगे तो देश भी सुखी होगा। इसी कारण से हमने गाँवों को सुखी करने के लिए ‘गोकुल ग्राम योजनाओं’ द्वारा गाँवों को मूलभूत सुविधा देने का प्रयास किया है। समरस गाँव द्वारा गाँव के अंदर एकता बनी रहे, लोग शांति से जीवनयापन करें, सुख से जीएँ और गाँव के प्रश्नों का निराकरण गाँव के भाई लोग ही एकत्रित होकर करें, इसके लिए एक सफल प्रयोग किया है। आनेवाले दिनों में गाँव भले ही गाँव ही हो, परंतु शुद्ध हवा, पानी, दूध हो, बस्ती कम हो, भाईचारा हो और गाँव में बैठा आदमी दुनिया की बराबरी कर सके, उतनी शक्ति उसे मिले।
बनासकांठा के किसी किसान का बेटा अमेरिका में पढ़ता हो, नौकरी करता हो और उसे अमेरिका में बैठे-बैठे ही देखना हो कि मेरी जमीन के ७-१२ के पत्र का क्या हाल है तो वह अमेरिका में बैठा-बैठा अपने कंप्यूटर पर गाँव की अपनी जमीन के ७-१२ के पत्र को देख सके, इस स्तर तक हम अपने गाँव का विकास करना चाहते हैं, एक क्रांति लाना चाहते हैं। विश्व में जो कुछ भी है, वह गाँव में होना चाहिए। जो भी अच्छा है, श्रेष्ठ है, वह गाँवों को प्राप्त होना चाहिए। ऐसा गाँवों का विकास होगा तो गाँव टूटेंगे नहीं। इसके लिए गाँव को मूलभूत सुविधाएँ, गाँव में एकता का वातावरण, गाँव में आधुनिकता की पहल, गाँव में विज्ञान का वातावरण पैदा करना पड़ेगा। इस दिशा में क्रमानुसार आगे बढ़ने का राज्य सरकार ने संकल्प किया है। किसान को आमदनी मिले, गोबर गैस की रचना हो, गोबर गैस से बिजली पैदा हो। गैस और बिजली गाँव के आदमी को मिले, इस हेतु हम एक व्यापक मूलभूत व्यवस्था स्थापित करना चाहते हैं। इससे गाँव के लिए एक शक्ति उत्पन्न होगी और गाँव का आदमी सुखी होगा।
(किशोर मकवाना संपादित पुस्तक ‘सामाजिक समरसता’ गुजरात के मुख्यमंत्री रहते नरेन्द्र मोदी के लेख-भाषण से सभार, प्रकाशक-प्रभात प्रकाशन)